अमेरिका के गृहभूमि की सुरक्षा की अग्रिम पंक्ति दो विभागों से बनती है एक वह जो वीजा प्रदान करती है( राज्य विभाग का वाणिज्य प्रखण्ड) और दूसरा वह जो सीमाओं का नियंत्रण करते हैं ( आप्रवास और प्रकृतीकरण या आईएनएस) परंतु समस्या यह है कि दोनों में से कोई भी एजेंसी अपनी सुरक्षा सम्बन्धी भूमिका को समझ नहीं पाई है।
उनकी घातक भूलें पिछ्ले सप्ताह दो रहस्योद्घाटनों से पीडादायक ढंग से सामने आईं। जैसा कि 28 अक्टूबर के नेशनल रिव्यू में और गुरुवार के पोस्ट में जोएल मोब्रे ने दिखाया है कि राज्य विभाग ने अपने ही नियमों का ठीक ढंग से पालन किया होता तो 11 सितम्बर के 15 अपहर्ताओं में से कोई भी विधिक ढंग से संयुक्त राज्य अमेरिका में प्रवेश नहीं कर सकता था। वे आवेदनकर्ता प्रवेश के लिये अनिवार्य प्रायः सभी परीक्षणों में असफल सिद्ध हुए ( पते के सम्बन्ध में और समर्थन के अर्थ) परंतु किसी प्रकार उन्हें प्रवेश मिल गया।
जहाँ तक आईएनएस का प्रश्न है तो न्यायिक आप्रवास और सीमा सुरक्षा और दावा समिति के अध्यक्ष जार्ज डब्लू गेकास अंततोगत्वा आईएनएस की घेराबन्दी को भेदकर इस ह्र्दयविदारक घटना का पता लगाने में सफल हो गये कि किस प्रकार मिस्र का हेशाम मोहम्मद अली हिदायत नामक आप्रवासी आतंकवादी संयुक्त राज्य अमेरिका में रुका रहा।
पिछले सप्ताह सुनवाई के दौरान यह पता चला कि हिदायत 1992 में संयुक्त राज्य अमेरिका में एक पर्यटक के तौर पर आया था और फिर “ धार्मिक भेदभाव” के आधार पर शरण के लिये आवेदन किया। अपने दावे के समर्थन में हिदायत ने आईएनएस को बताया कि मिस्र की सरकार ने उस पर दबाव डालकर दो दस्तावेजों पर हस्ताक्षर के लिये बाध्य किया जिसमें कहा गया था कि वह ( इस्लामी गुट) अल गामा अल इस्लामिया का सदस्य है और उसका उद्देश्य मिस्र की सरकार को अपदस्थ करना है।
हिदायत ने इन दोनों ही स्वीकारोक्तियों की विश्वसनीयता पर सवाल उठाये हैं परंतु अक्टूबर 1981 में अनवर सादात की हत्या के समय से आतंकवाद से सम्बद्ध रहने वाले अल गामा अल इस्लामिया के स्वभाव को देखते हुए उसका अस्तित्व ही खतरे की घण्टी बजा देता है। उदाहरण के लिये अमेरिकी सरकार के आतंकवाद के सबसे आधिकारिक स्रोत पैटर्न आफ ग्लोबल टेररिज्म के 1992 के संस्करण में कहा गया है “ मिस्र में 1992 में अधिकाँश आक्रमण अल गामा अल इस्लामिया नामक अतिवादी गुट द्वारा किये गये.... यह गुट मिस्र सरकार को हिंसक ढंग से अपदस्थ करना चाहता है” ।
आईएनएस ने हिदायत के मामले को नियमित मामलों जैसा लिया। इस विभाग ने मार्च 1995 में उसके शरण के आवेदन को निरस्त कर दिया ( उसके धार्मिक उत्पीडन के दावे से असहमत होकर) और इसके बाद औपचारिक ढंग से वापस भेजने की प्रक्रिया आरम्भ कर दी और अन्य असफल आवेदकों की भाँति उसे भी अमेरिका जीवन की व्यापकता में अदृश्य हो जाने की अनुमति मिल गयी। अल गामा अल इस्लामिया के साथ उसकी सम्भावित सदस्यता का मामला बिना टिप्पणी के समाप्त हो गया और किसी सरकारी एजेंसी ने उसे ढूँढने का प्रयास नहीं किया। उस पर भी और भयावह बात यह कि आईएनएस ने जून 1996 में हिदायत को कार्य करने की अनुमति दे दी ठीक उसी दिन जिस दिन उसे वापस भेजने का ज्ञापन तैयार हुआ।
जुलाई 1996 में हिदायत की पत्नी ने वार्षिक लाटरी से राज्य विभाग का वीजा प्राप्त कर लिया। एक बार फिर आतंकवाद के साथ सम्भावित सम्पर्क की ओर ध्यान नहीं दिया गया और उसे इस बात की अनुमति दे दी गयी कि वह इस अवसर का लाभ उठाकर एक बिधिसम्मत नियमित नागरिक बन सके।
छः वर्ष के उपरांत 4 जुलाई 2002 को आईएनएस की भूल पूरी तरह खुलकर सामने आयी जब हिदायत ने लास एंजेल्स हवाई अड्डॆ पर अन्धाधुन्ध गोलियाँ चलाकर स्वयं गोली लगकर मरने से पूर्व दो लोगों की हत्या कर दी।
यदि कोई यह सोचता है कि इस उत्पीडन से आईएनएस ने अपनी भूल मानी होगी तो यह गलत है। “ एकमात्र संकेत जिससे श्रीमान हिदायत अमेरिका में अन्य लोगों के लिये खतरा बन सकते थे” उसकी घोषणा पिछ्ले सप्ताह की गयी वह भी “ उसका अपना दावा कि आतंकवादी गतिविधियों में लिप्त एक संगठन के सदस्य होने का झूठा आरोप उस पर था”
हिदायत के अल गामा अल इस्लामिया की सम्भावित सदस्यता के प्रति आईएनएस का व्यवहार एक ऐसी बिना प्रायश्चित की फिसलन की परिपाटी की ओर संकेत देता है जिसका राष्ट्रीय महत्व है। तात्कालिक तौर पर मरम्मत का कार्य आरम्भ करने के लिये आईएनएस को तीन कदम उठाने चाहिये – हेशाम मोहम्मद हिदायत के सम्बन्ध में अपनी अनेक भूलों का दायित्व ले, उपचार के रूप में एक अभियान चलाकर अपने अभिलेखागार में जाकर उन सभी आप्रवासियों को गिरफ्तार कर वापस भेजा जाना चाहिये जिनके आतंकवाद से सम्बन्ध हैं, और उन कर्मचारियों को उत्तरदायी ठहराया जाये जो आपराधिक लापरवाही के व्यवहार के दोषी हैं।
ऐसे समय में जबकि अमेरिका के लोग देख रहे हैं कि भ्रष्ट व्यावसायिक प्रशासकों को बलपूर्वक हथकडी पहनायी जा रही है तो क्या आईएनएस के सदस्यों को कोई कम दण्ड दिया जाना चाहिये जो अपने ही देश में अपने ही नागरिकों के हत्यारों को अनुमति देने के उत्तरदायी हैं।