ऐसा प्रत्येक चार वर्ष पर होता है कि जब अमेरिका के राष्ट्रपति का चुनाव आरम्भ होता है तो मैं स्वयं को अजनबी सा अनुभव करता हूँ ।
ऐसा इसलिये है क्योंकि समाचारों की रिपोर्ट उन चीजों से भरी रहती है जो कि रुचि का विषय नहीं है। सामान्य सांख्यिकी और आँकडा ( 171,000 रोजगार अक्टूबर में सृजित किये गये और बेरोजगारों की संख्या में 0.1 प्रतिशत की कमी के साथ यह आँकडा 7.9 प्रतिशत रह गया), जीवनी से सम्बन्धित अप्रासंगिकता ( इस बात का दावा किया गया कि जब बेन कैपिटल में थे तो रोमनी ने रोजगार को दूसरे देशों को आउटसोर्स किया) तथा भुलाई गयी भूल ( ओबामा ने कहा कि " मत सबसे बडा प्रतिशोध है" )
इस सीमित बहस में तो प्रमुख बिंदु छूट गये: पहला, डेमोक्रेट और रिपब्लिक का परस्पर भिन्न दर्शन । आखिर स्वतंत्रता बनाम समानता की बहस कहाँ है, संघीय सरकार बनाम संघीयता, इससे भी कम बात शिक्षा , आप्रवास और इस्लामवाद जैसे बिंदुओं पर हो रही है। संघीय न्यायाधीश नियुक्त करने के लिये प्रत्याशियों की पात्रता क्या हो? ऋण संकट का समाधान करने के उनके मार्ग या फिर बाहरी देशों में सेना भेजने के लिये उनकी नीति निर्देशिका क्या हो? 11 सितम्बर 2012 को बेनगाजी में हुई घटना पर प्रशासन की प्रतिक्रिया के बारे में क्या? ऐसा लगभग प्रतीत होता है प्रत्याशियों ने आपस में समझ बना ली है कि अत्यंत महत्वपूर्ण और रोचक मुद्दों की अवहेलना करनी है ।
दूसरा, बहस में इस बात की भी अवहेलना की जाती है कि प्रत्याशी मात्र अलग थलग पडे व्यक्ति नहीं हैं वरन एक बडी टीम के प्रमुख हैं। विदेश मंत्री के लिये , रक्षा मंत्री के लिये, वित्त विभाग के लिये और महाधिवक्ता के लिये कौन प्रत्याशी है? कौन राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद का प्रमुख होगा और आर्थिक परिषद के सलाहकार कौन होंगे? प्रत्येक टीम के पद ग्रहण करने का क्या परिणाम होगा?
हमें आशा है कि मतदाता कृत्रिमता की इस दुर्गंध के मध्य कहीं अपना मार्ग निकाल लेंगे।