आज मेरे लेख सीरिया मामले से अलग ही रहो को लेकर अनेक टिप्पणियाँ आयी हैं। उनमें से कुछ को उत्तर दिया जा रहा है।
जोनाथन टोबिन ने Commentary वेबलाग पर इसका खण्डन किया है । मुख्य पैराग्राफ पढा जा रहा है:
असद के बचे रहने का अर्थ है कि न केवल अधिक सीरियावासियों का नरसंहार वरन यह ईरानी सहयोगियों के लिये बडी विजय होगी और इससे उनकी शक्ति अधिक बढ जायेगी। किसी भी प्रकार से पश्चिम को ऐसा होने से रोकना चाहिये। सीरिया के सम्बंध में कुछ नहीं करने का अर्थ है कि जैसे ईरान के परमाणु खतरे के लिये कुछ नहीं करना। हालाँकि हस्तक्षेप का परिणाम अधिक घातक है फिर भी विकल्प उससे भी कहीं अधिक बुरा है।
मेरा उत्तर: हाँ यह सत्य है कि असद के बचने से तेहरान में मुल्लाओं का उत्साहवर्धन होगा, परंतु (1) ऐसा नहीं होगा और (2) एक नये आक्रामक इस्लामवादी शासन के दमिश्क में उभार की सम्भावना के चलते मुझे इस बात की प्रेरणा नहीं होती कि ऐसा होने में सहयोग प्रदान किया जाये। यदि टोबिन के शब्दों में कहें तो असद और ये दोनों ही " बुरे" हैं । जब तक पश्चिमी शक्तियाँ सीरिया पर अपनी इच्छा थोपने की स्थिति में नहीं होती तब तक यही परिणाम आयेगा इसलिये बेहतर है कि अलग रहा जाये और आगे जो होता है उसका उत्तरदायी न बना जाये , और इस आधार पर उनके किसी भी कार्य के लिये नैतिक रूप से उत्तरदायी नहीं होना पडेगा। इसके साथ ही एक और बात है जो कि कम महत्व की नहीं है कि जब दोनों ही पक्षों का आशय हमारे प्रति हत्या का ही है तो अमेरिका के लोगों का जीवन दाँव पर क्यों लगाना?
पाठक जिम इवांस ने नेशनल रिव्यू आनलाइन में लिखा है, " श्रीमान पाइप्स ने सीरिया की जनसंख्या की 10 प्रतिशत ईसाई जनसंख्या का उल्लेख नहीं किया है जो कि लगभग 20 लाख है...... जो कि सामान्य तौर या तो असद का समर्थन करती है या फिर आतांकवादियों की हिंसा नहीं चाहती ...... हाँ असद एक तानाशाह हैं लेकिन निर्दोष ईसाई महिलाओं और बच्चों को मारना अनैतिक है"
मेरा उत्तर: सही है, मैंने सीरिया के ईसाइयों या अन्य अल्पसंख्यकों का उल्लेख नहीं किया जो कि इस्लामवादी बढत के चलते संकट में हैं । उनके कल्याण की कितनी ही चिंता हो लेकिन मुझे नहीं लगता कि उनके संकट के चलते अमेरिका नीत हस्तक्षेप होना चाहिये।
मानवीय हस्तक्षेप के इस सामान्य विषय पर दो और बिंदु: मैक्स बूट और माइकल ओहानलोन Max Boot and Michael O'Hanlon के साथ मैं भी सहमत हूँ कि अमेरिकी सरकार को एक छोटी विदेशी सेना बनानी चाहिये , मुझे लगता है कि इसका लाभ यह होगा कि वाशिंगटन को इन्हें मानवीय उद्देश्य के लिये तैनात करने की अनुमति देने से बदले में होने वाली मानवीय क्षति का भय नहीं होगा । इसके साथ ही इस छोटी सेना को बुरे से बुरी मानवीय संकट की स्थिति में तैनात किया जाये जिसमें कि सीरिया नहीं आता वरन सोमालिया,चाड , सूडान और कांगो जैसे गणतंत्र आते हैं। ( कितने पाठक इस बात से परिचित हैं कि 1998 से 2007 के मध्य कांगो गणतंत्र में हो रहे गृह युद्ध के चलते एक अनुमान के अनुसार अब तक 50 लाख लोग मारे जा चुके हैं)
एक पाठक ने ( व्यक्तिगत नोट में) सलाह दी कि सीरिया के भविष्य के नेताओं के साथ कार्य करने से उनकी कृतज्ञता प्राप्त होगी और भविष्य में उनके साथ सम्बंध सुधरेंगे।
मेरा उत्तर: इस पर भयानक प्रश्नचिन्ह है। याद करें कि सद्दाम हुसैन के सत्ता से बाहर होने के कुछ ही दिनों में क्या घटित हुआ। यहाँ देखिये कि उस भावना को मैंने कैसे वर्णित किया था:
अभी कुछ दिनों पूर्व कर्बला के पवित्र शहर में तीर्थयात्रा के कर्मकांड के दौरान हजारों इराकी शियाओं ने नारा लगाया " अमेरिका को नहीं , सद्दाम को नहीं, इस्लाम को हाँ"। अधिकाँश इराकी इस भाव से सहमत होते जा रहे हैं। इसका गठबंधन सेना पर व्यापक परिणाम होने वाला है। मुक्ति को लेकर कृतज्ञता का भाव अत्यन्त अल्प समय तक रहता है और इराक भी इसका कोई अपवाद नहीं है। जैसा कि मध्य आयु के फैक्ट्री प्रबन्धक ने कहा था, "अमेरिका के लोगों धन्यवाद परंतु अब हम किसी को यहाँ रहने देना नहीं चाहते"
इसी प्रकार सीरिया में कृतज्ञता का भाव अत्यन संक्षिप्त और कृत्रिम रहने वाला है। स्ट्रांचन ने DanielPipes.org पर आग्रह किया है , " उन असहाय लोगों की सहायता और उनके जीवन की रक्षा करने के लिये किसी गैर राजनीतिक हस्तक्षेप को लागू किया जाना चाहिये" । मेरा उत्तर: हाँ , मानवीय सहायता ( परंतु इस प्रकार की नहीं जैसा हमने लीबिया में देखा) एक अच्छा विचार है जैसे कि भोजन , टेंट और दवायें।
वैसे गैर राजनीतिक हस्तक्षेप के विषय पर पश्चिम को सीरिया में जनसंहारक हथियारों पर भी नजर रखनी चाहिये और इस बात को सुनिश्चित करना चाहिये कि वे सरक न जायें । निश्चित रूप से यह भी सम्भव हो सकता है कि असद सरकार से उनका नियंत्रण प्राप्त करने को लेकर डील भी की जा सकती है।