पश्चिम के लोगों को यह तो समझ में आ रहा है कि कट्टरपंथी इस्लाम के साथ युद्ध जारी है परंतु वे शत्रु के लक्ष्य को समझने में अब भी नाकामयाब हैं.तो यह लक्ष्य है इस्लामिक कानून या शरीयत को पूरी दुनिया पर लागू करना . अमेरिका के संदर्भ में यह लक्ष्य है संविधान के स्थान पर कुरान को स्थापित करना . गैर – मुसलमानों को मुसलमानों की यह आकांक्षा अभी दूर का सपना दिखती है . यूरोप में भी ऐसी ही प्रतिक्रिया है जैसा कि वर्नाड लेवी के शब्दों से स्पष्ट है “इस शताब्दी के अंत तक यूरोप इस्लामिक हो जाएगा.”
इस्लामवादियों के लक्ष्य को लेकर अमेरिका में उपजे संशय के कारण ही मैंने अपना एक लेख 11 सितंबर की घटना तक टाला और जब मुझे लगा कि इस विषय की ग्राह्यता समाज में हो गई है तो नवंबर 2001 में यह लेख “The danger within : Militant Islam in America.” के नाम से प्रकाशित हुआ . इस लेख में मेरी ओर से तर्क दिया गया कि इस देश की मुस्लिम जनसंख्या अन्य किसी वर्ग की भांति नहीं है क्योंकि इसके भीतर बहुत से ऐसे लोग हैं जो कई अवसरों पर ओसामा बिन लादेन के एजेंट की भांति आत्मघाती अपहरणकर्ताओं की तरह
अमेरिका से घृणा की भावना रखते हुए उसे ऐसे देश के रुप में बदलाना चाहते हैं जो कट्टरपंथी इस्लाम के निर्देशों के अधीन रहे . इस विषय की ग्राह्यता 11 सितंबर की घटना के बाद बढ़ी जरुर है लेकिन अब भी इस्लामवादियों द्वारा व्यवस्था को अपने हाथ में लेने की उनकी मंशा को अमेरिकी तंत्र जैसे अमेरिकी शासन , पुराना मीडिया , विश्वविद्यालय और मूलधारा के चर्च मान्यता देते नहीं दिख रहे हैं.
11 सितंबर की घटना के बाद 19 सितंबर को शिकागो ट्रिब्यून में “A rare look at secretive brotherhood in America.” को पढ़कर बड़ा आश्चर्य हुआ . इस लेख में अमेरिका में 1984 से 1994 के मध्य मुस्लिम ब्रदरहुड के नेता अहमद एल कादी के साक्षात्कार तथा अन्य कई दस्तावेज़ थे .
इस लेख में लेखकों ( नोरीन एस अहमद उल्लाह , सैम रोय और लौरी कोहेन ) ने बड़े स्पष्ट रुप में अमेरिका को एक इस्लामिक राज्य के रुप में परिवर्तित करने के इस्लामवादियों के लक्ष्य को पहचाना था . इस लेख में कहा गया कि पिछले 40 वर्षों से कट्टर मुसलमानों के छोटे- छोटे वर्ग अमेरिका के घरों में , शहरों में प्रार्थना के लिए इकट्ठा हुए , कुरान को याद किया और दिन भर के कार्यक्रमों की चर्चा की लेकिन उन्होंने अपने उद्देश्य की चर्चा भी की .यह उद्देश्य बड़ा विवादित है इसलिए गोपनीय तरीके से कार्य संचालन किया गया. विदेशों में मुस्लिम राज्य की स्थापना और अमेरिका में ऐसा कर पाना उनकी इच्छा रही है. ब्रदरहुड सदस्यों ने जोर दे कर कहा कि जिन देशों में वे कार्य करते हैं .वहां के कानून का पालन करते हैं. उनका कहना है कि वे अमेरिकी शासन को पलटना नहीं चाहते वरन् अधिक से अधिक लोगों को मुसलमान बनाना चाहते हैं ताकि इस्लाम कानून से शासित राज्य का समर्थन अधिकांश अमेरिकी जनता करे. ब्रदरहुड के इस तरीके को देखकर मेरी दृष्टि में पश्चिम को इस्लामवादियों की हिंसा से उतना खतरा नहीं है जितना शिक्षा , कानून , मीडिया और राजनीतिक ढ़ांचे के द्वारा बढ़ता हुआ उनका प्रभाव है .
ट्रिब्यून के इस लेख में व्याख्या की गई है कि यह संगठन नए सदस्यों की भर्ती करते समय अपनी पहचान को गुप्त रखता है और सदस्यों को छोटी प्रार्थना सभाओं में बुलाता है जहां प्रार्थना सभा के नेता ब्रदरहुड के प्राथमिक लक्ष्य विश्व पर ईश्वर के शासन की स्थापना (मुस्लिम वर्चस्व ) की ओर इशारा करते हैं . ब्रदरहुड के नेता एलकादी ने संगठन की दीर्घकालीन योजना के बारे में बताया कि पहले व्यक्ति को बदलो फिर परिवार को , फिर समाज को और फिर देश को . उनकी पत्नी इमाम भी संगठन के उद्देश्य का बयान करते हुए कहती हैं कि सभी को इस्लाम के संबंध में शिक्षित करना और इस आशा में इस्लाम का पालन करना कि इस्लामिक राज्य की स्थापना होगी .
एलकादी के अतिरिक्त इस लेख में मुस्तफा सईद की ओर से भी सूचनायें दी गईं हैं . ट्रिब्यून के अनुसार सईद ने कहा कि अमेरिकी ब्रदरहुड की योजना में अमेरिका में इस्लामिक शासन का लक्ष्य प्राप्त करना है यह अमेरिका के लोगों को धर्मान्तरित करेगा और फिर समान विचारों वाले मुसलमानों को राजनीतिक पदों पर चुनवाएगा .वे सब बड़े तेज हैं और बाकी सब आसानी से झांसे में आने वाले हैं.ऐसा सईद मानते हैं. उनके अनुसार यदि ब्रदरहुड किसी को चुनाव लड़ाता है तो मुसलमान उसे वोट देंगे क्योंकि उन्हें क्या पता कि यह किसका उम्मीदवार है .
अनेक साक्षात्कारों और दस्तावेजों के आधार पर ट्रिब्युन की टीम ने पाया कि गुप्त ब्रदरहुड ने अधिक प्रभाव विस्तार की दृष्टि से 1993 में इलिनियोस में खुद को मुस्लिम अमेरिकन सोसाईटी बना लिया . अलेकजेन्ड्रीया में इसका मुख्यालय है और इसकी कुल 53 शाखायें हैं जो पूरे अमेरिका में विविध प्रकार के कार्य करती हैं इनमें ग्रीष्मकालिन शिविर , वार्षिक सम्मेलन , वेबसाईट और अध्यापकों तथा इमामों के प्रशिक्षण के लिए डेट्रायट में पत्राचार से चलने वाला इस्लामिक अमेरिकन विश्वविद्यालय.
मुस्लिम अमेरिकन सोसाईटी अमेरिका के शासन को अपने हाथ में लेने की संभावना से इंकार करती है लेकिन इसके शीर्ष अधिकारी शाकिर एल सईद कहते हैं कि यह संगठन अमेरिका में इस्लामिक राज्य की स्थापना में विश्वास नहीं करता परंतु मुस्लिम धरती पर इस्लामिक सरकारें चाहता है . अमेरिका में इस संगठन का लक्ष्य इस देश के मुसलमानों की सेवा और उनका विकास है ताकि वे इस देश के अच्छे नागरिक सिद्ध हो सकें . इसके अंतर्गत मुसलमानों की और विशेषकर युवाओं की पहचान सुरक्षित रखना भी शामिल है .
इस वक्तव्य का खंडन किए बिना भी मुस्लिम अमेरिकन सोसाईटी का लक्ष्य स्पष्ट है. इस संगठन की शिकागो की शाखा की वेबसाईट युवाओं को समर्पित है इसमें ऐसी सामग्री शामिल है जो बताती है कि विश्व स्तर पर इस्लामिक सरकारों की स्थापना मुसलमानों का कर्तव्य है और इसके लिए उन्हें हथियार उठाने के लिए भी तैयार रहना चाहिए . एक वाक्य में कहा गया है कि जब तक विश्व के देश इस्लामिक सरकारों से नहीं चलने लगते तबतक इस्लाम के लिए काम करने वाले किसी व्यक्ति का लापरवाह होना या सुस्त होना पाप के समान है . इसी प्रकार एक और वाक्य में कहा गया है कि पश्चिमी सेक्यूलरिज्म और भौतिकतावाद बुराईयां हैं और अपने – अपने क्षेत्र में इन्हें पराजित करो और इसके पश्चिमी ह्रदय स्थल को जीत लो .
इस संगठन के 2002 के सम्मेलन में हजारों लोगों ने भाग लिया एक वक्ता ने कहा कि हम सभी इस्लामिक राज्य के लक्ष्य से स्वयं को भावानात्मक रुप से जुड़ा पाते हैं लेकिन अमेरिका में मुसलमानों की कम जनसंख्या के कारण इसके लिए इंतजार करना होगा. हमें बाधायें पार करने की कोशिश नहीं करनी चाहिए क्योंकि हम अभी कूद नहीं सकते . ये रहस्योदघाटन इस संदर्भ में अधिक प्रासंगिक हैं क्योंकि ये वाशिंगटन पोस्ट के एक लेख “In search of friends among foes”.
के तुरंत बाद आए थे जिसमें कहा गया था कि अमेरिका के कूटनीतिज्ञ और खुफिया अधिकारी भी मानने लगें हैं कि मुस्लिम ब्रदरहुड के प्रभाव से जेहादियों को राजनीतिक संरक्षण मिल रहा है . ग्राहम फुलर के अनुसार मुस्लिम विश्व में यह अपरिपक्व प्रभावी आंदोलन है हमें इसके साथ मिलकर काम करना चाहिए . रिवेल गेरेच ,एडवर्ड जेरजियान और लेशली कैंपबेल जैसे विश्लेषक भी इस कथन से सहमत हैं लेकिन यह कथन गलत है और यह सोच खतरनाक है . यद्यपि अमेरिका में ब्रदरहुड आंदोलन मिस्र और सीरीया की भांति हिंसक गतिविधियों में नहीं लिप्त है फिर भी अमेरिका से विरोध रखता है इस कारण इसके साथ शत्रु की हमलावर सेना जैसा व्यवहार ही किया जाना चाहिए .