अगर हम वर्तमान अमेरिकी राजनीति की बात करें तो उदारवाद का युग खत्म हो गया लगता है। पता नहीं यह आत्मविश्वाशी और व्यवहारिक डेमोक्रेटिक पार्टी जिसमें जान एफ कैनेडी, हैरी ट्रूमैन और फ्रैंकलिन डी रूजवेल्ट जैसे नेता हमें दिये हैं उसे क्या हो गया है ? जोए लिबररमैन, जो इन नेताओं के व्यवहारिक उत्तराधिकारी साबित हो सकते थे,को पार्टी ने क्यों दरकिनार कर दिया है ? आखिर क्यों स्कूल मीडिया और यहाँ तक कि हालीवुड भी अमेरिकी विरोधी भावनाओं से इतना प्रभावित क्यों हो रहे है ? और वह उदारवादी ज्वार कहाँ चला गया है जिसके बारे में एन काल्टर, जैफ जैकोबी, मिशेल माल्किन और मीडिया रिसर्च सेन्टर ने व्यापक तौर पर लिखा है।
इन सारे तथ्यों को जेम्स पियरसन (मैनहहन इंस्टीच्यूट) ने अपनी पुस्तक में काफी प्रभावी और समझदारी भरे तरीके के साथ ऐतिहासिक रूप से व्याख्यायित किया है। उनकी पुस्तक कैमेलोट एंड द कल्चरल रिवोल्यूशन हाउ द एसैशिन ऑफ जान एफ कैनेडी सैटरड अमेरिकन लिबेरलिज्म। इस अमेरिकी उदारवाद के अमेरिका विरोची झुकाव के इस छोटे परन्तु महत्वपूर्ण तथ्य के साथ समझाते हैं कि ली हार्वे ओसवाल्ड न तो अलगाववादी था और न ही एक शीतयोद्धा वरन यह वास्तव में एक साम्यवादी था।
आइये एक नजर डालते हैं पियरसन के तर्को पर -
कैनेडी की हत्या (22 नवम्बर 1993) के पूर्ववर्ती चालीस वर्षों में प्रगतिवाद उदारवाद अमेरिका की प्रमुख या कहें एकमात्र सार्वजनिक दर्शन था। कैनेडी जो एक यथार्थवादी और मध्यमार्गी राजनेता थे ने इस परंपरा से ऊपर उठकर लोकतन्त्र और कल्याणकारी राज्य के विस्तार में एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाई ।
इसके ठीक विपरीति डेविट आइजनहावर जैसे रिपब्लिकन नेताओं के पास इस उदारवाद के किसी बुद्धजीवी विकल्प का भाव था, अत: उन्होंने केवल इसकी गति धीमी कर दी, पर इसे हटाया नहीं। रूढिवादी विचारधारा के अवशेषों के रूप में बचे तत्वों के नेता विलियम एफ बकले (जूनियर ) था तो नीतियों पर वस्तुत: कोई असर नहीं पड़ा। दक्षिणपंथी अतिवादी, जिसका प्रतिनिधित्व जान बिच सोसाइटी करती थी सदा ही अतार्किक और अप्रभावी कट्टरता फैलाती रही।
पियरसन के अनुसार कैनेडी की हत्या ने उदारवाद को गहरे तौर पर प्रभावित किया क्योंकि ओसवाल्ड ने जो कि एक नये तरह की विचारधारा वाला साम्यवादी था – कैनेडी की हत्या कर दी ताकि वे फिदेलल कास्त्रों के क्यूबायी शासन की एक ऐसे राष्ट्रपति से रक्षा कर सके जिसने 1962 के मिसाइल संकट के दौरान अमेरिकी सैनिक ताकत का खुलकर प्रदर्शन किया था। संक्षेप में कहे तो कैनेडी इस लिए मारे गये क्योंकि उन्होंने शीत युद्ध को कठोर तरीके से लड़ा। उदारवादियो के लिए यह तथ्य ग्राह्य नहीं था क्योंकि यह उनके विश्वास की परंपरा में नहीं आता था, अत: उन्होंने कैनेडी को एक ऐसे रूप में प्रस्तुत किया जहां वह दक्षिणपंथी अतिवाद के शिकार नजर आते हैं और उन्हें उदारवादी विचारधारा का एक महान शहीद बनाता है।
यह राजनैतिक भूल-भूलैया दो दुस्साहसी चरणों में बंटी हुई है। इसका पहला भाग है ओसवाल्ड
सबसे पहले ओसवाल्ड के साम्यवादी दृष्टिकोण की अवहेलना कर के उसे एक अतिवादी दक्षिणपंथी के रूप में परिभाषित किया गया। इसी विचारधारा के तहत न्यू आरलेन्स के डिस्ट्रीफिट अर्टानी ने टिप्पणी की थी कि ओसवाल्ड अपने आप के “मीन कैम्फ ’’ के विचारों से ज्यादा सहज मानता होता ना कि दास कैपिटल के।
इसके बाद ओसवाल्ड की पूरी भूमिका को ही कम कर दिया गया इसके लिए दो प्रमुख प्रयास किये गये 1 – एक ऐसी परिकल्पना बनाई गयी जिसमें हत्यारों की संख्या करीब सोलह थी 2 – एक ऐसी बड़ी साजिश को रचा गया जिसमें ओसवाल्ड –अमेरिकी माफिया कू-कलाक्स क्लान , कास्त्रों विरोधी क्यूबाई, श्वेत रूसी टेक्सास के तेल धनपति, अंतराष्ट्रीय बैंकर्स, सी.आई ए , एफ.बी.आई , सैनिक औद्योगिक मिलीभगत , सेना के जनरलो अथवा कैनेडी के उत्तराधिकारी लिंडन जानसन – इनमें से किसी एक अथवा एक से ज्यादा तत्वों का हथियार भर था। अब जबकि ओसवाल्ड को भी मुख्य भूमिका से लगभग हटाया जा चुका था या शायद उसे एक बलि का बकरा बना दिया गया था – तात्कालिक शासकीय तंत्र – जिसमें जानसन, जैकलिन, कैनेडी जे. एडगर हूपर और कई अन्य लोग शामिल थे ने आगे बढकर एक दूसरा और ज्यादा स्तब्धकारी कदम उठाया। उन्होंने इस पूरे हत्याकांड के लिए साम्यवादी ओसवाल्ड को जिम्मेदार नहीं माना बल्कि इसकी जिम्मेदारी अमेरिकन लोगों खासकर अतिवादी दक्षिणपंथ पर डाली दी जिन्होंने शायद कैनेडी की हत्या (कथित तौर पर) इस लिए कर दी की वे शीत युद्ध के दौरान नरम पड़ गये थे अथवा उन्होंने अमेरिकी अश्वेतों के नागरिक अधिकारों की वकालत की थी। पियरसन ने निम्नलिखित चार उदाहरणों को इस बड़ा तोड़-मरोड़ कर जीवंत उदारहणों के रूप में पेश किया है।
1.मुख्य न्यायाधीश अर्ल पारेन ने उस इस बात की निंदा की कि कुछ कट्टरपंथियों ने हमारे देश के जन जीवन में घृणा और कटुता की भावना घोल दी है।
2.सीनेट के बहुमत दल के नेता माइक मैसफील्ड ने अपना रोष प्रकट करते हुए कहा, “धर्मान्धता , घृणा, पूर्वाग्रह और उत्तेजना के मिले जुले प्रभाव ने वह क्षण पैदा किया जब कैनेडी को गोली मार दी गई ।
3.कांग्रेसमैन एडम कलैटोन फवेल ने सलाह दी हमें कैनडी के लिए नहीं वरन् अमेरिका के लिए रोना चाहिए ।
4.न्यूयार्क टाइम्स का एक संपादकीय कहता है “ पूरे अमेरिका को उस पागलपन और घृणा की भावना के लिए शर्मसार होना चाहिए जिसने राष्ट्रपति जान एफ कैनेडी की हत्या कर दी “।
ओसवाल्ड के इन उद्देश्यों औऱ अपराधबोध के प्रति इसी निरादर और अवमानना को पियरसन उदारवाद की विरोची निराशावाद के प्रति झुकाव का मूल स्रोत मानते हैं। अमेरिकन उदारवाद के सुधारवादी स्वरूप जो कि प्रगतिवादी और अग्रद्रष्टा था को एक ऐसा विचारधारा ने लील लिया जो राष्ट्रीय स्व-निंदावाद से प्रभावित है।
अमेरिका को एक असभ्य, हिसक, नस्लवादी और सैनिकवादी स्वरूप में देखने की उदारवादी दृष्टिकोण ने इसके केन्द्रबिन्दु से आर्थिक मुद्दों से विलग कर इसको सांस्कृतिक मुद्दों (जैसे कि नस्लवाद, नारीवाद., समलैगिक अधिकार आदि) उठाने में मदद की और साथ ही इसने विशेषतौर पर अमेरिका के परंपरागत संस्थानों के प्रति सवालिया वातावरण पैदा कर दिया इसी का एक अंग है अमेरिकी सेना की तैनाती पर उठ रहे प्रश्न चिन्ह जो आज 44 साल बाद उदारवादी दृष्टिकोण का एक प्रमुख पहलू है ।
तो क्या ओसवाल्ड की यह गंदी विरासत आज 2007 में भी जिन्दा है और आज भी उदारवाद को विकृत कर रही है तथा अब भी राष्ट्रीय महत्व की बहसों को प्रदूषित कर रही है।