तिमबूकतू में इस्लामवादी विध्वंस जारी है ( जिसमें कि सीदी महमूदू का मकबरा, तथा सीदी यह्या मस्जिद के द्वार हैं) इससे एक प्रश्न उठता है कि इस्लाम का क्या जिसने कि प्रायः अपने अनुयायियों को अपनी ही विरासत के विरुद्ध खडा कर दिया? कुछ उदाहरण देखें:
- मध्य युगीन भारत में हिंदू मंदिरों का विध्वंस
- मामलुक ने मिस्र के महान स्फिंक्स को लक्ष्य भेदन के अभ्यास के रूप में प्रयोग किया और पिरामिड को पत्थर निकालने के लिये प्रयोग किया।
- उत्तरी साइप्रस में 1974 से तुर्की द्वारा चर्च का विध्वंस
- 1990 के दशक में मक्का की प्राचीन कलाकृतियों को सऊदी द्वारा ध्वस्त किया जाना।
- फिलीस्तीनियों द्वारा 2000 में जोसेफ की मजार को ह्टया जाना।
- 2001 में तालिबान द्वारा बामियान बुद्ध की मूर्तियों को तोडा जाना।
- 2002 में अल कायदा द्वारा ट्यूनीशिया में गरीबा गिरिजाघर पर बम गिराया जाना।
- 2003 में इराकी संग्रहालय , पुस्तकालय और अभिलेखागार को लूटा जाना।
- 2006 में एक ऐतिहासिक मह्त्व के हिंदू मंदिर को ध्वस्त किया जाना।
- 2011 में of L'Institut d'Égypte को ध्वस्त किया जाना।
इसके अतिरिक्त कुछ प्राचीन कलाकृतियों को नष्ट करने की मंशा पर भी ध्यान दिया जाना चाहिये ( खोमैनी ने पर्सेपोलिस को गिराने का मन बनाया, मिस्र के एक बडे मुफ्ती ने मूर्तियों के प्रदर्शन को प्रतिबंधित कर दिया) । ( वहीं दूसरी ओर अलेक्जेंड्रिया के प्राचीन पुस्तकालय को मुसलमानों द्वारा जलाये जाने की बात संदेह जनक लगती है)
यद्यपि इन उदाहरणों में मुस्लिम और गैर मुस्लिम दोनों ही कलाकृतियाँ शामिल हैं लेकिन दोनों ही मामलों में आशय पूरी तरह भिन्न है: काफिरों के अवशेषों को नष्ट करना इस्लाम की सर्वोच्चता को प्रमाणित करता है जबकि मुस्लिम अवशेषों को नष्ट करना इस्लामवाद की सर्वोच्चता को सिद्ध करता है। दोनों ही मामलों में आशय गलत है और ऐतिहासिक रूप से कहें तो परिणाम दुखद है।