राइस विश्वविद्यालय के डेविड कुक ने “अन्डर-स्टेंडिंग जिहाद” नाम से एक बहुत अच्छी और बोधगम्य पुस्तक लिखी है .युनिवर्सिटी औफ कैलीफोर्निया प्रेस द्वारा प्रकाशित इस पुस्तक का विमोचन अभी शीघ्र ही हुआ है ...इस पुस्तक में डेविड कुक ने 11 सितम्बर के पश्चात जिहाद पर आरंभ हुई निचले स्तर की बहस के स्वरुप को निरस्त किया है कि क्या यह एक आक्रामक युद्द पद्धति है या फिर व्यक्ति के नैतिक विकास का प्रकार है...
श्री कुक ने जौन एसपोसिटो के उस विचार को हास्यास्पद बताया है जिसमें कहा गया है कि जिहाद का संदर्भ “एक अच्छा जीवन जीने के प्रयास से है ” श्री कुक निश्चित रुप से इस बात को स्थापित करते हैं कि संपुर्ण इतिहास में आरंभ से लेकर आज तक इस शब्द का प्राथमिक अर्थ धार्मिक महत्व के लिए युद्घ रहा है ...लेखक की प्रमुख उपल्ब्धि यह रही है कि उन्होने मोहम्मद से लेकर ओसामा तक जिहाद के विकास को पहचाना है और साथ ही पिछले 1400 वर्षो में समय समय पर इसमें आए परिवर्तनों को भी समझा है ..वौसे तो इस संक्षिप्त लेख से कुक के व्यापक शोध , विभिन्न उदाहरणों और विचार पूर्ण विश्लेषण के साथ न्याय नहीं हो सकता परंतु जिहाद के विकास को रेखांकित अवश्य किया जा सकता है ....
कुरान मुसलमानों को स्वर्ग के बदले अपनी जान देने को आमंत्रित करता है ..हदीथ , जो कि मोहम्मद के क्रियाकलापों और व्यक्तिगत बयानों का लेखा जोखा है ,कुरान के सिद्दांतो की और अधिक व्याख्या करता है .इसमें संधियों, धन का वितरण , युद्द में प्राप्त सामग्री य़ा पुरस्कार , बंदियों, विभिन्न नीतियों का उल्लेख है ..मुसलिम विधिशास्त्र ने कालांतर में इन व्यावहारिक विषयों को सूत्रबद्ध कर इसे एक कानून का स्वरुप दे दिया ....पैगंबर ने अपने शासनकाल के दौरान औसतन प्रतिवर्ष नौ सैन्य अभियानों में हिस्सा लिया ...अर्थात प्रत्येक पाँच या छ सप्ताह में एक सैन्य अभियान , इस प्रकार अत्यंत आरंभ से जिहाद इस्लाम को परिभाषित करने में सहायक है ...गैर मुसलमानों पर विजय प्राप्त करना और उन्हें अपमानित करना यह पैगंबर के जिहाद का प्रमुख अंग है ...
इस्लाम की प्रारंभिक शताब्दियों मे “जिहाद की व्याख्या निश्चित रुप से आक्रामक और विस्तारवादी रही ” . जब विजय का सिलसिला थम गया साथ ही गैर मुसलमानों को धमकाना कम हो गया तब सैन्य शब्द के समानांतर जिहाद की सूफी अवधारणा विकसित हुई जिसका मतलब था ..आत्म – विकास.
क्रूसेड के माध्यम से पवित्र भूमि पर नियंत्रण स्थापित करने के शताब्दियों के यूरोपियन प्रयास ने जिहाद के नए “शास्त्रीय” सिद्दांत को विकसित करने की आवश्यकता महसूस की .स्वयं को रक्षात्मक मुद्रा में देखकर मुसलमानों ने अपना व्यवहार और अधिक कठोर बना लिया ....
तेरहवीं शताब्दी में मंगोलों के विजय अभियान ने अधिकांश मुस्लिम विश्व को पदाक्रांत कर लिया , यह पीड़ा कुछ मेगेलों द्वारा इस्लाम स्वीकार कर लेने से थोडी मात्रा में कम अवश्य हो गई ...इस दौरान कुछ चिंतक सामने आए जिसमें विशेष रुप से सन् 1328 के इब्न तेमिया शामिल हैं ..जिन्होने सच्चे और झूठे मुसलमान के बीच विभेद करते हुए जिहाद को नया महत्व दिया ..उनके अनुसार जिहाद के संदर्भ में किसी व्यक्ति की प्रामाणिकता इस बात पर निर्भर करती है कि उस व्यक्ति में जिहाद आरंभ करने की इच्छा शक्ति कितनी है ...
19 वीं शताब्दी का “शुद्दीकरण जिहाद ” अनेक क्षेत्रों में साथी मुसलमानों के विरुद्ध ही आरंभ हुआ ...इन सबमें सबसे कट्टर और प्रतिक्रियावादी अरब का वहाबी जिहाद था .इब्न तेमिया से प्रेरणा लेते हुए इन्होनें गैर वहाबी मुसलमानों को काफिर बताकर उनकी निंदा की और उनके विरुद्ध जिहाद छेड़ दिया .
भारत , काकेशस , सोमालिया , सूडान , अल्जीरिया
और मोरक्को जैसे देशों में यूरोपियन साम्राज्यवाद ने जिहादी प्रतिरोध को प्रेरित किया जिससे इन क्षेत्रों में जिहाद असफल रहा .इस आपदा का अर्थ था जिहाद पर नए सिरे से विचार करना .इस्लामवादियों का नया विचार भारत और मिस्र में 1920 में आरंभ हो गया परंतु इसने समकालीन कट्टर आक्रामक युद्ध पद्धति 1966 में मिस्र के विचारक सैयद कुतब के समय में प्राप्त की .कुतब ने इब्न तेमिया की भाँति ही सच्चे और झूठे मुसलमान के मध्य विभेद करते हुए गैर इस्लामवादियों को गैर- मुसलमान करार दिया और उनके विरुद्ध जिहाद घोषित कर दिया . 1981 में अनवर अल सादात की हत्या करने वाले गुट ने एक और विचार जोड़ते हुए जिहाद को विश्व पर नियंत्रण स्थापित करने का एक रास्ता बताया .
अफगानिस्तान में रुस के विरुद्ध हुआ युद्ध जिहाद के अबतक के विकास का अंतिम चरण है . अफगानिस्तान में पहली बार पूरी दुनिया के मुसलमान इस्लाम के नाम पर युद्ध करने के लिए एक जगह एकजुट हुए.1980 में एक फिलीस्तीनी अब्दुल्ला अज्जाम ने वैश्विक जिहाद का विचार दिया .इसके अंतर्गत जिहाद इस्लाम का प्रमुख अंग मानते हुए प्रत्येक मुसलमान के बारे में फैसला जिहाद के बारे में उसकी भूमिका के आधार पर किया गया तथा जिहाद को इस्लाम और मुसलमानों की मुक्ति का मार्ग माना गया. इसी विचार में से समकालीन आतंकवाद और बिन लादेन का जन्म हुआ .
श्री कुक के इस सामयिक और झानपूर्ण अध्ययन के अनेक परिणाम हैं उनमें से कुछ इस प्रकार हैं-
जिहाद की वर्तमान अवधारणा इस्लामिक इतिहास के किसी भी युग की तुलना में कहीं अधिक कट्टर है ..
वर्तमान कट्टरपंथी अवस्था से ऐसा प्रतीत होता है कि मुस्लिम विश्व एक ऐसे चरण से गुजर रहा है जो निश्चय ही पीड़ादायक है और जिसमें से वह निकलना चाहता है इसकी तुलना जर्मनी , रुस और चीन के कष्टप्रद कालखंड से की जा सकती है .
अब तक जिहाद धीरे- धीरे विकसित होता रहा है और यह प्रकिया आगे भी चलती रहेगी .श्री कुक एक छोटी सी भविष्यवाणी करते हुए कहते हैं कि अल-कायदा और अन्य .संगठनों द्वारा संचालित अतिवादी जिहाद जल्द ही बहुसंख्यक मुसलमानों द्वारा अस्वीकृत कर दिया जाएगा .इसके बाद जिहाद एक अहिंसक विचार में परिवर्तित हो जाएगा .
उदारवादी मुसलमानों और उनके गैर- मुस्लिम सहयोगियों के समक्ष सबसे बड़ी चुनौती यही है कि जिहाद की यह अस्वीकृति सामने आए और जल्द ही आए.