आधुनिक मध्य-पूर्व की सबसे बड़ी बिडम्बना है कि आज से 40 वर्ष पूर्व छह दिन का युद्ध क्यों हुआ? जून 1967 में न तो इजरायल और न ही अरब पड़ोसियों को युद्ध की अपेक्षा थी। इस सम्बन्ध में इतिहासकाएं के मध्य सर्वानुमति का विचार है कि यह अनपेक्षित युद्ध दुर्घटनाओं की श्रृंखला से हुआ ।
इसाबेला गिनोर और गिदोज रेमेज की पति-पत्नी की टीम ने इस दुर्घटना सिद्धान्त को चुनौती देते हुए युद्ध के कारणों का तर्क ढूंढ लिया है। - Foxbats over Dimona: The Soviets' Nuclear Gamble in the Six-Day War (येल विश्वविद्यालय प्रेस) के शीर्षक के पुस्तक से ही पता चलता है कि उनका तर्क है कि इस युद्ध का मूल सोवियत पोलितष्व्यूरो की योजनाओं में था जहाँ वे दिमोना स्थित इजरायल के परमाणु संयत्र को नष्ट कर देश की परमाणु हथियार विकसित करने की आकंक्षा को नष्ट करना चाहते थे।
इन पुस्तकों का पाठ्य एक रहस्य के समाधान की भाँति हैं जो अनेक खण्डों के स्रोतों से सूचनायें प्राप्त कर अपने तर्कों के आधार पर प्रत्येक मार्ग पर पाठकों का मार्ग दर्शन करता प्रतीत होता है जिससे पूरे मामले को गम्भीरता से लेने की इच्छा पनपती है। संक्षेप में यह इस प्रकार है—
मोशे स्मेह नामक एक कम्युनिस्ट नेता (देश के वर्तमान प्रतिरक्षा मंत्री एफेम स्नेह के पिता) ने दिसम्बर 1995 में सोवियत राजदूत को बताया की प्रधानमंत्री के एक सलाहकार ने उन्हें सूचना दी है कि इजरायल अपना परमाणु बम उत्पन्न करने की मंशा रखता है। लियोनिड ब्रेझनेव और उनके सहयोगियों ने इस सूचना को पूरी गम्भीरता से लिया और इजरायल के साथ वही करने का निश्चय किया जो इजरायल ने 1981 में ईराक के साथ किया था और 2007 में इरान में हवाई हमलों के द्वारा इस प्रक्रिया को बीच में ध्वस्त करना चाहता है।
प्रत्यक्ष रूप से ऐसा करने के स्थान पर मास्को ने एक ऐसी जटिल योजना बनाई जिसमें इजरायल को युद्ध आरम्भ करने का प्रलोभन दिया जा सके जो कि दिमोना में सोवियत आक्रमण के साथ समाप्त हो। सैन्य रूप से क्रेमलिन ने भूमध्य सागर और लाल सागर में इजरायल को परमणु शस्त्र सम्पन्न शक्तियों से घेर दिया और सामग्री का भूमि पर रणनीतिक जमाव किया, सेना को प्रयोग करने की आशा से उनका प्रशिक्षण आरम्भ किया। सम्भवत: सबसे आश्चर्यजनक सूचना Foxbats Over Dimona के सम्बन्ध में यह है कि सोवियत सेना ने इजरायली और विशेष रूप से तेल रिफायनरी और तेल भंडारों पर बम वर्षा की योजना बनाते हुए इजरायली अरबियों तक पहुँचने की योजना बनाई थी। यह जानकर आँखें खुली रह जाती हैं कि सोवियत मिग – 25 दिमोना रिएक्टर के ऊपर से मई 1967 में उड़ा था।
राजनीतिक रूप से योजना यह थी कि खुफिया रिपोर्ट को तोड़-मरोड़ कर सीरिया पर इजरायली खतरा दिखाया जाये और मिस्र, सीरिया तथा जार्डन की सेनाओं को युद्ध स्तर पर लगा दिया जाये और फिर जैसा मिस्र के गमाल अब्दुल नसीर को उनके सोवियत आकाओं ने कहा उसने अपनी सेनायें इजरायल की ओर मोड़ दीं और उसके साथ ही तीन कदम उठाये जाने से इजरायल को अपनी रक्षा के लिए पूरी तरह चैतन्य होना पड़ा । इस स्थित में अधिक समय से रह न पाने की स्थिति में उन्होंने पहले हमला बोला और सोवियत जाल में फंसते दिखे। परन्तु उसके उपरान्त इजरायल रक्षा सेना ने कुछ आश्चर्यजनक कार्य किया। बराबरी पर युद्ध समाप्त करने के बजाय उन्होंने युद्ध जगत में चमत्कारिक विजय प्राप्त कर ली। विशुद्ध रूप से परम्परागत तरीके अपनाकर उन्होंने छ: दिन के अन्दर ही तीन शत्रु अरब राज्यों को परास्त कर दिया और पूर्व नियोजित सोवियत आक्रमण असफल हो गया।
इस शर्मनाक असफलता से सोवियत योजना बेवकूकफाना लगी और मास्को ने युद्ध की स्थिति निर्माण करने में अपनी भूमिका को अस्पष्ट ही रखा ( इस दशक की दूसरी बड़ी रणनीतिक भूल इससे पहले क्यूबा में मिसाइल रखने का प्रयास)। इसे छुपाने का प्रयास इतना सफल रहा कि छ: दिन के युद्ध में मास्को का दायित्व संघर्ष के इतिहास में पूरी तरह लुप्त हो गया।
वैसे युद्धों के विशेषज्ञ माइकल ओरेन ने गिनोर – रेमेज की पुस्तक को गर्मजोशी से नहीं लिया है और उनका कहना है कि उन्हें अपने प्रमाण में कोई अभिलेखीय साक्ष्य नहीं मिला है।
यदि – Foxbats Over Dimona इस विषय पर स्पष्ट शब्द नहीं है तो भी यह इस विषय की गहराई में जाने का व्यापक अवसर देती है और उसकी व्याख्या का अवसर देता है और इस व्यापक के अनेक परिणाम भी होने वाले हैं।
1967 में विजित राज्य क्षेत्र पर ध्यान देते हुए आज के अरब-इजरायल संघर्ष को इसके सेमेटिक विरोधी साथ से देखा जाये तो क्रेमनिल द्वारा चार दशक पूर्व लिए गये इसके निर्णयों का बड़ा भाग इसमें दिखता है। यह पूरी कसरत किसी काम की नहीं थी क्योंकि 1991 में सोवियत संघ के समाप्त होने तक इजरायल के कब्जे वाले परमाणु हथियारों का इस पर बहुत थोड़ा प्रभाव था और जैसा कि लेखक ने माना है, 21 वीं शताब्दी का शीतयुद्ध के प्रति प्रेम कि उस समय में स्थायित्व था व्यापक रूप में एक भ्रम है।’’
अन्त में, 40 वर्षों के उपरान्त यदि सोवित का छ: दिन का युद्ध नहीं होता जो स्थितियाँ कहाँ होती ? वैसे इस समय बुरी परिस्थितियाँ हैं परन्तु अनुमानत: वे और भी बुरी होती यदि इजरायल की आश्चर्यजनक विजय नहीं होती ।