शाही राजकुमार तुर्की अल फैसल एक अग्रणी सऊदी सत्ता के दलाल हैं। 1945 में मक्का में भविष्य़ के राजा फैसल के यहाँ जन्मे तुर्की अल फैसल की आधिकारिक जीवनी के अनुसार उन्होंने अपनी प्राथमिक शिक्षा तैफ माडल प्राथमिक विद्यालय में प्राप्त की और इण्टरमीडियट भी यहीं से किया बाद में लारेंसिवेल स्कूल और जार्जटाउन विश्वविद्यालय से भी शिक्षा प्राप्त की। उनके कैरियर का आरम्भ 1973 में शाही न्यायालय में सलाहकार के रूप में हुआ। उन्होंने राज्य की प्रमुख विदेशी खुफिया सेवा में प्रायः एक चौथाई शतक तक 1977 से 2001 तक कार्य किया और 11 सितम्बर 2001 से ठीक पूर्व यह कार्यालय छोडा। वर्ष 2002 से 2007 के मध्य उन्होंने लन्दन और वाशिंगटन में अपने देश के राजदूत के रूप में देश का प्रतिनिधित्व किया। अपनी सेवामुक्ति मे उपरांत वे किंग फैसल सेंटर फार रिसर्च एण्ड इस्लामिक स्टडीज के अध्यक्ष हैं और विश्व आर्थिक फोरम से सम्बद्ध सी 100 गुट के सह अध्यक्ष हैं।
इन योग्यताओं के आधार पर 23 जनवरी को फायनांसियल टाइम्स में तुर्की द्वारा प्रकाशित सम्पादकीय पृष्ठ के आलेख Saudi Arabia's patience is running out को मापा जा सकता है। उन्होंने इस आलेख का आरम्भ अपने उन प्रयासों को याद करते हुए किया जो उन्होंने अपने कार्यकाल में अरब- इजरायल शांति के लिये किये थे और विशेष रूप से 2002 की अब्दुल्ला योजना। उन्होंने लिखा, “ लेकिन जब से इजरायल ने गाजा पर खूनी आक्रमण आरम्भ किये हैं, आशावादिता और सहयोग की ये दलीलें दूर का स्वप्न ही दिखती हैं”। इसके बाद उन्होंने एक धमकी दी है, “ जब तक नया अमेरिकी प्रशासन फिलीस्तीनियों की परेशानियों और नरसंहार को रोकने के लिये कोई कठोर कदम नहीं उठाता है तब तक शांति प्रक्रिया, अमेरिकी सउदी सम्बन्ध और इस क्षेत्र में स्थायित्व पर खतरा बना रहेगा। “
वे जार्ज डब्ल्यू बुश पर उसी तरह निशाना साधते हैं जिस प्रकार आम तौर पर पूर्व सउदी राजदूत करते हैं, “ न केवल बुश प्रशासन ने इस क्षेत्र में एक रुग्ण विरासत छोडी है वरन इसने गाजा में हुए नरसंहार के सम्बन्ध में अडियल रवैया अपना कर निर्दोष लोगों को मारे जाने में योगदान किया है” इसके बाद फिर धमकी दी गयी है जो इस बार कहीं अधिक स्पष्ट है, “ यदि अमेरिका मध्य पूर्व में नेतृत्व की भूमिका में रहना चाहता है और अपने रणनीतिक गठबन्धन को बनाये रखना चाहता है और विशेष रूप से सउदी अरब के साथ अपने विशेष सम्बन्ध बनाये रखना चाहता है तो इजरायल और फिलीस्तीन के सम्बन्ध में इसे अपनी नीतियों में तेजी से बदलाव करना होगा।
तुर्की अपने लेख में विस्तार पूर्वक इस बात का निर्देष देते हैं कि नये प्रशासन को क्या करना चाहिये।
फिलीस्तीनियों के विरुद्ध इजरायल के अत्याचार की निन्दा की जानी चाहिये और इस सम्बन्ध में संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव का समर्थन किया जाना चाहिये। इजरायल की कार्रवाई की निन्दा की जानी चाहिये जिस कारण संघर्ष हुआ जिसमें पश्चिमी तट में बस्तियाँ बसाने से गाजा में नाकेबन्दी तक और फिलीस्तीनियों को जानबूझकर गिरफ्तार करने से चुनचुन कर मारा जाना शामिल है। अमेरिका के इस आशय की घोषणा कि वह मध्य पूर्व को जनसंहारक हथियारों से मुक्त करने के लिये कार्य करेगा और जो इस बात को स्वीकार करते हैं उन्हें सुरक्षा छतरी देना और जो इसे नहीं मानते उन पर प्रतिबन्ध लगाना। तत्काल प्रभाव से लेबनान में शबास फार्म से इजरायल की सेनाओं को बुलाया जाना, इजरायल और सीरिया के मध्य शांति वार्ता को प्रोत्साहित करना और इराक राज्यक्षेत्र की एकता सुनिश्चित करने के संयुक्त राष्ट्र संघ के प्रस्ताव का समर्थन करना। ओबामा को कठोरता से अब्दुल्ला शांति योजना को आगे बढाने के लिये कार्य करना चाहिये।
अंत में तुर्की ने लिखा है कि ईरान के महमूद अहमदीनेजाद ने “ सउदी अरब से इजरायल के विरुद्ध जिहाद करने का आह्वान किया है यदि इसका पालन किया गया तो इससे असाधारण प्रकार की अराजकता उत्पन्न होगी और खून खराबा होगा”। इसके बाद वे कहते हैं कि, “ सउदी अरब ने अब तक ऐसे आह्वान के सम्बन्ध में संयम दिखाया है” फिर वे तीसरी बार धमकी को दुहराते हुए कहते हैं,” प्रतिदिन यह संयम बनाये रखना कठिन होता जा रहा है....राज्य अपने नागरिकों को इजरायल के विरुद्ध विश्वव्यापी विद्रोह में शामिल होने से नहीं रोक पायेगा”
टिप्पणियाँ- इस असाधारण धमकी के क्या मायने लगाये जायें? अधिक नहीं।
1-जैसा कि फाइनांसियेल टाइम्स ने तुर्की के सम्पादकीय लेख पर अपने आलेख में कहा है, “ राजकुमार का लेख उन पत्रों की याद दिलाता है जो राजा अब्दुल्ला ने राजकुमार रहते हुए 2001 में जार्ज बुश को लिखा था और चेतावनी दी थी कि यदि अमेरिकी प्रशासन ने मध्य पूर्व में शक्तिशाली ढंग से शांति प्रक्रिया आरम्भ नहीं की तो राज्य अमेरिका के साथ अपने सम्बन्धों की पुनर्व्याख्या करेगा। इन पत्रों ने वाशिंगटन में खतरे की घण्टी बजा दी लेकिन 11 सितम्बर के आक्रमण के उपरांत यह बात दब गयी जिसमें कुछ सउदी नगरिक भी शामिल थे। यह तो दो वर्ष के बाद जब रियाद ने स्वयं आतंकवाद के विरुद्ध अपना अभियान आरम्भ किया और कट्टरपंथ के मूल कारण की जाँच आरम्भ की तभी सयुक्त राज्य अमेरिका के साथ सम्बन्ध सामान्य हुए, “ दूसरे शब्दों में ऐसे खतरे का अभ्यास हमें है जिसका बहुत कम प्रभाव हुआ” ।
2- तुर्की ने 2006 में अत्यन्त अपमानजनक स्थिति में सउदी सर्वोच्च पदों को छोड दिया। यहाँ वाशिंगटन पोस्ट में उनके पद से हट्ने के तात्कालिक कारण गिनाये गये हैं-
संयुक्त राज्य अमेरिका के अधिकारियों और विदेश विभाग के दूतों के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका में सउदी राजदूत राजकुमार तुर्की अल फैसल राज्य सचिव कोण्डोलिजा राइस और उनके स्टाफ को सूचित कर अपने कार्यकाल के 15 माह के उपरांत ही वाशिंगटन से कल रवाना हो गये। अरब कूटनीतिज्ञों के अनुसार लम्बे समय तक खुफिया सेवा में कार्यरत रहे तुर्की ने अपने स्टाफ को कल बताया कि वे अपने परिवार के साथ अधिक समय व्यतीत करना चाहते हैं। उनके सहकर्मियों ने बताया कि वे इस निर्णय पर हतप्रभ हैं। वे बिना किसी अधिक हलचल के चले गये जबकि किसी दूत के जाने पर सार्वजनिक बयान से अधिक पार्टियाँ और धन्यवाद होता है
अरब- इजरायल संघर्ष के सन्दर्भ में तुर्की का इतिहास गर्म दिमाग और इस्लामवादी कट्टरता का है। अभी इसी माह के आरम्भ में फारस की खाडी के क्षेत्रों और संयुक्त राज्य अमेरिका के सम्बन्ध से सम्बन्धित एक फोरम से ओबामा को सम्बोधित करते हुए उन्होंने कहा, “ बुश प्रशासन ने आपको कटु विरासत सौंपी है और गाजा में निर्दोष लोगों के नरसंहार और खून खराबे के बीच लापरवाह स्थिति सौंपी है। अब बहुत हो गया आज हम सभी फिलीस्तीनी हैं और हम ईश्वर और फिलीस्तीन के लिये शहीद होना चाहते हैं उनके साथ जो गाजा में मरे हैं”।
शहादत चाहते हैं। यह एक ईरानी क्रांतिकारी की भाँति सुनाई देता है न कि एक सुनिश्चित सउदी राजपरिवार की भाँति।
तुर्की की धमकी ओबामा प्रशासन को घुमा सकती है परंतु नये राष्ट्रपति ने अभी हाल में गाजा में हुए घटनाक्रम पर जो टिप्पणी की है वह दिखाता है कि वह किसी दूसरी दिशा में जा सकते हैं जबकि उन्होंने हमास को एक कूटनीतिक साथी बनाने से पूर्व तीन शर्तें रखी हैं( इजरायल के अस्तित्व के अधिकार को स्वीकार करे, हिंसा को समाप्त करे और पुराने समझौतों के प्रति आबद्ध हो) वाशिंगटन पोस्ट की व्याख्या के अनुसार अभी तक, “ ओबामा बुश प्रशासन द्वारा अपनाई गयी नीतियों से नाता तोड्ना चाहते हैं”