एक दुखद स्थिति का निर्माण हो रहा है कि जब इराक के अधिकारियों ने 30 अप्रैल तक 3,400 मुजाहिदीने खल्क के सदस्य 3,400 ईरानियों को बलपूर्वक देश से बाहर निकालने की धमकी दी है । मुजाहिदीने खल्क के सदस्य सही ही डर रहे हैं कि देश की सीमा से बाहर जाने पर उनका जीवन खतरे में आ जायेगा क्योंकि ईरान के शासन ने इस संगठन की सदस्यता को आपराधिक कृत्य घोषित कर रखा है और इस संगठन को अपना शत्रु मानता है।
कुछ पृष्ठभूमि: सद्दाम हुसैन ने मुजाहिदीने खल्क ( जिसे कि पीपुल्स मुजाहिदीन आर्गनाइजेशन आफ ईरन या पीएमओआई भी कहा जाता है) के साथ अपने समान शत्रु तेहरान के विरुद्ध गठबंधन कर रखा था। 2003 में इराक पर अमेरिका नीत विजय के दौरान इराक में निवास कर रहे इस संगठन के सदस्यों को " संरक्षित लोगों" का स्तर प्राप्त हो गया और उनकी दशा राजनीतिक अनाथ की हो गयी जो कि इराक पर विजय प्राप्त करने वाली शक्ति के न तो मित्र थे और न ही शत्रु । अमेरिकी सेनाओं के शनैःशनैः वापस जाने और इराक तथा ईरान सरकार के मध्य सम्बंधों की निकटता के चलते मुजाहिदीने खल्क के सदस्यों की स्थिति इतनी खराब हो गयी कि अप्रैल2011 में इराक की सेना ने कैम्प अशरफ पर आक्रमण कर दिया जो कि 1986 से ही इराक में इनका घर था और इस आक्रमण में 34 लोग मारे गये तथा 325 लोग घायल हुए।
इस घटना के उपरांत कहीं अधिक शांत प्रतिक्रिया हुई। अमेरिकी सरकार के निर्देश पर बगदाद ने दिसम्बर 2011 में संयुक्त राष्ट्र संघ के साथ एक सहमति पत्र पर हस्ताक्षर किये । इसमें इराक की सरकार ने शिविर अशरफ को कहीं अन्य स्थानांतरित करने का वचन दिया ( जिसे नव इराक का नाम दिया गया है) जहाँ कि तदर्थ रूप से निवास की सुविधा होगी और शरणार्थियों के संयुक्त राष्ट्र संघ के उच्चायुक्त इस बात की प्रक्रिया आरम्भ करेंगे कि मुजाहिदीने खल्क के सदस्यों को इराक में शरणार्थियों का दर्जा मिले और इराक से बाहर उन्हें व्यवस्थित करने के लिये यह पहला चरण है।
इस स्थिति के लिये इस संगठन के 400 सदस्यों ने 18 फरवरी को स्वतः ही अशरफ शिविर छोड दिया और पूर्व अमेरिकी सैन्य स्थल लिबर्टी शिविर चले गये। उनके स्थानांतरण को लेकर उन्हें इराक की सेनाओं की धमकी का सामना करना पडा , साथ ही ईरान की इस्लामिक रिवोल्यूशनरी गार्ड्स कार्प ने उन्हें तंग भी किया और शिविर के अंदर भी जीवन स्तर अत्यंत दयनीय रहा और पुलिस की निगरानी भी बनी रही।
इस कदम से इराक की सरकार के आशय पर संशय होता है और साथ ही यह एक चिंतापूर्ण उदाहरण प्रस्तुत करता है। इसके साथ ही यह स्पष्ट नहीं है कि अगले दो माह में मुजाहीदीने खल्क के सदस्य कैसे शरणार्थी दर्जा प्राप्त कर लेंगे ताकि वे ईरान या इराक से बाहर कहीं पुनः व्यवस्थित हो सकें।
यहाँ वाशिंगटन को कुछ व्यावहारिक सलाह दी जा रही है, जो कि उस संगठन से मुख न मोड ले जिससे तेहरान स्थित तानाशाह भय खाते हैं।
- संयुक्त राष्ट्र संघ शरणार्थी उच्चायुक्त , इराक सरकार और मुजाहिदीने खल्क के प्रतिनिधियों से सम्पर्क स्थापित करे ताकि अशरफ शिविर छोडने वाले सदस्यों की सुरक्षा हो सके जैसा कि सहमति पत्र में कहा गया है।
- संयुक्त राष्ट्र संघ शरणार्थी उच्चायुक्त को शरणांर्थी दर्जा शीघ्र दिलाने के लिये दबाव डाला जाये।
- मुजाहिदीने खल्क से आतंकवादी का अनावश्यक छाप हटाया जाये जैसा कि यूरोपियन संघ पहले ही कर चुका है। सरकार और व्यक्तिगत स्रोत को ऐसा कोई साक्ष्य नहीं प्रकट करना चाहिये कि यह संगठन किसी आतंकवादी गतिविधि में लिप्त है या इसकी ऐसा करने की क्षमता है। आतंकवादी की इस अनावश्यक छाप का वास्तविक विश्व में परिणाम हो सकता है। उदाहरण के लिये, इराक के प्रधानमंत्री नूरी मलिकी ने ईरान के विद्रोहियों के साथ बुरे बर्ताव को इस संगठन के आतंकवादी वर्णन के साथ जोडा है और इस आतंकवादी छाप के चलते इस संगठन के सदस्यों को किसी तीसरे देश में व्यवस्थित होने में कठिनाई होगी ।
- इस संगठन के सदस्यों के लिये समान संस्कृति के मेजबान को खोजा जाये सम्भवतः फारसी भाषी देश ( जैसे ताजिकिस्तान या अफगानिस्तान) या फिर मध्य पूर्व का कोई मुस्लिम देश जो कि इस्लामी गणतंत्र ईरान के प्रति शत्रुता का भाव रखता हो (जैसे सउदी अरब या फारस की खाडी से राज्य)
इन कदमों से इस संगठन के सदस्यों को पुनः व्यवस्थित किया जा सकता है और 30 अप्रैल की समय सीमा से पूर्व एक अति आवश्यक मानवीय त्रासदी को होने से पूर्व पहली ही टाला जा सकता है।