विश्व भर के मुसलमान कैसा सोचते हैं ? यह जानने के लिये पिउ रिसर्च सेन्टर फॉर द पीपुल एण्ड प्रेस ने बसन्त ऋतु में उनके व्यवहार के सम्बन्ध में व्यापक सर्वेक्षण किया. "The Great Divide: How Westerners and Muslims View Each Other," शीर्षक से किये गये इस सर्वेक्षण में दो बैच में देशों को लिया गया. इनमें से छह देश वे थे जिनमें बड़ी मात्रा में मुस्लिम जनसंख्या है (मिस्र, इण्डोनेशिया, जार्डन , नाइजीरिया, पाकिस्तान और तुर्की) और चार पश्चिमी यूरोप के नई मुस्लिम अल्पसंख्यक जनसंख्या वाले देश (फ्रांस, जर्मनी, ब्रिटेन और स्पेन)
सर्वेक्षण में मुसलमानों के पश्चिम सम्बन्धी विचारों को देखते हुये जो परिणाम आये हैं वे पीड़ादायक तो हैं परन्तु आश्चर्यजनक कतई नहीं हैं. सर्वेक्षण के सारतत्व को तीन शीर्षकों में विभाजित किया जा सकता है.
षड़यन्त्रकारी सिद्धान्त की ओर झुकाव- सर्वेक्षण में सम्मिलित मुस्लिम जनसंख्या में कहीं भी बहुमत में मुसलमान यह स्वीकार नहीं करते कि अमेरिका पर 11 सितम्बर 2001 का हमला अरबवासियों की करतूत थी. अरबवासियों को इस घटना के लिये उत्तरदायी न मानकर अमेरिका, इजरायल या अन्य एजेन्सियों को इसके लिये उत्तरदायी मानने वालों का प्रतिशत पाकिस्तान में 15 प्रतिशत से फ्रांसीसी मुसलमानों की 48 प्रतिशत की परिधि तक है. तुर्की में इस समय का नकारात्मक रूझान पुष्ट होता है कि 2002 में अरबवासियों को इस घटना के लिये उत्तरदायी मानने वालों का प्रतिशत 46 से घटकर अब 16 पर आ गया है.
इसी प्रकार मुसलमान व्यापक रूप से यहूदियों के प्रति पूर्वाग्रह से ग्रस्त हैं और यह पूर्वाग्रह 28 प्रतिशत फ्रांसीसी मुसलमानों से लेकर जार्डन के 98 प्रतिशत मुसलमानों की परिधि में है. ( जार्डन में राजशाही की उदारता के बाद भी फिलीस्तीनी अरब जनसंख्या बहुमत में है). इससे भी आगे कुछ देशों में (विशेषकर मिस्र और जार्डन ) में मुसलमान यहूदियों को षड़यन्त्रकारी के रूप में देखते हुये पश्चिम और मुसलमानों के मध्य खराब सम्बन्धों के लिये प्रमुख रूप से उत्तरदायी मानते हैं.
षड़यन्त्रकारी सिद्धान्त कुछ बड़े विषयों से भी जुड़ा है. पाकिस्तान के 14 प्रतिशत से जार्डन के 43 प्रतिशत मुसलमान मुस्लिम देशों में गरीबी का कारण इन देशों में लोकतन्त्र, शिक्षा के अभाव, जबर्दस्त भ्रष्टाचार और कट्टरपंथी इस्लाम को न मानकर अमेरिका और पश्चिमी देशों की नीतियों को मानते हैं.
यह षड़यन्त्रवाद इस बात की ओर भी संकेत करता है कि उम्मा वास्तविकता का सामना करने के स्थान पर योजनाओं और षड़यन्त्रों के सुरक्षित वातावरण में घिरे रहना चाहता है. इससे आधुनिकता के साथ सांमजस्य बिठा पाने में उनकी असफलता की पोल भी खुलती है.
आतंकवाद के लिये समर्थन-सर्वेक्षण में मतदान करने वाली समस्त मुस्लिम जनसंख्या ने ओसामा बिन लादेन के साथ बहुमत के आधार पर ठोस समर्थन जताया है. तुर्की में 8 प्रतिशत से लेकर नाइजीरिया में 72 प्रतिशत की परिधि में मुसलमान ओसामा बिन लादेन में विश्वास व्यक्त करते हैं. इसी प्रकार आत्मघाती हमले भी लोकप्रिय हैं. जर्मनी में 13 प्रतिशत से लेकर नाइजीरिया में 69 प्रतिशत तक मुसलमान इसे न्यायसंगत ठहराते हैं. इस डरावनी संख्या से सुझाव मिलता है कि मुसलमानों के आतंकवाद की जड़ें काफी गहरी हैं और आने वाले वर्षों में भी यह खतरा बरकरार रहेगा.
ब्रिटेन और नाइजीरिया के मुसलमान अधिक अलग-थलग हैं- ब्रिटेन एक विडम्बनापूर्ण देश के रूप में सामने आया है. पश्चिम के अन्य किसी देश की अपेक्षा यहाँ के गैर-मुसलमान इस्लाम और मुसलमानों के प्रति कहीं अधिक सकारात्मक विचार रखते हैं. उदाहरण के लिये सर्वेक्षण के नमूने में केवल 32 प्रतिशत लोग ही मुसलमानों को हिंसक मानते हैं जो कि फ्रांस, जर्मनी और स्पेन के अपने सहयोगियों की अपेक्षा कम है जहाँ यह प्रतिशत क्रमश: 41 प्रतिशत, 52 प्रतिशत और 60 प्रतिशत है. मोहम्मद कार्टून विवाद में भी मुस्लिम व्यवहार के प्रति ब्रिटेन के लोगों ने सहानुभूति दिखाई थी. इससे भी विस्तृत रूप में खराब मुस्लिम पश्चिम सम्बन्धों के लिये ब्रिटेन के लोग मुसलमानों को कम दोषी ठहराते हैं.
परन्तु ब्रिटेन के लोगों द्वारा मुसलमानों के साथ इस पक्षपात के बदले में यहाँ के मुसलमानों का व्यवहार पूरे यूरोप में सबसे अधिक पश्चिम विरोधी है. उनमें से बहुत से पश्चिम के लोगों को हिंसक, लालची, अनैतिक और घमण्डी मानते हैं जबकि वहीं फ्रांस, जर्मनी और स्पेन में मुसलमानों की पश्चिम विरोधी धारणा इतनी तीव्र नहीं है. इसके अलावा 11 सितम्बर के हमले के लिये यहूदियों के उत्तरदायित्व और पश्चिमी समाज में महिलाओं की स्थिति के सम्बन्ध में उनके विचार उल्लेखनीय रूप से अधिक अतिवादी है.
ब्रिटेन की यह स्थिति लन्दनिस्तान के रूझान को व्यक्त करती है जहाँ ब्रिटेनवासी सक्रिय रूप से रक्षात्मक होकर सिकुड़ रहे हैं और मुसलमान इस इस कमजोरी पर आक्रामक ढंग से प्रतिक्रिया कर रहे हैं.
सामान्य रूप से नाइजीरिया के मुसलमान पश्चिम-मुस्लिम सम्बन्धों , पश्चिम की काल्पनिक अनैतिकता और घमण्डीपन तथा बिन लादेन और आतंकवाद जैसे मुद्दों पर सर्वाधिक आक्रामक और शत्रुवत् विचार रखते हैं. निश्चित रूप से इस अतिवाद का करण नाइजीरिया में ईसाई मुसलमानों का पारस्परिक हिंसक सम्बन्ध है.
विडम्बना है कि उन देशों में मुसलमान सर्वाधिक अलग-थलग हैं जहाँ या तो अधिकतर आत्मसात् किये गये हैं या एकदम नहीं किये गये हैं. इससे सुझाव मिलता है कि मध्यम मार्ग सर्वाधिक उपयुक्त है जहाँ न तो ब्रिटेन जैसा मुसलमानों को विशेषाधिकार प्राप्त है और न ही नाइजीरिया जैसी शत्रुवत् स्थिति काफी आगे बढ़ चुकी है.
कुल मिलाकर पिउ सर्वेक्षण मुस्लिम विश्व के एक कोने से दूसरे कोने तक व्याप्त अखंडनीय संकट का संदेश देता है.