वर्षों से मेरी स्थिति यह रही है कि कट्टरपंथी इस्लाम के कारण सुरक्षा संबंधी कदम उठाने के लिए सारा ध्यान मुसलमानों की ओर जाता है . जैसे किसी बलात्कारी की खोज में लोग पुरुषों की ओर ही देखते हैं उसी प्रकार इस्लामवादियों की खोज ( कट्टरपंथी इस्लाम से लगाव वाले ) में लोग मुस्लिम जनसंख्या की ओर देखते हैं.
अभी हाल में कार्नेल विश्वविद्यालय के एक जनमत सर्वेक्षण को देखकर मैं और भी उत्साहित हुआ कि अमेरिका की आधी जनसंख्या इस विचार से सहमत है .विशेषकर 40 प्रतिशत अमेरिकी मानते हैं कि सरकारी अधिकारियों को अमेरिका में निवास करने वाले मुसलमानों के रहने के स्थानों को पंजीकृत कर , उनका विवरण तैयार कर , उनकी मस्जिदों की निगरानी कर और उनके संगठनों में घुसपैठ बनाकर उनकी निगरानी करनी चाहिए.उससे भी अधिक उत्साहजनक यह है कि सर्वेक्षण ने पाया है कि जैसे – जैसे लोग टी.वी समाचारों में देखते जायेंगे सामान्य विवेक के आधार पर इन निर्णयों का स्वागत करते जायेंगे.जो लोग समसामयिक घटनाओं के संबंध में अधिक जानकार हैं , वे आत्मसुरक्षा के प्रयासों को लेकर उतने ही समझदार हैं.
यह तो रहा अच्छा समाचार , बुरा समाचार यह है कि सारी दुनिया में लोग इस सच्चाई को नकार रहे हैं. वामपंथियों और इस्लामी संगठनों ने जनमानस की धारणा को इतना डरा दिया है कि लोग मुसलमानों की बात को प्रकाश में लाने से हिचकिचाते हैं.
अमेरिका में यह भय बहुत बड़ी मात्रा में द्वितीय विश्वयुद्ध के समय जापानी नस्ल के लोगों को हटाने और नजरबंद करने की संशोधनवादी व्याख्या के कारण है . साठ वर्ष बीतने के बाद भी यह विषय काफी गहरे ढ़ंग से अपना महत्व रखता है कि नजरबंदी के मुआवजे के रुप में एक लॉबी नजरबंदी जैसे भविष्य के किसी प्रयास की संभावित कल्पना को दिखाकर राष्ट्रीय सुरक्षा के किसी घरेलू विषय को नस्ल राष्ट्रीयता या धर्म से जुड़ा मानकर उसकी चर्चा ही नहीं होने देती.
यह लॉबी इस बात को नकारते हुए कि जापानी मूल के लोगों के साथ जो व्यवहार हुआ वह आवश्यक राष्ट्रीय सुरक्षा के कारण हुआ यह स्थापित करती है कि यह युद्धकालीन हिस्टीरिया और नस्लआधारित भेदभाव का परिणाम था .
माइकेल मालकिन के शब्दों में अमेरिकन सिविल लिबर्टीज यूनियन जैसे कट्टरपंथी संगठनों की व्याख्या के कारण यह आतंक के विरुद्ध युद्ध की बहस पर डण्डा मार रहा है .वे आज के इस्लामवादी शत्रुओं के लिए पहले से सक्रिय होकर उन्हें प्रभावी बचाव प्रदान करते हैं.सौभाग्यवश सुश्री मालकिन जो कि स्तंभकार और प्रवासी विषयों की विशेषज्ञ हैं उन्होंने नजरबंदी वाली फाइल को फिर से खोल दिया है .
अपनी नव प्रकाशित पुस्तक In Defense of Internment: The Case for Racial Profiling in World War II and the War on Terror में उन्होंने बिना किसी तर्क के निष्कर्ष निकाला है कि युद्ध के समय देश की सुरक्षा सबसे पहले आती है .इसी के साथ उन्होंने कहा कि सिविल लिबर्टीज कोई ऐसी चीज नहीं है जिसका उल्लंघन न किया जा सके .तत्पश्चात् 1940 के आरंभिक वर्षों के आंकडों की समीक्षा करते हुए उन्होंने निष्कर्ष निकाला कि
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पर्ल हार्बर पर हमले के कुछ ही घंटों बाद जापानी मूल के दो अमेरिकी नागरिक जिनका अमेरिका विरोध का कोई पिछला इतिहास नहीं था , उन्होंने अपनी जापानी सैनिकों के साथ हवाई द्वीप के अपने साथियों का विरोध किया .
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जापानी सरकार ने सैकड़ों जासूसों के सहारे अमेरिका के भीतर जासूसी का बड़ा नेटवर्क खड़ा किया .
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अमेरिका के यंत्रणा शिविरों जैसी बचकानी बात करने वालों की धारणा के ठीक विपरीत जापानियों को अलग हटाकर उनके लिए जो शिविर लगाए गए थे वे मानवीय आधार पर प्रशासित थे इसका साक्ष्य यह है कि 200 लोगों ने अपनी इच्छा से उन शिविरों में जाना स्वीकार किया था.
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जापानियों को अलग – अलग शिविरों में रखने की प्रक्रिया इतनी सुचारु थी कि तत्कालीन वामपंथी समालोचक केरी मैकविलियम्स ने भी इसकी प्रशंसा की थी .
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सुश्री मालकिन के अनुसार जापानियों को अन्यत्र स्थानांतरित करने से संबंधित मामलों की समीक्षा जिस आयोग ने 1981-83 में की थी ( कमीश्न ऑन वार टाइम रिलोकेशन एंड इंटर्नमेंट ऑफ सिविलियन्स ) उसमें पूरी तरह से वामपंथी वकील , राजनेता और नागरिक अधिकारों के कार्यकर्ता थे तथा एक भी सैन्य अधिकारी या खुफिया विशेषज्ञ नहीं था .
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1988 में नजरबंदी के लिए रोनाल्ड रीगन द्वारा मांगी गई माफी तथा नजरबंदियों को 1.65 बिलियन डॉलर का मुआवजा देना गलत विद्वता का परिणाम था विशेषरुप से उन जापानी कूट संदेशों की व्याख्या नहीं हो पाई जिसके द्वारा टोकियो ने जापानी मूल के अमेरिकी लोगों का उपयोग करने की कोशिश की थी .
सुश्री मालकिन ने एक अच्छे विषय पर विद्वता का प्रदर्शन किया है कि कौन सी बातें उस समय ज्ञात थीं तथा कौन सी अज्ञात . राष्ट्रपति रुजवेल्ट और उनके स्टाफ ने उचित ही किया था .उन्होंने उचित ही निष्कर्ष निकाला है कि युद्ध के समय सरकारों को अपने देश की सुरक्षा नीति बनाते समय राष्ट्रीयता , नस्ल और धार्मिक लगाव से जुड़े विषयों को ध्यान में रखते हुए खतरों के विवरण का आंकड़ा तैयार करना चाहिए . उनके अनुसार ये कदम आक्रामक और तंग करने वाले तो हो सकते हैं लेकिन अपहृत विमान की ज्वालाओं से अपनी ऑफिस की मेज पर बैठे – बैठे भस्म हो जाने की अपेक्षा तो ठीक ही हैं.