दस वर्षों के उपरांत उसी गर्व और उंची उठती अपेक्षाओं को प्राप्त करना जिल्लत भार होगा। राष्ट्रपति बिल क्लिंटन ने इसकी प्रशंसा इतिहास के एक महान अवसर के रुप में की थी । राज्य सचिव वारन क्रिस्टोफर ने इस मध्यस्थता पर कहा कि किस प्रकार असंभव हमारी परिधि में है । यासर अराफात ने इसे ऐतिहासिक घटना बताते हुए अत्यंत महत्वपूर्ण आरंभ बताया था । इजरायल के विदेश मंत्री शिमोन पेरेज ने इसमें मध्यपूर्व में शांति की रुप रेखा के दर्शन किए थे ।
प्रेस में इसे खूब हवा दी गई तथा समाचार पत्रों , पत्रिकाओं , टेलिविजन और रेडियो पर इसे अंतिम बिन्दू तक कवरेज दिया गया । एन्थोनी लेविस जैसे विशेषज्ञों ने भी न्यूयार्क टाइम्स में इसे ठीक ढंग से निर्मित और चमत्कृत करने वाला बताया ।
यह तिथि थी 13 सितंबर 1993 और अवसर था व्हाईट हाउस के लॉन में ओस्लो समझौते पर हस्ताक्षर । इजरायल के प्रधानमंत्री मित्जाक राबिन और फिलीस्तीनी नेता अराफात राष्ट्रपति बुश के साथ खड़े हुए और आपस में हाथ मिलाया । वर्षों के उपरांत हाथ मिलाने के परस्पर शांति का प्रतीक माना गया ।
उन्होंने अंतरिम स्वशासन व्यवस्था के सिद्धांतों की घोषणा के समझौते पर हस्ताक्षर किये और इससे चतुर्दिक आशावादी वातावरण व्याप्त हो गया कि संभवत: अरब इजरायल विवाद का समाधान होने वाला है । कुछ आशंकाओं को छोड़ दिया जाए तो ओस्लो समझौते में शानदार समाधान था जहां प्रत्येक पक्ष को वह मिला जो वह अधिकतम चाहता था ।
फिलीस्तीनियों के लिए सम्मान और स्वायत्तता तथा इजरायलवासियों के लिए मान्यता और सुरक्षा ।
परंतु इसके स्थान पर ओस्लो फिलीस्तीनियों के लिए गरीबी , भ्रष्टाचार , मौत , आत्मघाती फैक्ट्री और उग्रवादी इस्लामी कट्टरपंथ लाया । इजरायलवासियों को मुख्यत: कट्टरपंथ से जूझना पड़ा जिससे 854 लोग मारे गए और 5051 लोग घायल हुए । इसके अतिरिक्त आर्थिक और कूटनीतिक क्षति हुई वह अलग ।
इस शनिवार को 13 सितंबर 1993 की दसवीं वर्षगांठ है । इस बीच में फिलीस्तीनियों और इजरायलवासियों दोनों के लिए समान रुप से “ओस्लो” नाम गंदा हो चुका है । अब कोई भी इसे महत्वपूर्ण शुरुआत नहीं मानता ।
आखिर गड़बड़ी कहां हुई ? अनेक चीजें गड़बड़ हुईं परंतु सबसे महत्वपूर्ण कारण यह था कि यह पुरा समझौता इजरायल की इस गलत अवधारणा पर आधारित था कि फिलीस्तीनियों ने यहूदी राज्य को नष्ट करने की अपनी आशा का परित्याग कर दिया है । इससे यह अपेक्षा बलवती हुई कि यदि इजरायल पर्याप्त आर्थिक और राजनीतिक प्रलोभन देता है तो फिलीस्तीनी आधिकारिक रुप से यहूदी राज्य को मान्यता प्रदान करते हुए संघर्ष बंद कर देंगे ।
इस कारण इजरायल ने अपनी ओर से अनेक छूटों की ओर कदम बढ़ाया और निरर्थक आशा में फिलीस्तीनियों की शुभकामना प्राप्त करने के लिए लचीलापन , संयम और उदारता दिखाई । वास्तव में इन कदमों से मामला और खराब हुआ और इससे कमजोरी और गिरे हुए मनोबल का संदेश गया । प्रत्येक छूट से फिलीस्तीनियों के मन में इजरायल का भय कम होता गया और इजरायल आक्रमण के अनुकूल दिखने लगा और इस राज्य को समाप्त करने का उनका संकल्प दृढ़ होता गया ।
इसका परिणाम हुआ कि फिलीस्तीनी राजनीति के घटक और कट्टर तथा आंदोलित हो गए । भाषणों में और कृति में इजरायलवासियों की हत्या तथा इजरायल को समस्त भूमि पर दावा करते हुए इजरायल को नष्ट करने की आशा और वजनदार हो गई ।
इस प्रकार 1993 के आरंभ में ओस्लो के समय फिलीस्तीनियों की शांति आज दिखने वाली महत्वकांक्षा में परिवर्तित हो गई ।
रह –रह कर चलने वाली फिलीस्तीनी हिंसा जब सितंबर 2000 में संपूर्ण युद्ध में परिवर्तित हो गई तो अन्तत: सात साल के कल्पना लोक से इजरायल उतरा और ओस्लो के विनाश को पहचाना । परंतु उन्होंने अभी यह निश्चित नहीं किया है कि इसका स्थान कौन लेगा । इसी प्रकार अमेरिकी सरकार के महमूद अब्बास के जुए के पतन के बाद इसकी “रोडमैप “ कूटनीति भी भंवर में फंस गई है और अब इसे नये विचारों की आवश्यकता है ।
ओस्लो और रोडमैप के गलत अनुमान को स्वीकार किया जाये ( फिलीस्तीनियों द्वारा इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार करना ) ।
इस बात का संकल्प किया जाये कि यह भूल दुहराई नहीं जाएगी । यह बात समझ लेनी चाहिए कि जब तक फिलीस्तीनियों द्वारा यहूदी विरोधी फन्तासी का परित्याग नहीं कर दिया जाता तब तक इजरायल संघर्ष के समाप्ती की बात सोचना अपरिपक्वता है ।
फिलीस्तीनियों द्वारा इजरायल के अस्तित्व को स्वीकार कराना प्राथमिक लक्ष्य होना चाहिए ।
फिलीस्तीनियों को इस बात के लिए प्रभावित किया जाना चाहिए कि जितना शीघ्र वे इजरायल को स्वीकार करते हैं उतना ही उनके लिए अच्छा होगा । इसके विपरीत वो जितने लंबे समय तक अपने टकराव के रास्ते पर चलते रहेंगे कूटनीति उनके लिए किसी काम की नहीं होगी । और उन्हें आर्थिक सहायता , राज्य या हथियार के रुप में मान्यता नहीं मिलेगी ।
इजरायल को इस बात का लाईसेंस दिया जाए कि वह न केवल अपनी सुरक्षा कर सके वरन् फिलीस्तीनियों को उनके कार्य में निराश भी कर सके ।
जब लंबे समय तक पूरी नियमितता के साथ फिलीस्तीनी इस बात को सिद्ध कर दें कि वे इजरायल को स्वीकार करते हैं तभी पिछले दशक के आधार पर सीमाओं ,संसाधनों ,हथियार , पवित्रता तथा आवासीय अधिकारों के आधार पर कूटनीति आरंभ हो । जितना शीघ्र हम सही नीतियां अपनायेंगे उतना शीघ्र उनका फल निकलेगा ।