स्कैन्डिनेविया वैसे तो दूर से काफी आकर्षक लगता है जहाँ कि राजपरिवार और प्रधानमन्त्री लगभग बिना सुरक्षा के रहते हैं लेकिन यहाँ भी हिंसा की अपनी परम्परा रही है जब स्वीडन के प्रधानमन्त्री ओलोफ पाल्मे और विदेश मन्त्री अना लिंड की हत्या से लेकर फिनलैण्ड में एक वर्ष के भीतर विद्यालयों में दो नरसंहार हो चुके हैं जिसमें कि एक में आठ लोग और अन्य दूसरे में दस लोग मारे गये। दूसरे शब्दों में एंडर्स बेरिंग ब्रीविक द्वारा मचाई गयी भगदड शायद ही अभूतपूर्व है।
पहले लोग इस बात को लेकर आश्वस्त थे कि ऐसी सनकपूर्ण घटनायें व्यक्तिगत रूप से लोग कट्टरपंथी विचारधारा के बहाव में आकर कर जाते हैं। लेकिन बेरिंग ब्रीविक के मामले में ऐसा नहीं है। इस आतंकवादी ने अपने प्रिय लेखकों की सूची में जार्ज ओरवेल, थामस हाब्स, जान स्टुवर्ट मिल, जान लाक, एडम स्मिथ, एडमंड बर्क, अयान रैंड और विलियम जेम्स को गिनाया है। बेरिंग ब्रीविक की इस मनोवैज्ञानिक सनक और मुख्याधारा की राजनीतिक परम्परवादी परम्परा के मध्य कडी का अभाव अत्यंत स्तब्ध कर देने वाली उलझन और चुनौती प्रस्तुत करता है।
कहने का आशय यह है कि यह सोचने का कोई कारण नहीं है कि बेरिंग ब्रीविक किसी एक का अनुयायी था और न ही यह कि कोई भी राजनीतिक परम्परावादी उसे आत्मसात कर समाजवादियों की हत्या करेगा। ऐसा पहले कभी भी घटित नहीं हुआ है और न ही कभी भविष्य में ऐसा होगा। यह क्रूर और असामान्य अपवाद है।
लेकिन इस अपवाद का एक संदेश परम्परावादियों के लिये भी है कि हमें एक खतरे से सावधान रहना है जिसका हमें पहले आभास नहीं था कि हम समाजवादियों की आलोचना करें परंतु उनकी निंदा न करें।
यह देखते हुए कि किस प्रकार सुनियोजित ढंग से बेरिंग ब्रीविक ने न केवल बम विस्फोट और बंदूक से भगदड मचाने की अपनी योजना रची वरन अपने घोषणापत्र और वीडियो को चस्पा कर अपने परीक्षण को भी एक राजनीतिक तमाशे में परिवर्तित कर दिया और इसे देखकर यही प्रतीत होता है कि उसका उद्देश्य आरम्भिक तौर पर अपने राजनीतिक विचारों को लेकर लोगों का ध्यान आकर्षित करना था। निश्चित रूप से ऐसा है, न्यायालय में अपनी आरम्भिक प्रस्तुति में 25 जुलाई को जैसा कि एसोसियेटेड प्रेस ने लिखा है, " हिंसा को अपने घोषणा पत्र के प्रदर्शन का तरीका कहा" । 2083 — A European Declaration of Independence.
इस प्रकार बेरिंग ब्रीविक 1995 में बम विस्फोट करने वाले टेड काजिंस्की की याद दिलाता है जिसने अपने घोषणा पत्र Industrial Society and Its Future का प्रदर्शन करने के लिये बम विस्फोट किया था। निश्चय ही दोनों के मध्य निकट का सम्बंध है जैसा कि हाँस रुस्ताद ने इसे अभिलेखित किया है कि किस प्रकार बेरिंग ब्रीविक ने काजिंस्की से काफी कुछ लिया और उसमें कुछ शब्दों का हेर फेर कर दिया।
इसमें यदि और वृद्धि करें तो दो टिमोथी मैक्वेग ( ओक्लाहोमा शहर में बम विस्फोट करने वाला), और बरुच गोल्डस्टेन ( हेब्रान में नरसंहार करने वाला) और इनमें से एक ने इस्लामवादी नरसंहार के चार उदाहरण को कारण बताया था
एक वेबसाइट The Religion of Peace. Com ने गणना की है कि पिछले दस वर्षों में इस्लाम की ओर से 17,500 आतंकवादी घटनायें घटित हुई हैं और 1994 से यह संख्या 25,000 हो जाती है। हम दो भिन्न प्रकार की गम्भीर स्थितियों से गुजर रहे हैं जैसा कि डेविड पी गोल्डमैन ने लिखा भी है, " विश्व के समक्ष दो स्थितियाँ हैं आतंकवादी आंदोलनों के द्वारा भय का संगठित प्रयोग और दूसरी ओर कुछ व्यक्तियों का अस्वाभाविक कृत्य"। हमें निश्चित रूप से गैर इस्लामी हिंसा से भी सावधान रहने की आवश्यकता है लेकिन इस्लामवादी विशेषता हावी है और प्रमुख कट्टरपंथी आंदोलन होने के कारण यह खतरा वर्तमान रहेगा।
New Indian Express के प्रशासकीय सम्पादक रवि शंकर ने लिखा, शुक्रवार को ओस्लो में जो कुछ भी घटित हुआ वह शायद नये गृह युद्ध का आरम्भ है जहाँ यूरोपीय लोग दोनों मुस्लिम और ईसाई एक दूसरे के विरुद्ध युद्ध कर रहे हैं" । वह पूरी तरह सही हो सकते हैं। जैसा कि 2007 में अपने एक विश्लेषण यूरोप के भयानक विकल्प में मैंने तर्क दिया था कि इस महाद्वीप का भविष्य दो बातों पर निर्भर है या तो इसका इस्लामीकरण हो जायेगा या फिर यह गृह युद्ध की स्थिति में घिर जायेगा। मैंने इस सम्भावना को रेखाँकित किया था कि मूल यूरोपवासी जो कि महाद्वीप की 95 प्रतिशत जनसंख्या हैं वे एक दिन जाग जायेंगे और अधिक आग्रही होकर अपनी ऐतिहासिक व्यवस्था को फिर से प्राप्त करने का प्रयास करेंगे। यह स्थिति अधिक दूर नहीं है एक प्रक्रिया यूरोपवासियों में दिख रही है जो कि कुलीन वर्ग से अधिक सामान्य जन मानस में अधिक दिख रही है जो कि चले आ रहे परिवर्तनों का विरोध कर रहे हैं" ।
यद्यपि बेरिंग ब्रीविक ने मुस्लिम को नहीं वरन समाजवादियों को अपना निशाना बनाया था लेकिन इस प्रक्रिया के दर्शन वहाँ होते हैं। अधिक विस्तृत रूप में यह नाइजीरिया से इराक और फिलीपींस तक मुस्लिम ईसाई हिंसा की व्यापक परिपाटी में ही सटीक बैठता है।
यह आश्चर्य नहीं कि बेरिंग ब्रीविक उस विचारधारा का पक्षधर है जो कहती है कि " इस्लाम एक बुराई है" जैसा कि उसने अपने घोषणापत्र में बार बार इस बात के संकेत दिये हैं,
.... एक सहिष्णु इस्लाम एक विरोधाभाषी चीज है, और उदार मुस्लिमों की स्थिति को संतुष्ट करने के लिये इस्लाम के सहिष्णु भूतकाल की " कृति" एक असत्य है।
..... इस्लाम से हिंसा को बाहर करने के लिये दो चीजें समाप्त करने की आवश्यकता है: कुरान को अल्लाह का शब्द और मुहम्मद को अल्लाह का पैगम्बर। दूसरे शब्दों में, इस्लाम को शांतिपूर्ण करने के लिये आवश्यक है कि उसे उस स्वरूप में ढाला जाये जो कि यह नहीं है।
इस्लाम आज वही है जो कि वह चौदह शताब्दियों से रहा है: हिंसक, असहिष्णु और विस्तारवादी। यह सोचना मूर्खता है कि हम कुछ वर्षों में या फिर कुछ दशकों में एक विदेशी संस्कृति के मूल वैश्विक दृष्टिकोण को बदलने में सफल हो सकेंग़े। इस्लाम के हिंसक स्वभाव को उसी रूप में स्वीकार किया जाये।
अनेक उदारवादी सांस्कृतिक परम्परावादी यह सुझाव देते हैं कि शरियत को प्रतिबंधित कर देने से हमारी समस्याओं का समाधान हो जायेगा और हम मुसलमानों को आत्मसात करने के लिये विवश कर सकेंगे। दुर्भाग्यवश इस्लाम कहीं अधिक जीवट है जितना कि लोग सोचते हैं शरियत ( सभी राजनीतिक आयाम )को इस्लाम से बाहर करना प्रायः असम्भव है।
यह स्थिति मूल रूप में मुझसे भिन्न है जिसके अनुसार, " कट्टरपंथी इस्लाम समस्या है और उदार इस्लाम समाधान है" । सामान्य विरोधियों पर सहमति होते हुए भी इस्लाम के स्वभाव , इसकी परिवर्तित होने की सम्भावना और मुस्लिम लोगों के साथ सहयोग की सम्भावना को लेकर दोनों दृष्टिकोण भिन्न हैं।
निर्दोष नार्वेवासियों की हत्या करके बेरिंग ब्रीविक ने परम्परावाद, प्रतिक्रियावादी जिहाद को क्षति पहुँचाई है और विशेष रूप से उन लेखकों को जिनका उसने अपने लेखन में उल्लेख किया है जिसमें मैं भी शामिल हूँ। उसके घोषणापत्र को पढने से स्पष्ट होता है कि यह जानबूझकर किया गया है। इस बात को देखते हुए कि नार्वे की कंजर्वेटिव प्रोग्रेस पार्टी की उसकी सदस्यता इससे प्रभावित होगी उसने इस बात पर संतोष प्रकट किया है कि इससे उसका क्रांतिकारी उद्देश्य आगे बढेगा।
मुझे लगता है कि नार्वे का मीडिया प्रोग्रेस पार्टी के साथ मेरे पूर्व के सम्पर्क के चलते इसे प्रताडित और उपेक्षित करेगा। यह कोई नकारात्मक बात नहीं है क्योंकि इससे अधिकतर नार्वेवासियों का लोकतांत्रिक परिवर्तन का भ्रम समाप्त हो जायेगा (यदि प्रोग्रेस पार्टी को बहुसंस्कृतिवादियों द्वारा नष्ट कर दिया जायेगा) और वे सशस्त्र प्रतिकार को प्राथमिकता देंगे।
उसी भावना में उसने लिखा है, " अमेरिका एक राजनीति के घिरी हुई स्थिति में है और उसके लिये ईश्वर को धन्यवाद" ।
बेरिंग ब्रीविक घोषणपत्र में उल्लिखित इस्लाम के विश्लेषकों को क्षति पहुँचाना चाहता था। उसने मुझे "उदारवादी" कहा है जो कि निश्चित रूप से प्रशंसा नहीं है और यहाँ तक कि इस्लाम के कठोर आलोचकों के बारे में भी कहा है कि उनमें साहस का अभाव है।
आखिर यूरेबिया सम्बंधित मुद्दों और यूरोप के इस्लामीकरण से जुडे लेखक फोर्डमैन, स्पेंसर, बेट योर , बोस्टोम आदि सक्रिय रूप से अपने देश वापस भेजने की बात इसलिये नहीं कहते क्योंकि यह प्रकिया अत्यंत कट्टर है ( इससे उनकी प्रतिष्ठा प्रभावित होती है) यदि ये लेखक परम्परावादी क्रांति और सशस्त्र प्रतिकार का प्रचार करने को लेकर इस कदर भयभीत हैं तो अन्य लेखक भी ऐसा ही करेंगे।
बेरिंग ब्रीविक अपनी क्रांति के स्वप्न को पूर्ण करने में जिसे भी बाधा के रूप में देखता है उसे मह्त्वहीन करता है ।तदर्थ रूप में तो कम से कम उसे सफलता मिल ही गयी है।