10 नवम्बर को आरम्भ हुई शत्रुता को लेकर दो विचार :
(1) पुराना अरब इजरायल युद्ध सैन्य संघर्ष था जबकि हाल के संघर्ष राजनीतिक हैं।1948 – 49, 1967 और 1973 के संघर्ष यहूदी राज्य के लिये जीवन और मृत्यु के संघर्ष थे। परंतु 2006, 2008 -09 और अब 2012 के संघर्ष तो अब मीडिया के कार्यक्रम हैं जहाँ कि सेना के युद्ध भमि पर इजरायल की विजय पहले ही सुनिश्चित की जा चुकी है और यह संघर्ष तो जनमानस में दृष्टिकोण जीतने का है। बुलेट का स्थान सम्पादकीय पृष्ठ ने ले लिया है, सोशल मीडिया ने अब टैंक को स्थानांतरित कर दिया है। क्या इजरायल इस बात की वकालत करने में सफल हो पायेगा कि उसके शत्रु ने आक्रामक कार्रवाई का आरम्भ किया था? या फिर वे शत्रु हमास, हिजबुल्लाह पर्यवेक्षकों को इस बात से संतुष्ट कर ले जायेंगे कि इजरायल एक अवैधानिक शासन है जिसका बल प्रयोग करना आपराधिक है? इस युद्ध को प्राथमिक रूप से मीडिया गतिविधि के रूप में लडा जाना चाहिये।
(2) यदि हमास को यह पता है कि वह इजरायल सुरक्षा सेना को परास्त नहीं कर सकता और इस प्रयास में उसे गम्भीर क्षति होगी तो उनके मस्तिष्क में विजय के अतिरिक्त अन्य कुछ है। वे क्या हो सकते हैं? कुछ मेरे मस्तिष्क में आये हैं।
- बराक ओबामा के पुनर्निर्वाचन के बाद देखा जाये कि वातावरण कैसा है।
- इजरायल के विरुद्ध जनमानस का मन बनाया जाये और अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर इसे भारी कीमत चुकाने दी जाये।
- फिलीस्तीनी इस्लामिक जिहाद के आरोप को नकारा जाये कि इसने " प्रतिकार" को स्थगित कर दिया है।
- फिलीस्तीन अथारिटी जब संयुक्त राष्ट्र संघ में राज्य का स्तर प्राप्त करने का प्रयास कर रहा है तो उसे यह याद दिलाया जाये कि गाजा पर किसका नियंत्रण है।
- इजरायल के अरबवासियों को भडकाया जाये।
- मिस्र द्वारा गाजा में स्थित सुरंगो को नष्ट करने के प्रयास को अवरुद्ध करने के लिये पहले ही कदम उठा लिया गया हो क्योंकि संकट के समय काइरो इजरायल को सहायता करता हुआ नहीं दिखना चाहेगा।