आखिर मध्यपूर्व आधुनिक जीवन के लिए इतना जटिल क्यों है ? जीवन स्तर से साक्षरता तक और सैन्य कुशलता से राजनीतिक विकास तक सभी में पीछे क्यों है ?
मैकगिल विश्वविद्यालय के प्रोफेसर फिलिप कार्ल साल्जमान की गम्भीर पुस्तक जिसके सपाट शीर्षक कल्चर एण्ड कनफ्लिक्ट इन मिडिल ईस्ट से उसकी गहराई का बोध नहीं होता,मध्यपूर्व की समस्याओं का एक साहसिक और मौलिक विश्लेषण प्रस्तुत करती है।
नृतत्वशास्त्री साल्जमान ने मध्यपूर्व के शासन की दो परिपाटियों को रेखांकित किया है जिसने ऐतिहासिक रूप से मध्य पूर्व पर नियन्त्रण रखा और ये हैं कबायली स्वायतत्ता और दमनकारी केन्द्रीयता। उनके अनुसार पहली परिपाटी क्षेत्र के लिए विशिष्ट है और इसे समझने की चाबी है। साल्जमान के अनुसार कबायली स्वशासन सनतुलित विरोध पर आधारित है जो कि एक व्यवस्था है जिससे रेगिस्तान, पर्वतों में रहने वाले मध्यपूर्व निवासी अपने विस्तृत परिवारों पर निर्भर करते हैं।
इस पूरी तरह जटिल और नाजुक व्यवस्था के अन्तर्गत प्रत्येक व्यक्ति अपनी सुरक्षा के लिए अपने पैतृक सम्बन्धियों की समान इकाई एक दूसरे के साथ संघर्ष करती है। इस प्रकार एक एक परिवार दूसरे परिवार से , एक वंश दूसरे वंश से लड़ता है और यह कबीला स्तर तक चलता रहता है। जैसा कि मध्य पूर्व के एक स्पष्ट वक्ता ने इन संघर्षों के सम्बन्ध में संक्षेप में कहा है , मेरे भाई मेरे भाई के विरूद्ध हैं और मेरे चचेरे भाई चचेरे भाई के विरूद्ध हैं और मेरे भाई व चचेरे समस्त विश्व के विरूद्ध हैं ”।
इसका सकारात्मक पक्ष यह है कि इस प्रकार जुड़ाव की एकता के कारण दमनकारी राज्य से सम्मानजनक स्वतन्त्रता बनी रहती है। नकारात्मक पक्ष यह है कि इसमें कभी समाप्त न होने वाला संघर्ष अन्तर्निहित है, प्रत्येक गुट के पास अनेक गुणा शत्रु होते हैं और रंजिश अनेक पीढ़ियों तक चलती रहती है ।
जैसा कि महान इतिहासकार इब्न खालदन ने 6 शताब्दी पहले पर्यवेक्षित किया था कि कबायली स्वायत्तता ने मध्य पूर्व के इतिहास को संचालित किया है । जब सरकार गतिहीन हो जाती है तो बड़े कबायली परिसंघ बनते हैं और अपनी रेगिस्तानी भूमि को छोड़कर शहरो की कृषियोग्य भूमि पर नियन्त्रण स्थापित कर लेते हैं। राज्यों पर नियन्त्रण करने के बाद कबायलियों ने अपने हितो की पूर्ति के लिए खुलकर अपनी शक्ति का उपयोग किया, क्रूरता से अपनी प्रजा का शोषण किया जब तक कि उनकी अपनी सरकार गतिहीन नहीं हो गई और नये सिरे वही चक्र आरम्भ नहीं हो गया ।
साल्जमान की यात्रा मानों इब्न खालदन का विस्तार करते हुए दिखाती है कि किस प्रकार कबायली स्वाशासन और दमनकारी केन्द्रीयता अब भी मध्य पूर्व के जीवन को परिभाषित करती है और इसी आधार पर क्षेत्र की विशेषता अधिनायकवाद, राजनीतिक दयाहीनता और आर्थिक ठहराव की व्याख्या की जा सकती है।
इसके साथ ही इजरायल को समाप्त करने के युद्ध और अधिक सामान्य रूप से इस्लाम की खूनी सीमायें और गैर मुसलमानों के प्रति व्यापक शत्रुता भी आती है ।
यहाँ तक कि ये दोनों परिपाटियाँ मध्य – पूर्व के परिवारिक जीवन के प्रमुख लक्षणों की भी व्याख्या करती हैं। साल्जमान के अनुसार अपने पैतृक रिश्तेदारों को पड़ोसी से अधिक करने का अर्थ है ऐसी रणनीति विकसित करना कि उनके पुरूष वंश को संख्या से पछाड़ा जा सके। इसके अनेक परिणाम हैं –
किसी लड़की का विवाह चचेरे भाई से करते हुए परिवार को उसकी सन्तानोत्पादकता का लाभ दिलाना।
बहु विवाह का संरक्षण करना ताकि अनेक महिलाओं की सन्तानोत्पादकता का लाभ उठाया जा सके।
अन्य परिवारों की महिलाओं पर बारीक नजर रखना इस आशा के साथ कि उन्हें अनैतिक कार्य में पकड़ कर उस परिवार के पुरूषों को उन्हें मारने के लिए प्ररित कर उस परिवार की सन्तानोत्पादकता को जब्त किया जा सके।
यह अन्तिम बिन्दु प्रदर्शित करता है कि यह सन्तुलित विरोध बड़ी मात्रा में मध्य – पूर्व की परम्परा ‘आनर किलिंग ’ या परिवार की प्रतिष्ठा के लिए महिलाओं को मारना के लिए उत्तरदायी है जहाँ भाई बहन को , चचेरा भाई चचेरी बहन को, पिता – पुत्री को और पुत्र अपनी माँ की हत्या कर देता है। महत्वपूर्ण बात यह है कि महिलाओं का कोई आपात्तिजनक कार्य परिवार के अंदर सहनीय है और उनकी हत्या तभी होती है जब यह बात परिवार के बाहर होती है ।
और विस्तार से कहें तो सनतुलित विरोध का अर्थ है कि मध्य-पूर्व के पास ऐसे स्पष्ट सिद्धान्त नहीं हैं जिसके आधार पर यह मापा जा सके कि विशेष कार्यों को करने वाले की परवाह किये बिना कार्य का विशेष पैमाना क्या है ? इसके बजाय सघन रूप से विशेष वाद के कारण दूसरे के विरूद्ध करीबी रिश्तेदार का समर्थन किया जायेगा गल्ती फिर चाहे जिसकी हो। कबायली और प्रजा न कि नागरिक इस क्षेत्र में रहते हैं। अधिकांश मध्य पूर्व वासी वे बनाम हम की जिस मानसिकता को पूरे विश्व पर, कानून के शासन पर और संविधानवाद पर लागू करते हैं। साल्जमान लिखते हैं कि इन परिपाटियों में उलझने के कारण मध्यपूर्व का समाज सांस्कृतिक , आर्थिक और राजनीतिक पैमाने पर बुरा प्रदर्शन करता है। जैसे यह क्षेत्र आधुनिक बनाने में असफल रहता है और भी पिछड़ता जाता है । इसका विकास तभी सम्भव है जब यह जुड़ाव की एकता से स्वयं को तोड़ ले। ऐसा पुराने परम्परागत गुट को नये विकसित गुट ( राजनीतिक दल ) का स्थान लेने से नहीं वरन् व्यक्तियों के स्थान पर समूहों के आने से होगा। मध्यपूर्व में व्यक्तिवाद तभी स्थान बना सकेगा जब यह महत्वपूर्ण होगा कि वे कौंन हैं न कि वे किसके विरूद्ध हैं ऐसा परिवर्तन होने में दशकों और शताब्दियों लग सकते हैं। परन्तु साल्जमान के गम्भीर अध्ययन से इस क्षेत्र की अजीब पीड़ा को समझने और समाधान का रास्ता मिल गया है।