पिछले सप्ताह एफ.बी. आई से एक आश्चचर्यजनक समाचार आया। नेतृत्व ने सभी 56 ब्यूरो के क्षेत्र कार्यालयों को आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध छेड़नें के क्रम में मस्जिदों की गिनती करने को कहा है।
न्यूजवीक जिसने यह कहानी पहले पहल प्रकाशित की उसने ब्याख्या करते हुए कहा कि मस्जिदों के सम्बन्ध में सूचनाओं से ‘आतंकवाद प्रतिरोध की जाँच की गिनती के उद्देश्य और प्रत्येक क्षेत्र में गोपनीय राष्ट्रीय सुरक्षा तार टेप को सुनिश्चित किया जायेगा ’’।
न्यूयार्क टाइम्स ने एक वरिष्ठ ब्यूरो अधिकारी से एक वक्ततव्य बन्द कमरे में प्राप्त किया जिसने स्पष्ट किया कि मस्जिदों के आंकड़ों का उपयोग क्षेत्र के अधिकारियों से बड़ी संख्या में आतंकवाद जाँच और खुफिया वारन्ट को स्थापित करने में सफलता मिलेगी।
वामपंथियों और इस्लामवदियों के मध्य आक्रोश की अपेक्षा ही थी। द अमेरिकन सिविल लिबर्टीज ने मस्जिदों की गिनती को चुड़ैल का शिकार बताया। द रिलीजस एक्शन सेन्टर आफ रिफार्म जूड़ैज्म ने मौलिक संवैधानिक संरक्षण के हटने पर तीव्र चिन्ता व्यक्त की। द मुस्लिम पब्लिक अफेयर्स काउन्सिल ने इसे मान्य कानून प्रवर्तन से परे बताया।
परन्तु सर्वाधिक रंगीन प्रतिक्रिया वाशिंगटन स्थित उग्रवादी इस्लामी गुट अमेरिकन मुस्लिम काउन्सिल की ओर से आई। ए.एम.सी ने मस्जिदों की गिनती को अमरिकी सरकार द्वारा राजनीतिक दमन की संज्ञा दी और इससे तथा अन्य ‘शर्मनाक और आलोकतान्त्रिक ’ कदमों से राहत दिलाने के लिए संयुक्तराष्ट्र संघ को पत्र लिखा।
आलोचना के प्रहारों के आगे एफ.बी.आई आडम्बरी हो गया और उसने बहाना बनाया कि मस्जिद की गिनती का उद्देश्य मस्जिद आधारित आतंकवाद की सम्भावना को रोकना नहीं है परन्तु इसका आशय तो तो उन संस्थानों की आतंकवाद के प्रति पीड़ित होने की सम्भावना के बारे में जानकर भविष्य के हमलों से बेहतर तरीके से उनकी रक्षा करना है।
अमेरिकी की कानून प्रवर्तन संस्थायें अपने आतंकवाद प्रतिरोध प्रयासों को क्यों छिपाती है ? यह सर्वविदित है कि समस्त पश्चिम में कुछ मस्जिदें आतंक के आधार के रूप में अनेक भूमिकायें निभाती हैं।
हिंसा भड़काना – ब्रुकलिन की अल – फारूख मस्जिद थी जहाँ अन्धे शेख ने 1993 में वर्ल्ड ट्रेड सेन्टर पर बम विस्फोट को प्रेरित किया है।
आपरेशनों की योजना – मिलान स्थित इस्लामिक सांस्कृतिक केन्द्र अल कायदा के प्रमुख यूरोपीय बेस के रूप में कार्य करता है।
हथियारों को एकत्र करना – पिछले महीने लन्दन की फिन्सबरी पार्क मस्जिद पर छापे में अनेक हथियार बरामद हुए।
अपनी पद्धति को छुपाने में एफ. बी.आई अकेला नहीं है। आप्रवासी तथा नैसर्गिक सेवा ने पिछले महीने 25 देशों के विदेशी यात्रियों को अपने कार्यालय में पंजीकृत करवाना आवश्यक किया। आई.एन.एस ने बहाना बनाया कि वह इस बात से अनभिज्ञ है कि प्रभारित लोग मुस्लिम बहुल देशों के हैं।
आई.एन.एस ने ऐसा करने के लिए चिर परिचित अफरशाही के पीछे छुपने का बहाना लिया। इस कार्यक्रम के अन्तर्गत कहा गया, अस्थायी विदेशी यात्री जो कुछ निश्चित देशों से आते हैं या तो खुफिया आधारित मिश्रण के दायरे में आते हैं वे इस रूप से चिन्हित किये गये हैं कि वे राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए चिन्ता उतपन्न करते हैं। ’’
वास्तव में एफ.बी.आई और आई.एन.सी के पास मुसलमानों की ओर विशेष ध्यान देने के कारण झूठ बोलने का आधार है। यब व्यवहार घोषित के नीति के विपरीत है। जब राष्ट्रपति बुश ने कहा कि ‘ इस्लाम शान्ति है ’और ‘इस्लाम की शान्तिपूर्ण शिक्षाओं ’ का संदर्भ दिया तो कानून प्रवर्तन संस्था या आप्रवासी स्टाफ कैसे मान सकते हैं कि इस्लाम का उनके कार्य से कुछ लेना देना है।
दूसरे शब्दों में राजनेताओं के उड़ते शब्द और आतंकवाद प्रतिरोध की कठोर सच्चाई के मध्य बड़ा भेद है। इस विभेद की अपनी कीमत है –
सरकारी कर्मचारी अग्रिम पंक्ति में ऊहापोह में रहते हैं। प्रभावी कार्य करते हुए उन पर कानून तोड़ने या सरकारी विनियममनों को बिना भेद – भाव के संचालित करने आरोप लगता है।
लोग संशयग्रस्त हैं। नीतिगत वक्तव्य में इस्लाम और आतंकवाद के बीच सम्बन्ध से इन्कार किया जाता है परन्तु आतंककवाद से सीधे लड़ने में यह सम्बन्ध आता है।
उग्रवादी इस्लामी गुट इस दोहरेपन का शोषण करते हैं और तर्क देते हैं कि इस्लाम के विरूद्ध युद्ध को छुपाने के लिए अमेरिकी सरकार घोषणा करती है।
सामान्य मुसलमान संशयग्रस्त है। वे अपने कानों पर भरोसा करें या आँखों पर वे आडम्बरी राजनेताओं को सुनें या सीधी बात करने वाले इस्लामवादियों को। सिद्धान्त और व्यवहार के मध्य इस अन्तर को ईमानदार और खुली बहस से सम्बोधित किया जा सकता है। क्या राजनेता चाहते हैं कि मुसलमानों पर विश्ष ध्यान दिया जाये ? क्या वह मुस्लिम यात्रियों के पक्ष में है कि वे अतिरिक्त कागजी कारिवाई करें ? ये व्यवहार वर्तमान समय में अस्तित्व में हैं परन्तु बिना किसी मान्यता के या तो उन्हें समाप्त कर दिया जाये या फिर आधिकारिक बना दिया जाये ।