सोमवार को सउदी अरब में 10 अमेरिकियों सहित एक दर्जन लोगों की बम विस्फोट में मृत्यु यहाँ उपस्थित गहरे टूटन का लक्षण हैं। धर्म नीति और विदेशियों पर यहाँ तर्क काफी पीछे जाता है। पश्चिम को इस विवाद पर विजय प्राप्त करने के लिए सउद परिवार की सहायता के लिए प्रतिक्रिया के साथ ही इस पर सुधार के लिए दबाव डालना चाहिए।
सउदी अरब का जन्म अठारहवीं शताब्दी के मध्य में हुआ जब एक कबाइली नेता मोहम्मद अल सउद ने धार्मिक नेता मोहम्मद बिन अब्द अल बहाब के साथ हाथ मिलाया। पहले ने राज्य को अपना नाम दिया (दो अन्तरिम समय को छोड़कर) जो अब तक अस्तित्व में है जबकि दूसरे ने उस संस्करण के इस्लाम को अपना नाम दिया जिसकी विचारधारणा अभी तक राज्य में चली आ रही है।
प्रथम दृष्टया इस्लाम का बहाबी संस्करण अत्यन्त कट्टर और अलोकप्रिय माना गया। अन्य मुसलमानों के प्रति इसकी धर्मान्ध शत्रुता और मुसलमानों की मान्य परम्पराओं की अवहेलना ने इसे अलग-थलग कर दिया, यहाँ तक कि मध्य पूर्व पर बहुत समय तक शासन करने वाले ओटोमन साम्राज्य में भी। सउदी शासन दो बार लुप्त हो गया और वह भी इसकी धार्मिक आक्रामकता के कारण शत्रुओं द्वारा अस्वीकार्यता के चलते।
सउदी शासन का वर्तमान स्वरूप 1902 में अस्तित्व में आया जब एक सउदी नेता ने रियाद पर नियन्त्रण किया ।दस वर्षों के उपरान्त वहाँ एक वहाबी सैन्य शक्ति इखवान उभरी जो कि व्यक्तिगत व्यवहा में और गैर वहाबियों के प्रति शत्रुता में पहले से ही उग्रवादी आन्दोलन का सबसे उग्रवादी आयाम प्रस्तुत करती थीं। उनके युद्ध का एक ही नारा चला “स्वर्ग के पंख खुल रहे हैं, कहाँ हो तुम जो स्वर्ग के बाद भी रहो ’’?
इखवान ने सउदी परिवार की बहुत सेवा की और एक बाद एक सैन्य विजय अभियान किये। 1924 में एक मोड़ आया जब वर्तमान सउदी राजा के पिता ने आज के जार्डन के राजा के परदादा से मक्का छीन लिया। इस विजय के दो परिणाम हुए। इसने सउदियों के अन्तिम स्थापित शत्रु को भी समाप्त कर दिया और अरब प्रायद्वीप पर इस परिवार को अग्रणी शक्ति के रूप में स्थापित कर दिया। इससे सउदी के नियन्त्रण में न केवल एक शहर वरन् इस्लाम का पवित्रतम स्थान आया और ऐसा मिश्रित शहरी क्षेत्र जो इस्लाम की विविधतावादी ब्याख्या करता था।
इन परिवर्तनों से सउदी उग्रवादी एक राज्य के रूप में परिवर्तित हो गया और शहर में एक आन्दोलन प्रवेश कर गया। इसका अर्थ हुआ कि सउदी राजशाही इखवान और परम्परागत वहाबी ब्याख्या को उतनी स्वतन्त्रता नहीं दे सकती थीं और इस पर नियन्त्रण करना था। इसका परिणाम हुआ कि 1920में गृह युद्ध आरम्भ हुआ जो 1930 में राजशाही पर इखवान की विजय के साथ समाप्त हुआ।
दूसरे शब्दों में कम धर्मान्ध वहाबी संस्करण धर्मान्ध वहाबी संस्करण पर प्रभावी हुआ। सउदी राजघराने ने एक ऐसे राज्य का शासन संचालन किया जो अन्य मुस्लिम देशों की तुलना में कम था।
हाँ, सउदी कुरान को अपने संविधान का दर्जा देता है, अपने राज्य क्षेत्र में इस्लाम के अतिरिक्त अन्य किसी धर्म पर पाबन्दी लगाता है, एक असहिष्णु धार्मिक पुलिस का नियोजन करता, तथा लौंगिक भेदभाव थोपता है। परन्तु यह गैर कुरानी नियमों को भी चलाता है, बड़ी संख्या में गैर-मुसलमानों का नियोजन करता है धार्मिक पुलिस को नियन्त्रित करता है, तथा महिलाओं को विद्यालय और कार्य क्षेत्र में जाने की अनुमति देता है।
1930 में इखवान भले ही पराजित हो गया हो परन्तु इसका सोचने का ढंग अब भी जीवित है और भव्य तथा भ्रष्ट सउदी राज्य के लिए अब कहीं बड़ा प्रतिपक्ष है। इस विकल्प का पौरूष 1979 में उस समय दिखा जब इखवान समर्थक हिंसक गुट ने मक्का में विशाल मस्जिद की घेराबन्दी कर ली। बड़े स्वरूप में 1980 में अफगानिस्तान में सोवियत संघ के विरूद्ध जिहाद में इखवान की भावना प्रबल रूप से थी। 1996 – 2001 के मधय अफगानिस्तान में तालिबान शासन के दौरान इखवान ने शासन का स्वरूप ग्रहण किया।
अफगानिस्तान में अपने प्रभावशाली वर्ष व्यतीत करने वाला ओसामा बिन लादेन आज इखवान आन्दोलन का अग्रणी प्रतिनिधि है। वह भ्रष्ट और ढोंगी सउदी राजघराने को अपदस्थ कर तालिबान प्रकार की सरकार स्थापित करना चाहता है जो गैर मुस्लिम विदेशियों को निकाल कर महिलाओं को हरम में वापस पहुँचाये। उसकी दृष्टि की सउदी अरब में अच्छी – खासी अपील है और यह विस्तृत रूप से बताया गया कि एक निष्पक्ष चुनाव में वह वर्तमान राजा फहद को हरा सकता है।
इसलिए रियाद में हुई हिंसा अन्त में केवल अमेरिकनों के प्रति घृणा नहीं वरन् सत्ता के लिए संघर्ष और विचारों के संघर्ष को परिलक्षित करता है और 1920 के गृह युद्ध का स्मरण दिलाता है। क्या सउदी अरब को राजशाही में ही रहना दिया जाये ताकि वह कम से कम बाहरी विश्व और आधुनिकता को आत्मसात कर सके। या फिर इसे अरब व इस्लामी अमीरात बनने दिया जो अफगानिस्तान के क्रूर शासन का पूर्णतया अवतार हो।
बाहरी विश्व के लिए विकल्प स्पष्ट है – सउदी राजशाही अनाकर्षक होते हुए भी इखवान के बुरे विकल्प से श्रेष्ठ है। इसमें दो चरणवद्ध कदम अतर्निहितहैं – इखवान प्रेरित सेना को परास्त करने के लिए राजशाही की सहायता की जाये और इस पर गम्भीर दबाव डाला जाये कि वह अपने विद्यालय पद्धति से विदेशों में वहाबी संगठनों को प्रायोजित करने तक सब कुछ सुधारे।