फिलीस्तीनी अथारिटी द्वारा फिलीस्तीनी राज्य की घोषणा शायद की कोई नयी बात है। मेरी गणना के अनुसार यह चौथा प्रयास है , मैंने पहले अवसर की व्याख्या की है जो कि निम्नलिखित है:
1 अक्टूबर, 1948 को जेरूसलम के मुफ्ती अमीन अल हुसैनी ने गाजा में फिलीस्तीनी राष्ट्रीय परिषद के समक्ष खडे होकर एक फिलीस्तीनी सरकार की घोषणा की (Hukumat 'Umum Filastin)। सिद्धांत रूप में इस " राज्य" का शासन पहले ही गाजा पर रहा और यह शीघ्र ही समस्त फिलीस्तीन पर नियंत्रण स्थापित कर लेगा। इसी के अनुसार इसका जन्म इस भारी भरकम दावे के साथ हुआ कि फिलीस्तीन का मुक्त, लोकतान्त्रिक और सार्वभौम स्वभाव है और इसमें मंत्रियों को पूरा श्रेय जाता है। परन्तु यह समस्त उपक्रम बेमानी था क्योंकि गाजा का शासन मिस्र के राजा फारुख के हाथों में था और मंत्रियों की कोई भूमिका नहीं थी साथ ही समस्त फिलीस्तीनी सरकार कभी भी पूरे फिलीस्तीन तक अपना विस्तार नहीं कर पाई। शीघ्र ही यह राज्य महत्वहीन हो गया और अगले दो दशक तक फिलीस्तीन राज्य का उद्देश्य प्रायः लुप्तप्राय हो गया।
और इसके बाद ठीक चालीस वर्षों के उपरांत फिलीस्तीनी राज्य की पहली घोषणा के साथ ही 15 नवम्बर 1988 को दूसरे चरण ने स्थान ग्रहण किया और वह भी फिलीस्तीनी राष्ट्रीय परिषद के समक्ष। इस बार फिलीस्तीन लिबरेशन आर्गनाइजेशन के प्रमुख यासिर अराफात ने फिलीस्तीनी राज्य के अस्तित्व की घोषणा की। कुछ मामलों में यह प्रक्रिया पहले से भी निरर्थक थी क्योंकि नये राज्य की घोषणा अल्जीयर्स में की गयी जो कि फिलीस्तीन की सीमाओं से 2,000 मील परे था , इस राज्य ने उस राज्यक्षेत्र की एक इंच भूमि पर भी अपना नियंत्रण नहीं स्थापित किया जिसका इसने दावा किया और इसे शक्तिशाली रूप से इजरायल के विरोध का सामना करना पडा।
ये दो उदाहरण तो प्राचीन इतिहास हैं परंतु तीसरा प्रयास जो 1999 में हुआ वह आज के प्रयास के अनुरूप है । जैसा कि उस समय भी मैंने कहा था:
जब एक राज्य की घोषणा की जाती है तो इसके परिणाम इजरायल और फिलीस्तीन दोनों के लिये समान रूप से विरोधी होते हैं। ओस्लो समझौते के इस खुले उल्लंघन से आर्थिक सम्बंध कमतर होते हैं और हिंसा बढती है..... अमेरिका और इजरायल इस मामले में अधिक महत्वपूर्ण हैं और इसी प्रकार अन्य 180 देशों की अपेक्षा अन्य मामलों में भी। मुझे आशा है कि वे न केवल अराफात और फिलीस्तीन अथारिटी के समक्ष यह स्पष्ट कर देंगे कि यह एकतरफा निर्णय फिलीस्तीनियों के लिये भारी पड जायेगा। लगातार बातचीत किसी भी प्रकार से एकतरफा राज्य की घोषणा का बुद्धिमत्तापूर्ण विकल्प है। मुद्दे भिन्न हैं और प्रक्रिया लगातार चलने वाली है , बातचीत के समापन की कोई तिथि निर्धारित नहीं की जा सकती जब तक कि फिलीस्तीनी इसे स्थगित न कर दें और इस प्रक्रिया को तब तक चलना चाहिये जब तक कि यह अपने स्वाभाविक निष्कर्ष तक न पहुँच जाये और अब सितम्बर2011।