अनेक अन्य परम्परावादियों की ही भाँति मेरा भी अनुमान था कि टी पार्टी, 2010 के चुनाव परिणाम , सोलिंड्रा , 8 प्रतिशत बेरोजगारी , बेनगाजी तथा एक उठते हुये विपक्षी वातावरण के चलते ( चुनाव के दिन रोमनी के एक सलाहकार ने कहा था, " आप रिपबलिकन विजय का हिस्सा नहीं बनना चाहते ) कि बराक ओबामा का दूसरी बात विजयी होना सम्भव नहीं है। इस कारण उनकी विजय विशेष रूप से कड्वी रही। क्या मैं अकेला था जो कि ठीक से सो नहीं पाया और दिन के समाचारों की उपेक्षा करता रहा?
क्या कुछ गलत रहा इसके अनेक विश्लेषण किये गये : रोमनी अधिक परम्परावादी थे या कि जितना होना चाहिये था उतने नहीं थे, वे अपने बारे में अधिक बोलते रहे और मुद्दों पर चर्चा करने से बचते रहे। वे जनमानस के साथ जुड नहीं सके। इसके साथ ही अनेक निष्कर्ष निकाले गये हैं : परम्परावादियों को अधिक आधुनिक होना होगा ( समलैंगिक सम्बंध में) उन्हें अश्वेतों के पास जाना होगा ( अवैध आप्रवासियों का स्वागत करना होगा) उन्हें सही मायने में परम्परावदियों का मनोनयन करना चाहिये।
मेरा मत इस विचार के अनुरूप है कि "राजनीति संस्कृति से ही चलती है" कुछ अवसरों पर परम्परावादी नीतिगत बहस में भारी पडते हैं , परन्तु वे कक्षाओं में लगातार पराजित होते हैं , सबसे अधिक बिकने वाले स्थलों पर भी पराजित होते हैं, , टेलीविजन पर, फिल्मों में तथा कला के क्षेत्र में भी"। ये उदारवादियों के गढ हैं जहाँ कि डेमोक्रेटिक पार्टी की राजनीति का पोषण होता है, और यह सब अचानक नहीं हो गया है वरन यह दशकों के परिश्रम का परिणाम है जो कि एंटोनियो ग्रामास्की के विचारों के समय तक जाता है।
परम्परावादियों को इन उपलब्धियों को आत्मसात करना होगा। रिपब्लिकन राष्ट्रीय परिषद के पूर्व अध्यक्ष एड गिलेस्पी के साथ मैं उन दिनों की ओर देख रहा हूँ कि जब यह इस स्तर पर आयेगा कि यह " उन्मुक्त उद्याम के सिद्धांत , सशक्त राष्ट्रीय सुरक्षा की आवश्यकता ,पारम्परिक परिवारों के गुणों तथा धार्मिक आस्था के मूल्यों पर जोर देगा न कि पूँजीवाद को कमतर करना , सेना को दोष देने , अभिभावकों को महत्वहीन करने और धर्म को गिराने पर ध्यान देगा"
प्रसन्नता की बात है कि अमेरिका के परम्परावादी पहले से ही प्रतिक्रिया स्थिति में आ गये हैं: वाल स्ट्रीट जर्नल और फाक्स न्यूज चैनल को लोग जानते हैं परंतु ब्रेड्ली फाउंडेशन , पेपरडीन विश्वविद्यालय ,द लिबर्टी फिल्म फेस्टिवल और कमेन्ट्री का भी कम महत्व नहीं है। यह सही है कि परम्परावादियों के संस्थान के पास पुराना इतिहास नहीं है, संसाधन नहीं है और अपने उदारवादी विरोधियों के मुकाबले प्रतिष्ठा नहीं है परंतु उनका अस्तित्व है और वे विकास कर रहे हैं और उनके पास संतोषजनक और आशावादी संदेश है।
वैसे लम्बे और कठिन मार्ग पर चलना है परंतु कोई छोटा मार्ग है भी नहीं और यह सफल हो सकता है।