क्या कभी अमेरिका इस्लाम के विरूद्ध क्रूसेड में लिप्त हुआ है. ऐसा कभी नहीं हुआ है. इससे अधिक और क्या हो सकता है कि देश के आरम्भिक दिनों का एक कूटनीतिक दस्तावेज क्रूसेड के विचार को अस्वीकृत करता है. 210 वर्ष पूर्व ठीक इसी सप्ताह जार्ज वाशिंगटन के द्वितीय राष्ट्रपतित्व काल के अन्त में बारबरी समुद्री डाकुओं के प्रथम दो राज्यों के साथ एक दस्तावेज पर हस्ताक्षर हुये थे. असहज प्रकार की दो सन्धियाँ 4 नवम्बर 1796 को त्रिपोली व 3 जनवरी 1797 को अल्जीयर्स में शान्ति और मैत्री सन्धि शीर्षक से हुईं और उनमें इस्लाम के साथ असामान्य रूप से शान्ति की बात की गई.
इस समझौते के 12 अनुच्छेदों में से 11वें अनुच्छेद में कहा गया, “संयुक्त राज्य अमेरिका की सरकार किसी भी प्रकार से ईसाई धर्म पर निर्मित नहीं है. जैसा कि मुसलमानों के कानून, धर्म और शान्ति के विरूद्ध कोई शत्रुता नहीं है और न ही इन राज्यों ने किसी मुस्लिम देश के विरूद्ध कोई युद्ध किया है या उनके विरूद्ध किसी शत्रुवत कार्य में लिप्त हुये है”. सन्धि के पक्षों ने घोषित किया कि धार्मिक विचारों से ऐसा कोई भ्रम उत्पन्न नहीं होने दिया जायेगा कि दो राज्यों के मध्य अस्तित्वमान शान्ति में कोई व्यवधान उत्पन्न हो.
जून 1797 में सीनेट ने एक स्वर से इस सन्धि को स्वीकृत कर लिया जिसे तत्काल राष्ट्रपति जान एडम्स ने हस्ताक्षरित कर कानून का स्वरूप दे दिया और इसके साथ ही यह अमेरिका की नीति का आधिकारिक वक्तव्य बन गया.
वर्ष 2006 में जब आतंकवाद के विरूद्ध युद्ध को इस्लाम या मुसलमानों के विरूद्ध युद्ध के समकक्ष माना गया तो यह बात ध्यान देने योग्य है कि राष्ट्र निर्माताओं में से अनेक ने इस बात की सार्वजनिक घोषणा की थी कि उन्हें मुसलमानों की शान्ति, धर्म और कानून के साथ कोई शत्रुता नहीं है. यह दुर्लभ सन्धि प्रत्यक्ष रूप से मेरे उस तर्क का समर्थन करती है कि अमेरिका इस्लाम धर्म से नहीं वरन् कट्टरपंथी इस्लाम के विरूद्ध युद्ध में लिप्त है. कट्टरपंथी इस्लाम अधिनायकवादी विचारधारा है जिसका अस्तित्व 1796 में नहीं था.
मुसलमानों के साथ सम्बन्धों को स्वरूप देने के साथ ही यह वक्तव्य कि अमेरिका के निर्माण का आधार किसी भी प्रकार से ईसाई धर्म नहीं है पिछले 210 वर्षों से इस बात का प्रमाण रहा है कि इस देश के निर्माता ईसाई नहीं थे. यह बात स्टीवन मोरिस ने 1995 में अपने एक लेख में कही थी. परन्तु 11वें अनुच्छेद के साथ एक जिज्ञासु कथा जुड़ी है. इस सन्धि का आधिकारिक पाठ अंग्रेजी में नहीं वरन् अरबी भाषा में है. उपर्युक्त अंग्रेजी भाषा में उद्धृत शब्द अल्जीयर्स में तत्कालीन वाणिज्य दूत जोएल बारलो (1754-1812) ने उपलब्ध कराये थे जो इस सन्धि में मध्यस्थता कर रहे थे. अमेरिकी सरकार ने उनके अनुवाद को अपना आधिकारिक पाठ माना और अनेक अवसरों पर इसे पुन: प्रकाशित कराया.
इसके साथ दो और समस्यायें हैं. अमेरिका की सन्धियों के विशेषज्ञ डेविड हन्टर मिलर(1875-1961) ने कहा है, “ बारलो का अनुवाद अपनी ओर से अरबी का सबसे अच्छा परन्तु घटिया भावानुवाद है. ” दूसरा डच के पूर्वी विषयों के विशेषज्ञ क्रिस्टियान स्नोक हरग्रोन्जे (1857-1936) ने 1930 में अरबी पाठ का पुनरीक्षण किया और पाया कि 11 वें अनुच्छेद का बारलो का अनुवाद अरबी के समानान्तर नहीं है. इसके विपरीत इस अवसर पर त्रिपोली के पाशा के अल्जीयर्स के पाशा को लिखे एक आधिकारिक पत्र का उल्लेख आया. स्नोक हरग्रोन्जे ने इस पत्र को मूर्खतापूर्ण कहकर खारिज कर दिया. इस पत्र में अमेरिकावासियों के साथ हुई शान्ति सन्धि के निष्कर्ष का उल्लेख है और इसकी सिफारिशों का उल्लेख है. इस पत्र के तीन चौथाई भाग में एक सचिव द्वारा प्रस्तुत की गई भूमिका है जो कुछ बड़े-बड़े शब्दों को जानता है परन्तु इन शब्दों के अर्थ समझने में पूरी तरह असफल है. जैसा कि हन्टर मिलर ने 1931 में लिखा.
इन अनेक वर्षों में किस प्रकार एक समान भ्रम बना रहा जो आज तक विद्यमान है. उस समय के कूटनीतिक पत्राचार में इस बिन्दु पर कोई प्रकाश नहीं पड़ता.
परन्तु इस पाठ की असमानता का प्रतीकात्मक महत्व है. 210 वर्षों से अमेरिका ने स्वयं को इस्लाम के साथ अच्छे सम्बन्धों में बाँध रखा है जबकि मुसलमानों ने इसका उपयुक्त प्रतिफल नहीं दिया है और न ही उन्हें अमेरिका के इस वचन के बारे में कोई ज्ञान है. धार्मिक विचारों की व्याख्या से कोई भ्रम उत्पन्न न हो ताकि शान्तिपूर्ण सम्बन्धों में कोई व्यवधान न आये दोनों पक्षों की यह सन्धि विशुद्ध रूप से अमेरिका का एकतरफा संकल्प ही प्रतीत होता है. यह एक पक्षीय विरासत अब भी विद्यमान है . मुसलमानों की बिना किसी उकसावे के आक्रामकता का उत्तर बुश प्रशासन ने शत्रुता से नहीं वरन् मुस्लिम विश्व में आर्थिक सहायता और लोकतन्त्र की स्थापना के प्रयासों से दिया है.