संपादक की भूमिका – डेनमार्क के एक समाचार पत्र में और फिर यूरोप में पुनर्प्रकाशित पैगंबर मोहम्मद के कार्टूनों पर देर से हुई प्रतिक्रिया का आवेश इस सप्ताह लंदन , बेरुत और दमिश्क सहित अनेक शहरों में फैल चुका है . झंडों और दूतावासों को आग लगाई गई है . लंदन में प्रदर्शनकारियों की तख्तियों पर लिखा था “ इस्लाम का अपमान करने वालों का सिर कलम कर दो ”
इस बढ़ते क्रोध के बीच नेशनल रिव्यू ऑन लाईन ने इस्लाम और मध्यपूर्व के कुछ विश्लेषकों से इस घटनाक्रम पर राय मांगी . प्रत्येक से पूछा गया कि क्या हम सभ्यता का संघर्ष देख रहे हैं ? इस विषय में क्या किया जा सकता है ? मुसलमानों द्वारा तथा अन्य लोगों द्वारा.
मुस्तफा अक्योल , जेनोवरान् , रॉचेल एरेन फेल्ड , मोहम्मद एल जामी , वास्माफाकरी , फरीद गार्दी , मंसूर एजाज , जूदित ऑप्टर क्लिंगहोपर , क्लीफोर्ड मे , रॉमिन परहाम , नीना शिया और बॉटयोर के विचार के लिए यहां देखें http://www.nationalreview.com/script/printpage.p?ref=/symposium/symposium200602070754.asp.
डैनियल पाइप्स – यह निश्चित रुप से सभ्यता का संघर्ष दिखाई पड़ रहा है लेकिन ऐसा है नहीं. विरोध प्रदर्शन के स्तर पर मैं पश्चिम और मुसलमानों के मध्य एक और संघर्ष की याद दिलाना चाहता हूं . 1989 में सलमान रश्दी के उपन्यास सेटेनिक वर्सेज के प्रकाशन और उसके परिणाम स्वरुप ईरान के अयातुल्ला खुमैनी के द्वारा मौत का फतवा जारी करने पर ऐसे ही विरोध प्रदर्शन हुए थे उस समय भी आज की भांति ऐसा लगा मानो पश्चिम पूरी तरह फतवे के विरुद्ध और मुस्लिम विश्व पूरी तरह इसके पक्ष में खड़ा है . लेकिन जब धुंध छंटा तो काफी कुछ स्पष्ट होने लगा.
पश्चिम में बहुत सी महत्वपूर्ण आवाजें खुमैनी की सहानुभूति में उठीं . पूर्व राष्ट्रपति जिमी कार्टर ने अमेरिका के लोगों का आहवान् किया कि वे मुसलमानों के क्रोध और चिंता के प्रति संवेदनशील बने . निकटपूर्व अध्ययन केन्द्र के जार्ज सबाग ने घोषणा की कि रश्दी के लिए मृत्यु दंड की घोषणा करने का खुमैनी को पूरा अधिकार है . ब्रिटेन के मुख्य रब्बी इमैनुअल जैकोबोबिट्स ने लिखा कि पुस्तक का प्रकाशन नहीं होना चाहिए तथा साथ ही मांग कर डाली कि ऐसा कानून बनाया जाना चाहिए ताकि अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का अतिरेक न हो सके.
इसके विपरीत महत्वपूर्ण मुसलमानों ने फतवे का विरोध किया . तुर्की के विपक्षी दल सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी के नेता एरडाल इनूनो ने घोषणा की कि किसी के लेखन पर उसे मारना उसकी हत्या करने जैसा है . 1988 में साहित्य के नोबेल पुरस्कार विजेता मिस्र के नगुईव महफोज़ ने खुमैनी को आतंकवादी करार दिया. इजरायल में फिलीस्तीन के एक पत्रकार अबदुल्लातिक युनिस ने सेटेनिक वर्सेज को बहुत बड़ी सेवा बताया .
वर्तमान संकट में भी यही विभाजन अस्तित्वमान है . मध्यपूर्व अध्ययन के प्रोफेसरों ने कार्टूनों की निंदा की है और कार्टून के पुनर्प्रकाशन में तो जार्डन के दो संपादकों को जेल भी जाना पड़ा है.
सभी मुसलमानों को अज्ञान की शक्तियों के साथ खड़ा करना दुखद भूल होगी . नरमपंथी , ज्ञानवान और स्वतंत्रचेता मुसलमान भी अस्तित्व में हैं. अपनी ही परिधि में उत्पीड़न का शिकार होकर वे सहयोग के लिए पश्चिम की ओर देख रहे हैं. वर्तमान समय में वे कितने ही कमजोर क्यों न हों लेकिन मुस्लिम विश्व को आधुनिक बनाने में उनकी प्रमुख भूमिका होगी.