हम यह बात जानते हैं कि मार्क्स, लेनिन, स्टालिन और माओ क्या चाहते थे ( सभी चीजों पर राज्य का नियंत्रण) और यह भी जानते हैं कि उन्होंने इस लक्ष्य को कैसे प्राप्त किया ( क्रूर अधिनायकवाद) परंतु उनके उत्तराधिकारी क्या चाहते हैं और इसे किस प्रकार प्राप्त करने की आशा रखते हैं? यह एक ऐसा जिज्ञासा का विषय है जिसका परीक्षण नहीं किया गया है।
अभी आरबिस के नवीनतम अंक में बफालो विश्वविद्यालय के अरनेस्ट स्टेनबर्ग ने अपने आलेख में इस विषय के उत्तर दिये हैं जो निश्चय ही आंखें खोल देने वाला है। "Purifying the World: What the New Radical Ideology Stands For.। वे अपनी बात आरम्भ करते हुए वर्तमान अतिवामपंथ के सम्बन्ध में उन तथ्यों का चित्रण करते हैं जिनका वह विरोध करता है ( यह नरम वामपंथ के विपरीत है) और जो यह चाहता है।
वामपंथ किसका विरोध करता है- प्रमुख शत्रु " साम्राज्य" है ( इसके लिये किसी अन्य निश्चित लेख की आवश्यकता नहीं है) एक काल्पनिक वैश्विक एकत्व जो कि विश्व पर नियंत्रण रखता है, उसका शोषण करता है और विश्व का उत्पीडन करता है। स्टेनबर्ग वामपंथ द्वारा साम्राज्य के सम्बन्ध में माने गये दोषों का ब्यौरा देते हैं-
लोग गरीबी में रहते हैं, खाद्य पदार्थ विषाक्त हैं, उत्पाद नकली हैं, लोगों को अवशिष्ट चीजों का उपभोग करने के लिये बाध्य किया जाता है, विभिन्न क्षेत्रों से मूल लोगों को हटाया जाता है और प्रकृति के साथ छेडछाड की जाती है। आक्रांता बेरोकटोक होते हैं, ग्लेशियर पिघल रहे हैं, मौसम अव्यवस्थित हो गये हैं जिससे विश्व के समक्ष विनाश का खतरा उत्पन्न हो गया है।
साम्राज्य यह सब " आर्थिक उदारीकरण, सैन्यवाद, बहुराष्ट्रीय कम्पनियों, कारपोरेट मीडिया और निगरानी वाली तकनीकों के द्वारा सम्भव करता है। क्योंकि पूँजीवाद से लाखों लोगों की मृत्यु हुई है और गैर पूँजीवादी व्यवस्था समाप्त होगी इसलिये यह भी सामूहिक नरसंहार की दोषी है।
संयुक्त राज्य अमेरिका निश्चित रूप से महान शैतान है जिस पर आरोप है कि उसने अकूत संसाधन एकत्र किये हैं। इसकी सेना गरीबों का उत्पीडन करती है ताकि इसके उद्यम उनका शोषण कर सकें। इसकी सरकार कृत्रिम रूप से आतंकवाद के खतरे को प्रोत्साहन देती है ताकि बाहर के देशों पर आक्रमण किया जा सके और देश में लोगों को दबाया जा सके।
और इजरायल छोटा शैतान है जो साम्राज्य का दुष्ट साथी है- या फिर शायद यहूदी राज्य ही असली स्वामी है। ब्राजील की विश्व सामाजिक मंच की बैठक से डरबन में संयुक्त राष्ट्र संघ के रंगभेद विरोधी सम्मेलन तक इजरायलवाद को एक आत्यंतिक बुराई के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। इजरायल क्यों? सेमेटिक विरोध से परे पश्चिमी देश स्वयं सदैव एक खतरे में जीते हैं जो कि बदले में उन्हें लगातार युद्ध में लिप्त रहने को विवश करता है। सभी सन्दर्भों से परे हटते हुए स्टेनबर्ग कहते हैं, " इजरायल के कार्य उसे आक्रांता की छवि में उपयुक्त रूप से स्थापित कर देते हैं"
साम्राज्य के श्रेष्ठ संसाधनों से टक्कर लेने के लिये वामपंथ को चाहिये कि वह इसके किसी विरोधी के साथ हाथ मिलाये इसमें प्रमुख इस्लामवाद है। इस्लामवाद के लक्ष्य वामपंथ के विरोधाभाषी हैं लेकिन कोई बात नहीं जब तक इस्लामवादी साम्राज्य के विरुद्ध लडाई में सहयोग दे रहे हैं इस गठबन्धन में उनका उपयोगी स्थान है।
वामपंथ क्या चाहता है- एक सटीक शब्द में कहें तो प्रामाणिकता- साम्राज्य की कृत्रिमता ने मूलवंशियों को लुप्तप्राय संस्कृति के समकक्ष बना दिया है। संस्कृति को मूलवंशी होना चाहिये, जीवंत और साम्राज्य के वर्णशंकर उपभोग्तावाद से रक्षित होना चाहिये ( हालीवुड) इसका कृत्रिम तर्कवाद और इसका झूठा स्वतंत्रता का सिद्धांत।
दूसरा प्रमुख शब्द है लोकतंत्र- वामपंथ सुदूर और औपचारिक ढाँचे के परिपक्व गणतंत्र को अस्वीकार कर जमीनी स्तर के , अनियंत्रित लोकतन्त्र को प्राथमिकता देता है जहाँ प्रत्यक्ष आवाज की सम्भावनायें अधिक रहती हैं। स्टेनबर्ग ने लोकतांत्रिक प्रक्रिया की व्याख्या करते हुए कहा, " यह उन बैठकों के माध्यम से आगे बढेगी जहाँ हेरा फेरी के कानून का शासन न हो, प्रक्रिया, उदाहरण और सोपानक्रम न हो" ये ऊँचे उड्ने वाले शब्द सुनने में भले ही अच्छे लगें परंतु ये कानून, प्रक्रिया, उदाहरण और सोपानक्रम वास्तव में किसी वास्तविक उद्देश्य को ही पूरा करते हैं।
तीसरा है सातत्य- अर्थव्यवस्था को पृथ्वी के पर्यावरण के साथ आत्मसात करने के किये नयी व्यवस्था, " वैकल्पिक ऊर्जा के स्रोतों से चलेगी, जैविक खेती होगी, स्थानीय खाद्य बाजार होंगे और बन्द क्षेत्र में चक्रानुवर्ती उद्योग होंगे यदि इनकी आवश्यकता होगी। लोग सार्वजनिक परिवहन का सहारा लेंगे या फिर ऐसी कार पर चलेंगे जो पृथ्वी पर धीरे से चलेगी या फिर बेहतर होगा कि साइकिल पर चलेंगे। लोग प्रकृति के अनुकूल भवनों में रहेंगे जो कि स्थानीय सामग्री से बने होंगे और ऐसे शहरों में बसेंगे जो कि जैविक क्षेत्र में जैविक ढंग से विकसित होंगे। जीवन पूरी तरह कार्बन पदार्थों से मुक्त होगा। यह स्थाई जीवन होगा"।
समाजवाद निश्चित रूप से इस चित्र का भाग है परंतु इसमें अर्थव्यवस्था का भाग महत्वपूर्ण नहीं है। अब नये वामपंथ का लक्ष्य अधिक जटिल है और यह मात्र पूँजीवाद विरोध ही नहीं है और यह पूरी जीवन शैली का निर्माण कर रहा है। स्टेनबर्ग ने इस आन्दोलन को विश्व शुद्धीकरण का नाम दिया है परंतु मैं इसके लिये वामपंथी फासीवाद नाम उचित ठहराता हूँ।
इसके बाद वे एक प्रमुख प्रश्न पूछते है- क्या वामपंथ का नवीनतम अवतार एक बार फिर अधिनायकवाद की ओर मुड जायेगा? यद्यपि इस सम्बन्ध में कुछ भी निश्चय से कहना उन्हें अभी जल्दबाजी लग रहा है परंतु वे कुछ " अधिनायकवादी चेतावनियों के संकेत" करते हैं, इसमें शत्रुओं को मानवता के स्तर से नीचे गिराना और सामूहिक नरसंहार के अरोप। वे एक ऐसे बिन्दु की चेतावनी देते हैं जब वामपंथी फासीवादी " अपनी लफ्फाजी पर सही रूप से खडे होंगे और आत्मघाती पेटी का सहारा लेंगे या शहीद होने के लिये हाथों में हथियार उठायेंगे"। दूसरे शब्दों में खतरा वास्तविक और सम्मुख है।
दो दशक पूर्व बर्लिन की दीवार गिरने के बाद कुछ लोग इन अवधारणाओं के फैशन में जी रहे थे कि अब विचारधाराओं का अंत हो गया। वामपंथ ने लेनिनवाद के बाद एक बार फिर स्वयं को तैयार किया है और वह भी नये पश्चिम विरोधी, तर्क वाद विरोधी, स्वतंत्रता विरोधी और व्यक्ति स्वातंत्र्य विरोधी विचारधारा के साथ।