उग्रवादी इस्लाम लोगों को मार रहा है पर राजनेता और पत्रकारों ने अपनी आंखें फेर रखी हैं।
एक कष्टदायक उदाहरण पाकिस्तान का है जहाँ पिछले एक वर्ष में स्थानीय और विदेशी ईसाइयों पर आक्रमण हुआ है।
- 28 अक्टूबर: बहावलपुर सेंट डोमिनिक चर्च पर आक्रमण हुआ और 16 लोगों की मौत हुई।
- 17 मार्च: इस्लामाबाद में प्रोटेस्टेंट इंटरनेशनल चर्च पर आक्रमण और दो अमेरिकियों सहित पाँच लोग मारे गये।
- 22 मई:पाकिस्तान के कराची डाओसिस चर्च के प्रशानकीय सचिव पर आक्रमण और उसे कुर्सी से बाँधकर जहर की सुई लगा दी गयी।
- 5 अगस्त: मुरे ईसाई स्कूल पर आक्रमण में छ्ह लोग मारे गये।
- 9 अगस्त: तक्षशिला स्थित ईसाई अस्पताल में आक्रमण जहाँ चार लोग मारे गये।
25 सितम्बर: कराची स्थित ईसाई प्रदाय संस्थान इंस्टीट्यूट फार पीस एंड जस्टिस पर आक्रमण जहाँ सात लोग मारे गये।
इसी प्रकार चर्चों और चर्च सेवाओं पर अनेक आक्रमण जारी है जिसमें मौत नहीं हुई और इनमें सबसे नवीनतम बीते रविवार का है। इन आक्रमणों को अंजाम देने वालों के आशय को लेकर कोई सन्देह नहीं है। उग्रवादी इस्लामी गुट बेशर्मी से अपने बारे में बोलते हैं कि उनका उद्देश्य “ ईसाइयों को मारना है” और उसके बाद “ अविश्वासियों को मारना”।
पीडितों को पूरी तरह पता है कि उन्हें निशाना क्यों बनाया जा रहा है केवल इसलिये कि वे ईसाई हैं जैसा कि एक ने कहा भी। एक स्थानीय ईसाई नेता ने कहा, “ आतंकवादी आक्रमण अल कायदा या फिर तालिबान समर्थक किसी संगठन का था”।
पाकिस्तानी कानून प्रवर्तक संस्था भी इस बात को मान्य करती हैं कि कौन इस हिंसा में लिप्त है और क्यों। शहर के प्रमुख जाँचकर्ता बताते हैं कि , “ हम इस बात की जाँच कर रहे हैं कि जिहादियों से बना कोई ईसाई विरोधी गुट तो कराची में सक्रिय नहीं है”।
25 सितम्बर के सामूहिक हत्याकाण्ड पर प्रांतीय पुलिस प्रमुख ने टिप्पणी की , “ सामान्य आतंकवादियों से भिन्न पिछले सप्ताह हत्यारों ने कोई शीघ्रता नहीं दिखाई। उन्होंने कुल 15 मिनट बिताये और ईसाइयों को भीड से पृथक किया और इस बात को सुनिश्चित किया कि उनमें से प्रत्येक जघन्य मृत्यु को प्राप्त हो”।
उस सामूहिक नरसंहार से बचे एक व्यक्ति ने घटना को याद करते हुए कहा कि हत्यारों ने प्रत्येक ईसाई को मुसलमान से पृथक किया और प्रत्येक बन्धक से कुरान दुहराने को कहा। जो ऐसा नहीं कर सके उन्हॆं पुस्तकालय में मेज पर बैठा दिया गया, और कुर्सी पर बैठा कर सर पर गोली मार दी गयी केवल एक व्यक्ति को छोडकर जिसे स्नानघर में ले जाकर मारा गया।
राजनेता और पत्रकार समस्या को समझ नहीं पाने का नाटक कर रहे हैं। 25 सितम्बर के सामूहिक हत्याकाण्ड पर पाकिस्तान के राष्ट्रपति ने एक भ्रमित प्रतिक्रिया दी, “ मैं नहीं कह सकता कि इस हत्याकाण्ड के पीछे कौन है। यह अल कायदा हो सकता है, कोई अलगाववादी संगठन हो सकता है या फिर विदेशी शक्तियाँ रा ( भारत की खुफिया एजेंसी) भी हो सकता है। पाकिस्तान के गृहमंत्री ने भी इसी प्रकार जोर देकर दुहराया कि रा की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता।
मीडिया की स्थिति तो इससे भी बुरी है। फ्रीडम हाउस के पाल मार्शल ने तो दिखाया कि इस पाकिस्तान में सामूहिक हत्याकाण्ड के विषय पर अमेरिका और यूरोपीय रिपोर्टिंग उग्रवादी इस्लामी आयाम को नजरअन्दाज कर रही है इसके बजाय इन उत्पीडनों को व्यापक रूप से पश्चिम विरोधी सिद्ध किया जा रहा है।
पाकिस्तान के सन्दर्भ में यह अवहेलना और अस्पष्ट अभिव्यक्ति की परिपाटी इस विषय पर अपनाये जाने वाले सामान्य सन्दर्भ को स्पष्ट करती है। राष्ट्रपति बुश ने उग्रवादी इस्लाम के विरुद्ध नहीं वरन एक ऐसे रूपहीन शत्रु के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की है जिसे “ आतंकवादी”, “ आतंकवादियों का कट्टरपंथी नेट्वर्क”, “ इस विश्व के आतंकवादी जो शांति के विचार के साथ नहीं खडे हो सकते”, “ वैश्विक पहुँच वाला आतंकवाद” , बुराईवाले” , “ खतरनाक लोगों का समूह”, “ मारने वालों का समूह” और “ बिना देश वाले लोग” जिसे इन नामों से पुकारा जाता है।
स्थापित मीडिया तो भुलावे में है। सीएनएन के लो डोब्स के अपवाद को छोड दें जो कि “ कट्टरपंथी इस्लाम के विरुद्ध युद्ध” की बात करते हैं यह बिना सोचे समझे सरकार के आधार पर उसी के विचार को ध्वनित करता है कि इस संघर्ष का धार्मिक प्रेरणा से कोई लेना देना नहीं है। यह बिलकुल वैसा ही है जैसे पर्ल हार्बर पर आक्रमण के बाद फ्रैंकलिन रूजवेल्ट ने आश्चर्यजनक आक्रमण के विरुद्ध युद्ध की घोषणा की थी न कि जापानी साम्राज्य के विरुद्ध।
इस प्रकार बचने के अपने परिणाम हैं जिस शत्रु को नाम नहीं दिया जा सकता उसे परास्त भी नहीं किया जा सकता। जब “ आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध” “ कट्टरपंथी इस्लाम के विरुद्ध” बनेगा तभी वास्तव में इसे विजित किया जा सकता है।
सौभाग्यवश इस बारे में राष्ट्रपति ने एक बार संकेत दिया है जब मई में उन्होंने उन्हें शत्रु बताया “ जो यहूदियों, ईसाइयों और उन सभी मुसलमानों से घृणा करते हैं जो उनसे असहमत हैं”
यह आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध नहीं है, न ही इस्लाम के विरुद्ध युद्ध है। यह इस्लाम के आतंकवादी संस्करण के विरुद्ध युद्ध है। संयुक्त राज्य अमेरिका, पाकिस्तान और अन्य स्थानों पर लोगों यह अप्रिय तथ्य स्वीकार करना होगा। ऐसा नहीं करने से अनावश्यक लोगों की जान जाती रहेगी।