फ्रांसीसी उपन्यासकार और निबंधकार पास्कल ब्रकनर ने वर्ष 2006 की अपनी पुस्तक La tyrannie de la penitence में लिखा है कि " अधिक पश्चिमी होने का अर्थ है कि पश्चिम से घृणा करना" इसी पुस्तक को अंग्रेजी में स्टीवन रेंडाल ने अनूदित किया और अभी हाल में प्रिंसटान विश्वविद्यालय प्रेस ने इसे प्रकाशित किया है जिसका शीर्षक है, The Tyranny of Guilt: An Essay on Western Masochism। उन्होंने आगे कहा कि सभी आधुनिक विचार " पश्चिम को निंदित करने के स्तर तक दिखाये जा सकते हैं जिसमें कि इस संस्कृति के आडम्बर,हिंसा और इसके प्रति घृणा पर जोर दिया जाता है"
उन्होंने कुछ अतिरंजना की है लेकिन अधिक नहीं।
वे इस बात को दिखाते हैं यूरोप के लोग स्वयं को " पृथ्वी के अस्वस्थ" के रूप में देखते हैं जिनके कारण गैर पश्चिमी विश्व में प्रत्येक समस्या है ( जिसे वे दक्षिण कहते हैं)। जब श्वेत लोगों ने एशिया,अफ्रीका या अमेरिका में कदम रखा तो उनके साथ ही मौत, अराजकता और विध्वंस भी आया। यूरोप के लोग स्वयं को जन्मजात कलंकित मानते हैं । " श्वेत लोग जहाँ भी गये उन्होंने दुख और विनाश ही दिखाया" । श्वेत चमडी न होना ही उसकी नैतिक भूल को दर्शाता है।
इन भडकाऊ वक्तव्यों से ब्रकनर अपने मेधावी तर्क को आगे ले जाते हैं कि यूरोप के लोग साम्राज्यवाद, फासीवाद और नस्लवाद के लिये प्रायश्चित कर रहे हैं और इसने इस महाद्वीप को इस प्रकार अपनी जकड में ले लिया है कि इसकी सृजनात्मकता पर विराम लगाकर इसके आत्मविश्वास को नष्ट करते हुए इसके आशावाद को घटा रहा है।
ब्रकनर यूरोप के आरोपों को स्वयं ही स्वीकार करते हैं लेकिन साथ ही वे आत्मालोचन के लिये इसकी प्रशंसा भी करते हैं, " इस बात में कोई शंका नहीं कि यूरोप ने दानवों को जन्म दिया है लेकिन इसी के साथ इसने ऐसी धारणाओं को भी जन्म दिया है जिसने कि इन दानवों को समझने और उन्हें नष्ट करने में सहायता भी की" । यह महाद्वीप केवल अभिशाप होकर नहीं रह सकता वरन इसके उत्पीडन के साथ इसकी उपलब्धियाँ भी हैं। उनके अनुसार यह "महानता का साक्ष्य है"
बिडम्बना यह है कि यूरोप द्वारा अपनी भूलों को स्वीकार करने की तत्परता ने ही आत्मग्लानि को प्रेरित किया है जो समाज इस प्रकार के आत्मालोचन से नहीं गुजरते वे इस प्रकार ग्लानि से भी नहीं भरते। इसलिये यूरोप की यह विशेषता उसकी कमजोरी भी है। यद्यपि इस महाद्वीप ने काफी कुछ अपने दानवों को नष्ट कर दिया है जैसे कि गुलामी, उपनिवेशवाद और फासीवाद लेकिन इसने सबसे बुरे दौर के आँकडों में उलझना स्वीकार किया। इसलिये इनकी पुस्तक का शीर्षक The Tyranny of Guilt इसकी हिंसा और आक्रामकता के साथ बीता भूतकाल जो कि समय में दब चुका है एक ऐसा बोझ जिसे कि यूरोप के लोग कभी भी फेकना नहीं चाहते।
इसके विपरीत दक्षिण को शास्वत आधार पर निर्दोष मानकर चला जाता है। अब जबकि उपनिवेशवाद भूतकाल की बात हो चुका है तो भी यूरोप के लोग सही ही स्वयं को उपनिवेशवादी लोगों के दुख दर्द के लिये उत्तरदायी ठहराते हैं। शास्वत आधार पर निर्दोष होने का अर्थ है कि गैर पश्चिमी सदैव ही शिशु हैं और यूरोप के लोग इस कारण झूम उठते हैं कि केवल वे ही वयस्क हैं जो कि एक प्रकार का नस्लवाद है। यह इस बात का भी अवसर प्रदान करता है कि आलोचना को निमंत्रण प्रदान किया जाये।
इससे इस बात की व्याख्या हो जाती है कि आखिर यूरोप के लोग पूछते हैं कि, " वे दक्षिण के लिये क्या कर सकते हैं न कि यह कि दक्षिण वाले अपने लिये क्या कर सकते है" इससे इस बात की व्याख्या भी हो जाती है कि वर्ष 2004 में मैड्रिड में हुए विस्फोटों के बाद स्पेन के लोगों ने इस्लामवादियों के विरुद्ध मोर्चा निकालने के स्थान पर अपने ही प्रधानमंत्री के विरुद्ध मोर्चा निकाला। इससे भी बुरा तो यह है कि स्पेन के नागरिकों ने स्वयं को ही दोषी माना।
जैसा कि मैड्रिड बम विस्फोट और इसी प्रकार के न जाने कितने हिंसक कृत्यों से स्पष्ट हो चुका है कि मुस्लिम सबसे अधिक पश्चिम के विरुद्ध रहते हैं और फिलीस्तीनी तो सर्वाधिक रूप से पश्चिम विरोधी मुस्लिम हैं। फिलीस्तीनी यहूदियों के सामने खडे है जो कि पश्चिम की ह्त्या के सबसे बडे भुक्तभोगी हैं और इस आधार पर पश्चिमी आत्मग्लानि की भावना का खण्डन करने का सबसे बडा सूत्र बनता है। इस मामले को और खराब करते हुए एक ओर जहाँ यूरोप के लोग निशस्त्र हो गये तो वहीं यहूदियों ने तलवार थाम ली और बेशर्मी से इसका उपयोग कर रहे हैं।
यूरोप ने यहूदियों के विरुद्ध जो अपराध किया है उससे स्वयं को मुक्त करने के लिये फिलीस्तीनियों को उत्पीडित पक्ष के रूप में प्रस्तुत करता है और इस प्रक्रिया में उसे कोई परवाह नहीं है कि किस प्रकार का आचरण वे करते हैं और इस बात की परवाह किये बिना कि आत्म रक्षा कितनी आवश्यक है इजरायल को उत्तरकालीन नाजी के रूप में प्रस्तुत किया जाता है। तो क्या फिलीस्तीन के प्रश्न से यहूदियों के प्रति घृणा को धीरे धीरे अमान्य किया जा रहा है? यूरोप का इजरायल पर किस कदर ध्यान केंद्रित है कि इसका पता इसी बात से चलता है कि वे सोचते हैं कि पृथ्वी का भाग्य " तेल अवीव ,रामल्लाह और गाजा की धरती तक ही सीमित है"
और अमेरिका? जिस प्रकार " यूरोप अपने अपराध को कम करने के लिये इजरायल पर आरोप लगाता है और उपनिवेशवाद के आरोप से बचने के लिये अमेरिका को आरोपित करता है" । अमेरिका के अपने बालक को अपने से अलग कर यूरोप उपलब्धि अनुभव कर पाता है। अपने स्तर से ब्रकनर इस निबंध को अस्वीकार करते हैं और स्वयं अमेरिका के आत्मविश्वास और देश के स्वाभिमान की प्रशंसा करते हैं। " एक ओर जहाँ अमेरिका आग्रही बन रहा है तो यूरोप स्वयं पर प्रश्न उठा रहा है" । वे इस बात को भी लिखते हैं कि आवश्यकता होने पर विश्व की परिस्थितियाँ अमेरिका की ओर घूमती हैं न कि यूरोपियन यूनियन की ओर। उनके अनुसार अमेरिका " पश्चिम का अंतिम महान देश है"।
उन्हें आशा है कि यूरोप और अमेरिका फिर साथ साथ सहयोग करेंगे और जब भी वे ऐसा करेंगे उन्हें " अद्बुत परिणाम" मिलेगा। लेकिन उनका स्वयं का साक्ष्य तो इस सम्भावना को प्रस्तुत नहीं करता।