वैसे तो बुश प्रशासन की आतंकवादी विरोधी नीतियाँ काफी कठोर नजर आती हैं, पर अदालतों के अंदर ये कई बार छू-मंतर हो जाती है और हमेशा विदेशी आतंकियों के पक्ष में काम करती हैं न कि इस आतंक के शिकार अमेरिकियों के पक्ष में
इसका एक जोरदार उदाहरण है सितम्बर 1997 में जेरूसलेम में हुआ एक आत्मघाती बम विस्फोट । इस विस्फोट में, जिसकी जिम्मेदारी हमास ने ले रखी है, 5 लोग मारे गये थे और 192 लोग घायल हुए थे, जिनमें कई अमेरिकी भी शामिल थे। इस सर्वज्ञात तथ्य कि ईरान हमास की आर्थिक मदद करता है के आधार पर पाँच घायल अमेरिकी नागरिकों ने ईरान के खिलाफ एक क्षतिपूर्ति का केस किया है।
विशेषज्ञों के ज्ञापनों द्वारा जब ईरानी प्रशासन की इस सारे मामले में लिप्तता साबित हो गई, तो माननीय जज रिकार्डो एम अरबिना ने फारेन सांवरेन इम्युनिटीज एक्ट के फुलटाअ एमेंडमेट को ध्यान में रखते हुए ईरानी सरकार और इसके रिपब्लिकन गार्ड सेना पर 25 मिलियन अमेरिकी डालर का क्षतिपूर्ति आदेश जारी किया।
वादियों ने अमेरिका के टेररिज्म रिस्क इन्सयुरेन्स एक्ट 2002 के अल्प ज्ञात सेक्शन 2010 के प्रावधानो के तहत अमेरिकी में ईरान की सम्पत्ति को जब्त करने का आग्रह किया। यह प्रावधान साफ – साफ कहता है, कानून के किसी अन्य प्रावधान के बावजूद हर उस केस में जहाँ पीड़ित पक्ष ने एक आतंकवादी पक्ष के खिलाफ कोई केस जीता हो, आतंकवादी पक्ष की जब्त सम्पत्ति को तत्काल आधार पर हासिल कर लेना चाहिए ’’।
हालांकि अमेरिका में ईरानी सम्पत्ति को खोजना एक दुष्कर काम साबित हुआ, क्योंकि इसमें ज्यादातर को ईरानी प्रशासकों ने 1979 – 80 के बंधक संकट प्रकरण के दौरान वापस ले लिया था। अत: पीड़ितो के वकील प्रोजिडेंस आर आई के डेविड स्टार्चमैन ने कुछ अनोखे प्रयायों का सहारा लिया। इसी तहत उन्होंने शिकागो विश्वविद्यालय द्वारा ईरानी क्ले टैबलेट्स को वापस करने ( जो सत्तर साल से इस विश्वविद्यालय के पास उधार स्वरूप थे) पर रोक लगवाया।
स्टार्चमैन सिर्फ एक मामले में ईरानी सरकार के अमेरिकी सम्पत्ति का पता लगा पाये। बैंक ऑफ न्यूयार्क की एक शाखा में ईरान के सबसे बड़े बैंक बैंक मेल्ली – जो एक पूर्णत: शासकीय संगठन है – के एक एकाउंट में करीब डेढ़ लाख अमेरिकी डालर जमा थे। फिर भी जब वादियों ने इस धनराशि को प्राप्त करने के लिए मुकदमा दायर किया तो जवाब में बैंक ऑफ न्यूयार्क ने बैंक मेल्ली की सम्पत्ति के बारे में कानूनी राय जानने के लिए संघीय अदालत की शरण ली।
इस केस में पीड़ितो का पक्ष दो प्रमुख आधारों पर आसान नजर आता था। पहला अमेरिकी सरकार बैंक मेल्ली को ईरानी सरकार द्वारा पूर्णत: नियंत्रित संगठन मानती है और दूसरा यह कि ईरानी सरकार को एक आतंकवादी पक्ष मान लिया गया था।
पर ऐसा हुआ नहीं अपितु अमेरिका का कानून विभाग बैंक मेल्ली की तरफ से एक अमिकस क्यूटी (अदालत के सहायक ) के तौर पर इस केस में शामिल हुआ। अमेरिका के वित्तविभाग की एक प्रवक्ता के अनुसार यह कदम अमेरिकी प्रावधानों के सही रूप से निर्धारण के लिए उठाया गया था। इस दलील ने जज डेनिस कीटे को इस हद तक प्रभावित किया कि उन्होंने अमेरिकी कानूनी विभाग और बैंक मेल्ली के संयुक्तवाद को मार्च 2006 में पूर्णत: स्वीकार करते हुआ, पीड़ितों को धनराशि देने के खिलाफ एक आदेश दिया। पीड़ित पक्ष ने पुन: सेकेंड सर्किट कोर्ट में अपील की पर उसने भी कानून विभाग का ही साथ दिया और अप्रैल 2007 में इस केस को खारिज कर दिया।
जैसे ही यह फैसला आया और बैंक मेल्ली का यह फंड उसके आधिकार में आया, उसने तुरन्त इस पैसे को निकाल कर इसे अमेरिकी अधिकार क्षेत्र से बाहर कर दिया।
पर यह कहानी यहीं खत्म नहीं होती । अक्टुबर 25, 2007 को अमेरिकी गृह मंत्रालय ने घोषणा की कि बैंक मेल्ली को अब से अमेरिकी अर्थ तंत्र से दूर ऱखा जायेगा क्योंकि यह ईरानी मिशाइल और परमाणु कार्यक्रम से जुड़ी कई संगठनो को बैंकिग सेवा प्रदान करता है और इसने कई मामलों में संवेदनशील सामग्रियों की खरीद में भी उनकी सहयता की है। साथ यह भी पाया गया कि बैंक मेल्ली ने करीब सौ मिलियन डालर की रकम ईरान द्वारा पोषित आतंकवादी संगठनों तक पहुँचायी है और इसमें हमास भी शामिल था जिसने 1997 की घटना को अंजाम देने वाले आतंकियों को प्रशिक्षण दिया था।
ये सारी कहानी उस एक बड़े प्रयास का हिस्सा मात्र है जिसमें अमेरिकी संघीय एजेंसियां आतंकवादियों के पक्ष में कोर्ट में खड़ी पायी जाती है, जबकि बाहर वे उन्हीं से लड़ रही होती है। आखिर बैंक मेल्ली को कानूनी समर्थन और बाद में उस पर प्रतिबंध, दोनों एक साथ सही कैसे हो सकता है ?
इस पूरे मामले में कई ऐसे तथ्य हैं जो इस बात को साबित करते है –
1 कानून मंत्रालय ने शिकागो विश्वविद्यालय वाले केस में पीड़ितों के दावे के खिलाफ तेहरान का समर्थन किया।
2 उन्होंने एक अन्य मामले में मात्र दस हजार अमेरिकी डालर के एक ईरानी फंड को एक पीड़ित परिवार को दिये जाने से रोका और जब एक निचली अदालत ने इस पर फैसला दिया तो इसके खिलाफ अपील की गयी ।
3 उन्होंने उंगार हमास के मामले में हस्तक्षेप कर करीब पचास लाख अमेरिकी डालर की राशि को अनाथ पीड़ितों के पास जाने से रोका यह राशि होली लैंड़ फाउंडेशन
नामक एक संस्था के पास थी जो हमास की टेक्सास शाखा जैसी है।
4 उंगार बनाम पी .एल. ओ मामले में गृह मंत्रालय ने फिलीस्तीन मुक्ति संगठन का खुलकर बचाव करते हुए उंगार के उस प्रयास को विफल कर दिया जिसके तहत वह पी.एल ओ के मैनहट्टन स्थित कार्यालय को नीलाम करवा कर अदालत द्वारा इसके पक्ष में दिये गये 116 मिलियन डालर के फैसले का निर्वहन करना चाहती थी।
क्या यह सब कुछ एक निरंतर रूप से आतंकवाद का पक्ष लेती अमेरिकी सरकार की नीति का कुछ एक गहरा दाँव माना जा सकता है। जैसा कि स्टार्चमैन कहते हैं इस नीति ने एक बार भी अदालतो में आतंक पीड़ितों के पक्ष में किसी फैसले का समर्थन नहीं किया। ऐसी स्थिति में यही आशा की जा सकती है की इन भटकी हुई नीतियों को सुधारने के लिए किसी भयानक आतंकी त्रासदी की जरूरत न पड़े।