मध्यपूर्व ने जार्ज डब्लयू बुश के राष्ट्रपतित्व को इस प्रकार परिभाषित कर दिया है कि मुझे लगता है कि इतिहासकार उनका आकलन वहां के बारे में किए गए उनके कार्यों के आधार पर करेंगे और साथ ही अमेरिका के मतदाता भी जब वे अगले सप्ताह मतदान के लिए जायेंगे .
बुश की इस बात को पूरी तरह सराहा नहीं गया है लेकिन जब मध्यपूर्व का विषय आता है तो बुश ने इस क्षेत्र के संबंध में दशकों पुरानी परंपराओं को दरकिनार कर पूरी तरह भिन्न रुख अपनाया है . इसके विपरीत जॉन केरी ने कल्पनाशीलता के अभाव में पहले की असफल नीतियों को पकड़ रखा है .बुश ने अमेरिका की नीतियों को मुख्य रुप से चार क्षेत्रों में बदला है –
कानून प्रवर्तन के बजाए युद्ध – 1979 में अमेरिका के विरुद्ध इस्लामवादियों की हिंसा के आरंभ से ही ( जिसमें ईरान के तेहरान में 444 दिनों तक अमेरिका के दूतावास की घेराबंदी भी शामिल है ) वाशिंगटन ने इसे एक आपराधिक समस्या मानकर जासूसों , वकीलों , जजों और संरक्षकों को नियुक्त कर इसका उत्तर दिया . 11 सितंबर 2001 को बुश ने ही घोषित किया कि हम आतंकवाद के विरुद्ध युद्ध में संलग्न हैं . यहां युद्ध शब्द ध्यान देने योग्य है . इसका अर्थ हुआ कि कानून प्रवर्तन के अतिरिक्त सेना और खुफिया सेनाओं को भी नियुक्त किया जायेगा . केरी ने बार –बार दुहराया है कि वे कानून प्रवर्तन के मॉडल पर लौटेंगे .
स्थिरता के बजाए लोकतंत्र – पिछले 60 वर्षों से पश्चिम के देशों द्वारा मध्यपूर्व में स्वतंत्रता के अभाव को लेकर माफी मांगने और उस अभाव को स्वीकार करने के बाद भी हम सुरक्षित नहीं है . नवंबर 2003 में बुश की घोषणा ने द्वितीय विश्व युद्द के समय से स्थिरता के लिए जारी द्विपक्षीय नीति को अस्वीकार कर दिया . बुश ने ऐसे तरीकों को स्थापित करने की चुनौती ली है जिसकी अपेक्षा एक राजनेता से नहीं वरन् विश्वविद्यालय के सेमिनार से की जा सकती है. इसके विपरीत केरी एक पुराना सुस्त और विश्वसनीयता खो चुके स्थिरता के मॉडल को प्राथमिकता दे रहे हैं.
शक्ति संतुलन के बजाए पहले आक्रमण – जून 2002 में बुश ने लंबे समयसे चली आ रही शक्ति संतुलन की नीति के स्थान पर शत्रु के हमला करने से पहले ही उसे नष्ट करने की नीति अपनाई .उन्होंने कहा कि अमेरिका की सुरक्षा के लिए आवश्यक है कि सभी अमेरिका वासी आगे की सोचें और संकल्प करें कि अपने जीवन और मुक्ति की रक्षा के लिए जब आवश्यक होगा पहले हमला करने के लिए तैयार रहेंगे . इस नई पहल के अंतर्गत ही सद्दाम हुसैन के विरुद्ध युद्ध को न्याय संगत ठहराया गया कि सद्दाम हुसैन को अमेरिका पर हमला करने से पहले ही सत्ता से हटा दिया जाये . इसके विपरीत केरी इस मुद्दे पर व्यापक नजरिया अपनाकर शक्तिसंतुलन के पुराने सिद्धांत का पक्ष लेते हैं .
अरब इजरायल समाधान के लिए लक्ष्य निर्धारित करते समय प्रतिक्रिया के बजाए नेतृत्व – जून 2003 में मैंने बुश द्वारा अपने राष्ट्रपतिकाल के सबसे साहसिक और चौंकाने वाले कदम के रुप में अरब इजरायल संघर्ष के संबंध में अमेरिका की नीति के परिवर्तन की बात कही थी . शांति के विषय को संबंधित पक्षों पर छोड़ने के बजाए बुश ने समय सारिणी बनाई . उन्होंने अस्तित्व मान नेताओं को स्वीकार करने के स्थान पर यासर अराफात को किनारे लगा दिया. अंतिम स्थिति को परिभाषित करने का दायित्व पक्षों पर छोड़ने के स्थान पर उन्होंने फिलीस्तीनी राज्य को समाधान बताया .बातचीत में स्वयं को अंत में शामिल करने के बजाए उन्होंने शुरुआत में ही भाग लिया . इसके विपरीत केरी ओस्लो प्रक्रिया की ओर लौटेंगे तथा असफल हो चुके प्रयास के आधार पर इजरायल वासियों को परिणाम के लिए अराफात से बात-चीत को विवश करेंगे. बुश की इस पहल के संबंध में मेरी असहमति है और वह भी विशेष रुप से राष्ट्रपति की अरब-इजरायल संघर्ष की उनकी समझ .
लेकिन मैं इस बात केलिए उनकी प्रशंसा करता हूं कि उन्होंने देश की सबसे बुरी विदेश नीति संबंधी समस्या के संबंध में उर्जावान और सृजनात्मक प्रतिक्रिया की है. उनकी अपवादात्मक इच्छा शक्ति में खतरा उठाने और मध्यपूर्व की यथा स्थिति को भंग कर प्रगति करने की संभावना है .
मध्यपूर्व में बुश की कट्टरता को नजर अंदाज करना आसान है क्योंकि वे परंपरावादी हैं और कोई भी भूतकाल की अच्छाईयों को संरक्षित रखना चाहेगा .एक परंपरावादी इस बात को समझता है कि जो कुछ थाती उसके पास है उसे अपने पास रखने के लिए सक्रियता और रणनीतिक रुप से तेजी से आगे बढ़ने की क्षमता होनी चाहिए .इसके विपरीत यद्यपि केरी उदारवादी हैं जिसे पुरानी चीजों को अस्वीकार कर नए प्रयोग करने चाहिए लेकिन जब मध्यपूर्व की बात आती है तो उन्होंने अपने सीनेट के कैरियर में तथा राष्ट्रपति चुनाव के प्रचार में उन पुराने तरीकों पर टिके रहना स्वीकार किया है जो भले ही काम न कर रहे हों .
विडंबना है कि जब मध्यपूर्व की बात आती है तो बुश कट्टरपंथी और केरी प्रतिक्रियावादी लगते हैं.