7 जुलाई को लन्दन में हुए बम विस्फोट में इस्लामवादियों के हाथों 52 लोगों की मृत्यु और 700 लोगों के घायल होने के उपरांत ब्रिटिश अधिकारी इस बात के लिये प्रेरित हुए कि भविष्य़ में ऐसी घटनाओं की पुनरावृत्ति रोकने के लिये मुसलमानों के साथ कार्य किया जाये।
यद्यपि उन इस्लामवाद विरोधी मुसलमानों को जो कि यूरोप में शरियत कानून को लागू करवाने के हर्षातिरेकी अभियान के विरोधी हैं उन्हें साथ लेने के स्थान पर इन अधिकारियों ने अहिंसक इस्लामवादियों को प्रोत्साहित किया और वह भी आशा के साथ कि ये लोग अपने मजहब के अनुयायियों को इस बात के लिये समझा सकेंगे कि वे कानूनसम्मत ढंग से पश्चिम के प्रति अपने आक्रोश को व्यक्त करें। इन प्रयासों की सबसे बडी झलक है एक प्रमुख इस्लामवादी बौद्धिक तारिक रमादान ( जन्म 1962)। उदाहरणार्थ लन्दन की मेट्रोपोलिटन पुलिस ने आंशिक रूप से उस सम्मेलन को आर्थिक सहायता दी जिसे रमादान ने सम्बोधित किया और टोनी ब्लेयर ने अतिवाद का सामना करने के लिये गठित कार्यदल में आधिकारिक रूप से रमादान को शामिल किया।
एक इस्लामवादी को नियुक्त करने का विचार देखने में तो मौलिक और चतुर लग सकता है लेकिन ऐसा था नहीं। पश्चिमी सरकारें इस्लामवादियों को अनेक दशकों से अपना सहयोगी बनाकर चल रही हैं और वह भी बिना किसी सफलता के। वास्तव में वे रमादान के परिवार को सहयोगी बना कर चल रहे हैं।
1953 में ड्वीट डी आईजनहावर ने विदेशी मुसलमानों के एक वर्ग की मेजबानी की थी जिसमें सैयद रमादान भी शामिल थे ( 1926-95) जो कि बीसवीं शताब्दी के सबसे प्रभावी इस्लामवादी संगठन के नेता थे जो कि तारिक के पिता थे और घोर पश्चिम विरोधी मुस्लिम ब्रदरहुड संगठन के नेता थे। आईजनहावर और रमादान की यह भेंट सोवियत कम्युनिज्म के विरुद्ध अमेरिकी सरकार द्वारा मुसलमानों का सहयोग लेने के प्रयास का अंग था और कुछ अन्शों में सैयद रमादान को सीआईए के लिये सेवायें देने के लिये राजी करना था। एक अमेरिकी कूटनयिक टाल्कोट सीले जो कि उस बैठक में उनसे मिला था अपनी व्याख्या में कहा, " हमें लगा कि इस्लाम कम्युनिज्म को संतुलित कर सकता है"
उससे पूर्व हसन अल बना ( 1906-49) जो कि तारिक के दादा थे और मुस्लिम ब्रदरहुड के संस्थापक थे और नाजी आर्थिक सहायता प्राप्त करते थे उनसे अमेरिकी कूटनयिक 1940 के अंत मे कैरो में नियमित रूप से मिलते थे और उन्हें अत्यंत सहानुभूतिपरक बताते हुए उनके संगठन के सम्बन्ध में धारणा बनाई कि वह नरमपंथी और सकारात्मक शक्ति है। ब्रिटिश लोगों ने तो अल बना को सीधे सीधे धन भी उपलब्ध कराया।
दूसरे शब्दों में पश्चिमी सरकारों का इस्लामवाद की विद्रोही विचारधारा की अवहेलना करते हुए उसके साथ कार्य करने और यहाँ तक कि उसे सशक्त करने का इतिहास है।
एक अनुसन्धानात्मक ऐतिहासिक शोध में पूर्व में वाल स्ट्रीट जर्नल में कार्यरत रहे और पुलित्जर पुरस्कार विजेता पत्रकार इयान जानसन ने अपनी चौंकाने वाली पुस्तक A Mosque in Munich: Nazis, the CIA, and the Rise of the Muslim Brotherhood in the West (Houghton Mifflin Harcourt, $27) के द्वारा इस नाटक को नया आयाम दे दिया है।
जानसन ने अपना आरम्भ इस पुनरीक्षण के साथ किया है कि किस प्रकार नाजियों ने युद्धबन्दी सोवियत मुसलमानों को भर्ती करने की व्यस्थित योजना बनाई। अनेक मुसलमानों ने स्टालिन का साथ छोड दिया और 1 लाख से 3 लाख की संख्या में द्वितीय विश्व युद्ध में उन्होंने धुरी देशों की ओर से युद्ध किया। दूसरे शब्दों में इससे भी परे उनके अपूर्ण प्रचार की दिशा अरब की ओर थी और वास्तव में नाजियों ने मुख्य रूप से तुर्की मुस्लिम की भारी सेना को बौद्धिक और उत्साही सैनिक गेरहार्ड वोन मेंडे के नेतृत्व में तैनात भी किया।
1945 में जर्मन पराजय के उपरांत जानसन ने वेन मोंडे का पीछा जारी रखा जबकि वह पूर्व सोवियत मुसलमानों के साथ कम्युनिष्ट विरोधी कार्य मे लगा रहा जो कि अब शीत युद्ध के सन्दर्भ में था। परंतु उनका पूर्व सैनिकों का नेटवर्क इतना सक्षम नहीं था कि वह सोवियत संघ के विरुद्ध पर्याप्त शत्रुता भड्का सके। उनके अग्रणी बौद्धिक ने एस एस अनुभाग के लिये इमाम के रूप में कार्य किया जिसने 1944 में वारसा विद्रोह को दबाने में सहायता की। इस्लामवादियों ने तत्काल स्वयं को मजहबी और राजनीतिक दृष्टि से अधिक सक्षम सिद्ध किया। जानसन ने व्याख्या की, " वे सूट पहनते हैं, उनके पास विश्वविद्यालय की उपाधियाँ हैं और वे अपनी माँगे इस रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं कि जिसे राजनीतिक लोग सकझ सकते हैं".
उनके इस सम्मोहक अध्ययन का ह्रद्स्थल म्यूनिख में पुराने सनिकों से नये इस्लामवदियों के विकास तक है। यह 1950 के दशक की योजना की शास्त्रीय कथा सी है जो कि नाजियों के पुनर्स्थापन , सीआईए के छद्म संगठनों और सोवियत अमेरिकी महत्वाकाँक्षाओं से समाप्त होती है।
जानसन ने दर्शाया है कि किस प्रकार अमेरिकियों ने बिना किसी योजना के वोन मेंडे के नेटवर्क को संरक्षण दिया और उसे सैयद रमादान को सौंप दिया। जानसन के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका द्वारा आरम्भिक दिनों में इस प्रकार मुस्लिम ब्रदरहुड को प्रोत्साहन देने का परिणाम यह हुआ कि 1970 के दशक में यूरोप में मुस्लिम आप्रवास की बाढ से पूर्व ही इसके स्वागत के लिये समय रहते इस्लामवादी ढाँचा गठित करने का अवसर प्राप्त हो गया।
इस प्रकार यूरोपीय मुसलमानों पर इस्लामवादी नियंत्रण के दो गुप्त तत्व हैं जिन्होंने इनकी सहायता की एक तो नाजी और दूसरा अमेरिकी। आपरेशन बारबारोसा में आज की इस्लामवादी शक्ति के बीभत्स बीज दिखते हैं। हिटलर और उनके ठग सहयोगियों को यह भविष्य़ नहीं दिखा होगा परन्तु उन्होंने यूरेबिया के लिये आधारभूमि तैयार कर दी थी।
इस्लामवादियों को अमेरिका के समर्थन के चलते ही जानसन ने इस प्रयास की निस्सारता को लेकर चेतावनी दी है कि मुस्लिम ब्रदरहुड और उसके सहयोगियों के साथ सहयोग किसी प्रकार परिणामकारक नहीं होगा जैसा कि प्रयास टोनी ब्लेयर ने एक बार फिर हाल में किया। देखने में कितना ही आकर्षक क्यों न हो पर यह अंत मे पश्चिम के लिये हानिकारक ही है। इसकी शिक्षा अत्यंत सामान्य है – इतिहास का संज्ञान लें और इस्लामवादियों का सहयोग न करें।