बराक ओबामा की नीतियों में विरोधाभास अंतर्निहित है विशेष रूप से विदेश नीति के मामलों में।
जहाँ एक ओर वामपंथी होने के चलते वे अमेरिका को असम्मान की दृष्टि से देखते हैं और इसे विश्व की समस्त बुराइयों का कारण मानते हैं तो वहीं दूसरी ओर एक राष्ट्रपति के रूप में उनका मूल्याँकन इस आधार पर होगा कि उनके कार्यकाल में देश ने कितना अच्छा किया।
तार्किक रूप से वे इन दोनों विरोधाभासों को एक साथ लेकर नहीं चल सकते : यदि वे चाहते हैं कि वे पुनः निर्वाचित हों और उनकी गणना एक महान नेता के रूप में हो तो उन्हें अमेरिका के हितों को आगे बढाना होगा; परंतु यदि वे अपनी प्राथमिक नीतियों को लागू करना चाहते हैं तो वे देश को क्षति पहुँचा रहे हैं और जिस डाल पर बैठे हैं उसी को काट रहे हैं।
विचारधारा बनाम हित का यह विरोधाभास व्याख्या से परे काफी दूर जाता है और यही कारण है कि ओबामा के वामपंथी साथियों ने उनके कार्यकाल की निंदा की है क्योंकि अनेक अवसरों पर अपना काम निकालने के लिये उन्होंने अपनी वैश्विक दृष्टि से अलग कार्य किया है (ग्वांटेनामो में बेस) या फिर उन्होंने ऐसा भ्रामक मध्य मार्ग निकाला है कि जिससे कोई भी प्रसन्न नहीं हुआ (इराक में युद्ध, अरब इजरायल कूटनीति) ।
यही कुछ घरेलू नीतियों पर भी लागू होता है ( भारी कर या निम्न बेरोजगारी?) हालाँकि यहाँ विरोधाभास उतना नहीं है जितना विदेश नीति में।
28 नवम्बर 2011 अपडेट: इस ब्लाग ने एक विवाद खडा कर दिया है और अनेक पाठकों ने कहा कि वे इस बात से काफी निराश हुए कि मैंने लापरवाही से कह दिया कि ओबामा, " या तो अमेरिका का असम्मान करते हैं या फिर इसे विश्व में सभी बुराइयों का कारण मानते हैं" । दूसरी ओर रेडियो प्रस्तोता रुश लिम्बाग ने कुछ मिनट तक इस विश्लेषण को पढा और इससे पूरी तरह सहमति जताई।
मैं तो यह मानकर चलता हूँ कि ओबामा की अति वामपंथी पृष्ठभूमि (जिसे पूरी तरह स्टेनली कुर्ज ने Radical-in-Chief में अभिलेखित किया है) से स्पष्ट है कि वे मूल रूप से अमेरिका को परिवर्तित करना चाहते हैं । परंतु यह ऐसा विचार है जिससे कि उदारवादी सहमत नहीं हैं।
रोचक बात यह है कि इस व्याख्या के लिये मुझे अनेक अनर्गल बातें सुननी पडीं परंतु किसी ने भी इस विचार पर तर्क वितर्क नहीं किया कि ओबामा विरोधाभास का सामना कर रहे हैं।