पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका की गृहभूमि की सुरक्षा को असली खतरा कहाँ से उत्पन्न हो रहा है?
अल-कायदा के विषय पर अधिकार रखने वाले रोहन गुणरत्ना के अनुसार 1995 में ओकलाहामा शहर में हुये बम विस्फोट के अपवाद को छोड़कर पश्चिम में पिछले दशक में प्रमुख आतंकवादी हमले आप्रवासियों द्वारा किये गये हैं. इस रूझान पर और बारीक नजर डालें तो हमें पता चलता है कि ये न केवल आप्रवासी हैं वरन् सदैव एक विशेष पृष्ठभूमि से आते हैं. 1993से 2003 के दशक में संदिग्ध और दोषी 212 आतंकवादियों में से 86 प्रतिशत मुस्लिम आप्रवासी हैं और उनमें भी बड़ी मात्रा इस्लाम में धर्मान्तरित हुये लोगों की है.
आप्रवास और राष्ट्रीय सुरक्षा विषय के विशेषज्ञ राबर्ट एस. लिकेन ने अपने विद्वतापूर्ण अध्ययन Bearers of Global Jihad: Immigration and National Security after 9/11 में निष्कर्ष निकाला है कि पश्चिमी देशों में जिहाद मुख्य रूप से मुस्लिम आप्रवास से बढ़ा है. वाशिंगटन स्थित निक्सन सेन्टर के आधिकारिक व्यक्ति राबर्ट का शोध अन्तरदृष्टि से भरपूर है. उनके अनुसार पश्चिम के विरूद्ध हिंसक कृत्य प्राय: दो आतंकवादी पद्धतियों द्वारा सम्पन्न किये गये है- सुप्त प्रकोष्ठ(स्लीपर सेल) और मारने वाला गुट
मारने वाला गुट-11 सितम्बर के अपहर्ताओं की भाँति बिना किसी भय के विदेशी लोग एक विशेष मिशन के तहत देश में प्रवेश करते हैं. सुप्त प्रकोष्ठ में वे तत्व विद्यमान होते हैं जो आप्रवासी समुदाय के साथ मेल खाते हैं. फांस की खुफिया प्रतिरोधक सेवा के प्रमुख पियर डी वासकेट के अनुसार वे संदिग्ध नहीं दिखते, वे कार्य करते हैं, उनके बच्चे होते हैं, उनके पास निश्चित पते होते हैं और वे किराया अदा करते हैं. ये सुप्त प्रकोष्ठ के लोग आतंकवाद समर्थक नेटवर्क वाले सम्मेलनों, अकादमिक गुट, गैर सरकारी संगठनों और निजी निगमों का समर्थन करते हैं( प्रमुख उदाहरण दक्षिण फ्लोरिडा विश्वविद्यालय के सामी अल अरियन का है) और फिर संकेत मिलने पर पहल करते हैं( जैसे मार्च में एक मोरक्कोवासी ने मैड्रिड में 191 लोगों को मौत के घाट उतार दिया)
पश्चिमी यूरोप और उत्तरी अमेरिका में मुस्लिम जीवन पूरी तरह भिन्न हैं. पश्चिमी यूरोप में मुसलमानों की दूसरी पीढ़ी का विकास हुआ जो सांस्कृतिक रूप से अलग-थलग, सामाजिक रूप से दरकिनार और आर्थिक रूप से बेरोजगार हैं जिनके मनोरोगी विरोध ने सामूहिक बलात्कार, सेमेटिक विरोधी आक्रमणों और अमेरिका विरोधी हिंसा की ओर उन्हें प्रवृत्त किया. यदि हम कट्टपंथी विचारधारा और आतंकवाद के आक्रोश की बात न करें.
उत्तरी अमेरिका के मुसलमान इतने अलग-थलग, दरकिनार और आर्थिक रूप से तनावग्रस्त नहीं हैं. लिकेन ने इस आधार पर पाया है कि वे(मुसलमान) इस्लामवादी हिंसा सहित समाज विरोधी व्यवहार के प्रति उतना झुकाव नहीं दिखाते. उनमें से जो जिहाद का समर्थन करते हैं वे ऐसा आतंकवाद को आर्थिक सहायता देकर करते हैं न कि व्यक्तिगत रूप से उसमें संलग्न होकर. इसी कारण उत्तरी अमेरिका में अधिकतर जिहादी हिंसा विदेश के मारने वाले गुट द्वारा की जाती है.
अपेक्षा के विपरीत ये गुट इरान, सीरिया या सऊदी अरब और मिस्र से नहीं आते क्योंकि इसके नागरिकों को कड़ी जाँच से गुजरना होता है. इस्लामवादी आतंकवादी बेवकूफ नहीं हैं वे भी इस बात को अनुभव करते हैं और अपनी भर्ती अधिकतर यूरोप के 27 देशों से करते हैं और इसके लिये वीजा में छूट कार्यक्रम का लाभ उठाते हैं जिसके अन्तर्गत कोई भी 90 दिन के लिये अमेरिका में बिना वीजा के प्रवेश कर सकता है.
एक अल्जीरियाई आप्रवासी जकारियस मुसावयी पोलैण्ड के जर्मन क्रिश्चियन गानजाश्की की अपेक्षा लोंगो का अधिक ध्यान आकर्षित करता है. इसलिये गानजाश्की का धर्मान्तरण कराकर उसे अधिक प्रभावी जिहादी बनाया जा सकता है. अपैल 2002 में ट्यूनिशिया में बम विस्फोट कर 19 लोंगो की हत्या के आरोप में वह फ्रांस की जेल में बन्द है.
कुछ मात्रा में यही पद्धति इजरायल में भी अपनाई जा रही है. हिजबुल्लाह ने यूरोप के लोगों की भर्ती का प्रयास किया है, जैसे जर्मन धर्मान्तरणकर्ता स्टीवन स्माइरेक को बम प्राप्त करने से पहले ही पकड़ लिया गया. हमास ने आसिफ मोहम्मद हनीफ और उमर खान शरीफ नाम के दो ब्रिटेनवासियों को नियुक्त किया जिन्होंने तेल अबीब के बार में तीन लोगों की हत्या की. यही पद्धति आस्ट्रेलिया के सम्बन्ध में अपनाई गई है- फ्रांसीसी धर्मान्तरक और सम्भावित जिहादी विली व्रिगिट के मामले में इसे देखा जा सकता है.
आतंकवाद के प्रतिरोध के सम्बन्ध में लिकेन की अन्तरदृष्टि के आधार पर कुछ महत्वपूर्ण निष्कर्ष निकाले जा सकते हैं-
- स्वदेशी मुसलमानों को आत्मसात करना पश्चिम की सुरक्षा सम्बन्धी दीर्घकालीन रणनति के लिये महत्वपूर्ण है.
- इस बात को देखते हुये कि पश्चिम में इस्लामवादी खतरा मूल रूप में यूरोप से फैल रहा है, यूरोप और उत्तरी अमेरिका की सुरक्षा सेवाओं को समझना चाहिये कि वे आन्तरिक और बाह्य समस्याओं का सामना कर रहे हैं.
- वाशिंगटन और ओटावा को ऐसी आप्रवासी व्यवस्था के निर्माण को प्राथमिकता देनी होगी जिसमें सामान्य कार्य व्यापार और यात्रा के आनन्द की अनुमति देते हुये सुप्त प्रकोष्ठ(स्लीपर सेल) और मारने वाले गुट को परे रखना होगा.
- अमेरिका को सीरिया और इरान से अधिक चिन्तित होने के बजाय वीजा छूट कार्यक्रम के समायोजन और कनाडा तथा मैक्सिको की अपनी सीमा के नियन्त्रण को प्राथमिकता देनी होगी.
लिकेन का शोध पश्चिमवासियों की गृहभूमि सुरक्षा के सम्बन्ध में उनका उचित मार्गदर्शन करता है. परन्तु इस उद्देश्य को प्राप्त करना एक चुनौती है क्योंकि यूरोप के इस्लामवादी हिंसा के स्रोत को स्वीकार करने का अर्थ है कि आज की अस्पष्ट स्थिति की निर्भरता को छोड़ना होगा.